Thursday 13 June 2019

म.प्र. में बिजली संकट : बहाने गले नहीं उतर रहे

मप्र में इन दिनों बिजली संकट जनचर्चा का विषय है। कमलनाथ सरकार के सत्ता में आते ही अघोषित बिजली कटौती की स्थिति बनी तब ये माना गया कि नई-नई सरकार को स्थितियां समझने में थोड़ा वक्त लगेगा। श्री नाथ वैसे भी मप्र के राज्य विद्युतA मंडल में काफी रूचि लेते रहे हैं। दिग्विजय सिंह के दस वर्षीय कार्यकाल में ये कहा जाता था कि भोपाल स्थित मंत्रालय वल्लभ भवन में दिग्विजय का शासन चलता है लेकिन विद्युत मंडल का जबलपुर स्थित मुख्यालय शक्तिभवन कमलनाथ की सल्तनत है जिन्हें श्री सिंह अपना बड़ा भाई मानते थे। उस दौर में राज्य विद्युत संकट में बुरी तरह फंस गया। दिग्विजय सरकार के पतन की बड़ी वजहों में से एक बिजली की किल्लत भी थी। भाजपा ने उसे इनवर्टर/जनरेटर युग का नाम दिया था। उसके बाद आई भाजपा की सरकारों में शिवराज सिंह चौहान ने 12 वर्ष से भी ज्यादा राज किया और ये कहना गलत नहीं होगा चाहे बाहर से खरीदी गई हो या फिर राज्य में ही उत्पादित की गई लेकिन भाजपा के 15 साल के शासन में बिजली की आपूर्ति बहुत संतोषजनक रही। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के फीडर अलग करने का भी बड़ा लाभ हुआ। घरों को भरपूर निर्बाध विद्युत आपूर्ति होने से ग्रामीण इलाकों में भी रातों का अन्धेरा दूर हुआ। हालाँकि शिवराज सरकार पर महंगी दरों पर निजी कंपनियों से बिजली खरीदने के आरोप भी खूब लगे किन्तु आम जनता के नजरिये से देखें तो भाजपा के डेढ़ दशक के शासनकाल में मप्र का बिजली संकट हल हो गया था। ऐसे में जब कमलनाथ सरकार के आते ही बिजली की आंख मिचौनी शुरू हुई तब लोगों ने दिग्विजय सिंह के शासनकाल की याद करते हुए कांग्रेस पर तंज कसना शुरू कर दिया जो सामान्य तौर पर गलत भी नहीं कहा जा सकता। इस अप्रत्याशित हमले से प्रदेश सरकार हतप्रभ रह गई। उसे समझ में नहीं आया कि आत्मनिर्भरता के बावजूद बिजली की किल्लत का कारण क्या है? लोकसभा चुनाव यद्यपि राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा गया किन्तु भाजपा ने बिजली कटौती का उल्लेख करते हुए मतदाताओं को कांग्रेस से नाराज होने के लिए प्रेरित किया जिसका असर भी नजर आया। तमाम चुनाव सर्वेक्षण मप्र में भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान तो लगा रहे थे लेकिन नतीजों ने कांग्रेस को पूरी तरह साफ कर दिया। चुनाव के पहले राज्य सरकार ने बिजली विभाग के तमाम अधिकारियों और कर्मचारियों को इसके लिए दोषी मानते हुए निलम्बित भी किया। लेकिन उससे भी हालात नहीं सुधरे तब ये प्रचारित करना शुरू किया गया कि भाजपा सुनियोजित तरीके से बिजली संकट उत्पन्न कर जनता के मन में कांग्रेस के प्रति नाराजगी बढ़ाने में जुटी है। गत दिवस विद्युत मंडल के जबलपुर स्थित मुख्यालय में हुई एक बड़ी बैठक में कांग्रेस के कतिपय विधायक यहाँ तक कहते सुने गए कि भाजपा कार्यकर्ता बिजली के तारों पर लंगर डालकर आपूर्ति बाधित कर रहे हैं। बिजली विभाग में भाजपा समर्थक अमले की बहुलता को भी बिजली संकट की वजह प्रचारित करने में राज्य सरकार और कांग्रेस लगी हुई है। दूसरी ओर लोकसभा चुनाव से फुर्सत पाते ही बजाय आराम करने के भीषण गर्मी से झुलस रहे लोगों की मुसीबतें बढ़ा रहे बिजली संकट के विरोध में भाजपा ने प्रदेशव्यापी आन्दोलन भी शुरू कर दिया। मानसून में विलम्ब होने से अभी बिजली की मांग कम से कम जून के अंत तक चरमोत्कर्ष पर रहेगी। ऐसे में कमलनाथ सरकार के प्रति जनता की नाराजगी बढऩा स्वाभाविक है। बरसात के बाद प्रदेश में नगर निगम चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस के लिए इनमें जीतना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि लोकसभा के बाद अगर नगर निगम चुनाव में भी उसका खराब प्रदर्शन रहा तब विधानसभा चुनाव की जीत वाकई तुक्का साबित हो जायेगी। कमलनाथ सरकार बने हुए छह माह होने जा रहे हैं लेकिन अभी भी वह पूरी तरह से शासन-प्रशासन पर अपनी पकड़ नहीं बना पा रही। सिवाय स्थानान्तरण के ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं है जिसे बताया जा सके और उसमें भी दिल्ली से दौलताबाद वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। जिस तेजी से स्थानान्तरण होते हैं उसी तेजी से रद्द भी किये जा रहे हैं। वरिष्ठ अधिकारियों को महत्वहीन पदों पर भेजा जाता है और हल्ला मचने पर भूल सुधारी जाती है। सही कहें तो स्थानान्तरण को लेकर कमलनाथ सरकार की छवि बंदर के हाथ में उस्तरा आने जैसी बन गई है। जहाँ तक विद्युत संकट की बात है तो जब सरकार ये मान रही है कि उसकी कमी नहीं है तब प्रदेश की जनता भीषण गर्मी में भी उससे वंचित क्यों रखी जा रही है ये बड़ा सवाल है। ऐसे में राज्य सरकार भाजपा समर्थक कार्मचारियों के मत्थे दोष मढ़कर बरी नहीं हो सकती। लोकसभा चुनाव हुए भी तीन सप्ताह बीत चुके हैं। इतने दिनों में राज्य सरकार को समस्या की तह तक पहुंचकर समाधान तलाश लेना चाहिए था। लेकिन वह भाजपा को कठघरे में खड़ा करने की मूर्खता दोहरा रही है। वैसे सही बात ये है कि विद्युत मंडल का सत्यानाश करने का काम कांग्रेस के शासनकाल में ही हुआ था। शिवराज सिंह ने उसे किस तरह ठीक-ठाक रखा ये तो वे ही बता सकेंगे लेकिन कमलनाथ के आते ही बिजली की गाड़ी जिस तरह पटरी से उतरी वह चौंकाने वाला है। फिलहाल तो कांग्रेस और कमलनाथ दोनों नाच न आवे आँगन टेढ़ा का उदाहरण बने हुए हैं जिसका लाभ लेकर भाजपा जनमानस में ये बात बिठाने में सफल होती दिख रही है कि विधानसभा चुनाव में शिवराज सरकार को हरवाना उसकी भूल थी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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