Wednesday 19 June 2019

सांसद जनसेवक हैं संसद के मालिक नहीं

17 वीं लोकसभा में सदस्यों के शपथ ग्रहण के दौरान हो रही नारेबाजी का कोई औचित्य समझ में नहीं आता। प्रज्ञा ठाकुर सहित भाजपा के अनेक सांसदों ने जहां वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाये वहीं असदुद्दीन ओवैसी जब शपथ लेने आये तब भाजपा सांसदों ने उन्हें चिढ़ाने के उद्देश्य से जय श्री राम और भारत माता का जयकारा लगवाया। तिस पर ओवैसी ने उन्हें और नारे लगाने का इशारा करते हुए अपनी शपथ के आखिर में अल्ला हो अकबर और जयहिंद कहकर पलटवार किया। कुछ मुस्लिम सांसदों ने वन्दे मातरम कहने का विरोध किया। सांसद अपनी-अपनी भाषा में शपथ लें वहां तक तो ठीक है लेकिन इस संवैधानिक प्रक्रिया के दौरान भावनाओं का अतिरेक शोभा नहीं देता। अधिकतर सांसदों ने ईश्वर के नाम पर शपथ ली। जिन सांसदों द्वारा ईश्वर की बजाय संविधान की शपथ ली गई उनके बारे में विपरीत राय बना लेना ठीक नहीं होगा। उसी तरह यदि किसी ने वन्दे मातरम या भारत माता की जय नहीं बोला तो उसे देश विरोधी मान लेना भी गलत है। यूँ भी संसद में खुशी का इज़हार मेजें थपथपाकर करने की परंपरा है। स्मृति ईरानी जब शपथ लेने आईं तब भी भाजपा सांसदों ने नारेबाजी की। भले ही संसद की नियमावली में इसे लेकर कोई निषेध न हो लेकिन समय और स्थान की मर्यादा का ध्यान भी रखा जाना चहिये। संसद में बजाए जाने वाले वंदे मातरम पर भी कुछ सांसदों द्वारा आपत्ति दर्ज करवाई जाती रही है। उनके अपने तर्क और मान्यताएं हैं जिनको लेकर किसी भी प्रकार की बहस में समय खराब करने का कोई लाभ नहीं है। और यदि भाजपा सांसदों के मन में देश और राम भक्ति का ज्वार कुछ ज्यादा ही उठने लगा है तब वे उसे केवल स्वान्त: सुखाय  ही सीमित रखें। असदुद्दीन ओवैसी से भाजपा की राजनीतिक मतभिन्नता चाहे कितनी भी हो लेकिन उनके शपथ लेने आते समय जय श्री राम का उद्घोष करना निरर्थक था। उलटे उसकी वजह से ओवैसी ने आखिर में अल्ला हो अकबर कहकर भाजपाइयों को चिढ़ा दिया। यदि वे सहज रूप से शपथ ले लेते तब शायद सामाचार माध्यमों में ओवैसी की शपथ को इतना प्रचार न मिला होता। भाजपा सांसदों द्वारा सदन में गुंजाये जा रहे नारों के पीछे पार्टी के उच्च नेतृत्व का समर्थन है ये तो स्पष्ट नहीं है लेकिन नई लोकसभा के पहले सत्र में ही इस तह के हंगामे से आगे का रास्ता कठिन हो जाएगा। प्रधानमंत्री ने विपक्ष को लेकर जो कुछ भी कहा उससे भाजपा सांसदों को भी सबक लेना चाहिए। विपक्ष कितना भी कमजोर भले हो लेकिन उसका मजाक उड़ाना या उसे उत्तेजित करना कालान्तर में नुकसानदेह ही रहता है। भाजपा को 300 से ज्यादा सीटें मिलने के बाद संसद में उसका भारी-भरकम बहुमत हो गया है लेकिन बेहतर होगा यदि वह इस विजय को सकारात्मक तौर पर लेते हुए भावनाओं के उफान से बचे। आज की संसद नेहरू युग की नहीं रही। टीवी पर उसकी कार्यवाही का सीधा प्रसारण होने से सारी दुनिया सांसदों का आचरण देखती है। ऐसे में भाजपा सांसदों को चाहिए वे देश और दुनिया के सामने अपनी और पार्टी दोनों की अच्छी छवि बनाने का प्रयास करें। विशेष रूप से जब पार्टी शासन में हो तब उसके सांसदों के प्रदर्शन में संसदीय गरिमा और ज्यादा झलकना चाहिए। सदन में बहस या चर्चा के दौरान प्रासंगिकता के लिहाज से कोई नारा लगाना समझ में भी आता है लेकिन बिना जरूरत उनका उपयोग अखरने वाला है। बेहतर होगा प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भाजपा सांसदों की क्लास लगाते हुए उन्हें कब, कहाँ, कैसे और क्या बोलना है उसका प्रशिक्षण दिलवाएं। अधिकाँश सदस्य नये-नवेले होने से सड़क और संसद का अंतर शायद नहीं समझते। इसलिए उनके उद्दंड होने से पहले ही उन्हें नियमों और मर्यादा में दीक्षित कर देना चाहिए। वरना जोश में कुछ भी बोलने या करने से बिगड़ी छवि सुधारने में बहुत समय लगता है। स्मरणीय है पिछली लोकसभा में राफेल मुद्दे पर बहस के दौरान जोरदार भाषण देने के बाद प्रधानमंत्री के पास गले मिलने जाना और फिर अपनी सीट पर लौटकर बगल में बैठे ज्योतिरादित्य सिंधिया को आंख मारने वाली बचकानी हरकत ने राहुल गांधी की तेजी से सुधर रही छवि को कितना नुकसान पहुँचाया ये जगजाहिर है। भाजपा एवं अन्य दलों के नये सांसदों का ये फजऱ् बन जाता है कि वे लोकसभा की मर्यादा का ध्यान रखते हुए अच्छे माहौल का आधार बनाएं। वरना जैसा बीते पांच साल तक संसद का अधिकतर समय हंगामे की भेंट चढ़ता रहा ठीक वैसे ही इस लोकसभा में भी हंगामा होता रहेगा। सांसदों को ये सदैव याद रखना चाहिए कि वे संसद के मालिक नहीं अपितु जनता द्वारा चुनकर भेजे गए जनसेवक ही हैं और संसद के संचालन पर व्यय होने वाले करोड़ों रूपये आसमान से नहीं टपकते बल्कि जनता की जेब से बतौर टैक्स निकाले जाते हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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