Saturday 22 June 2019

हिंदुत्व की तरह योग भी भाजपा की निजी सम्पत्ति नहीं

गत दिवस विश्व भर में योग दिवस मनाया गया। भारत में हिमालय के ऊँचे स्थानों  से लेकर समुद्र तट तक लाखों  लोगों ने योगासनों का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। 2014 में देश की सत्ता सँभालने के बाद संरासंघ की महासभा में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व संस्था से योग को वैश्विक मान्यता देने का जो अनुरोध किया उसे आश्चर्यजनक रूप से व्यापक समर्थन मिला और 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता मिल गयी। तब से प्रतिवर्ष यह आयोजन बड़े पैमाने पर होने लगा। भारत में सरकारी स्तर पर इसकी शुरुवात जरुर हुई परन्तु संतोष का विषय है कि इसे निजी संस्थानों ने भी खुशी-खुशी स्वीकार किया। लेकिन इसके साथ ही एक तबका ऐसा भी है जिसे योग में साम्प्रदायिकता नजर आती है। ऐसा मानने वालों में केवल गैर हिन्दू  धर्माचार्य ही नहीं बल्कि तमाम ऐसे राजनेता भी हैं जिन्हें लगता है कि इसके जरिये भाजपा हिंदुत्व के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाती है। गत दिवस हुए आयोजनों के बाद अनेक लोगों ने इस पर हुए  खर्च का बयौरा पेश करते ही उपदेश बघारे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो फौजी जवानों के साथ प्रशिक्षित कुत्तों द्वारा योगासन किये जाने का चित्र ट्विटर पर प्रसारित करते हुए कटाक्ष किया कि ये है नया भारत। हालाँकि उसकी काफी आलोचना हुई । समाज में और भी लोग हैं जिनका कहना है  कि प्रधानमंत्री सहित सरकार में बैठे अन्य लोगों का  योग दिवस आयोजनों में शामिल होना समय और संसाधनों की बर्बादी है और इतना धन किसी अस्पताल अथवा वैसे ही किसी प्रकल्प पर खर्च किया जाना चाहिए जिससे साधारण जनता को सीधा लाभ हो सके। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। दरअसल योग को हिन्दू धर्म से जुड़ा मानकर उससे परहेज करना या उसका उपहास करना सिवाय अज्ञानता या कुंठित मानसिकता के और कुछ भी नहीं। देश के अनेक नामी गिरामी अस्पतालों में योग के जरिये मरीजों को निरोग रहने की सलाह दी जाती है। इसका कारण ये है कि योग महज व्यायाम न होकर एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन शैली की प्रेरणा देता है। इसकी खोज प्रकृति और मनुष्य ही नहीं अपितु पशु - पक्षी सभी के अध्ययन से हुई। मनुष्यों को तो योग का प्रशिक्षण लेना पड़ता है जबकि पशु , पक्षी और जलचर इसमें नैसर्गिक रूप से पारंगत होते हैं। योग बीमारी के इलाज की पद्धति न होकर तनावरहित और निरोग रहने की कला है जिसके लिए न कोई बड़ी धनराशि खर्च करने की जरूरत है और न ही किसी तामझाम की। गरीब - अमीर सभी इसका प्रयोग कर सकते हैं  और उम्र का भी  कोई बंधन नहीं है। इससे परहेज करने वालों के पास ऐसा कोई तर्क या प्रमाणित कारण भी नहीं है जिसके आधार पर वे योग को तिरस्कृत करने की बात करते हैं। जहां तक बात उससे हिंदुत्व या भाजपा के प्रचार की है तो चाहे राहुल गांधी हों या उन जैसे अन्य नेता, उन्हें ये स्वीकार कर लेना चाहिए कि जिस तरह राम और हिंदुत्व भाजपा या संघ परिवार की निजी सम्पत्ति नहीं हैं उसी तरह योग को श्री मोदी से जोड़कर देखना भी संकुचित  सोच का परिणाम है। दो साल पहले तक राम मन्दिर और हिन्दू मंदिर - मठों में पूजन - अर्चन को साम्प्रदायिकता से जोड़कर देखने वाली कांग्रेस को अंतत: ये समझ में आ ही गया कि  वह सोच कितनी गलत थी। और  उसी के बाद राहुल गांधी ने स्वयं को जनेऊधारी ब्राह्मण घोषित करते हुए अयोध्या और सोमनाथ के अलावा देश के प्रसिद्ध मन्दिरों में दर्शन और अनुष्ठान करना शुरू किये। उन्हें धोती पहिने हुए उसके पहले कभी नहीं  देखा गया था। लेकिन अनेक मंदिरों के प्रचलित नियमों के अनुसार उन्होंने परम्परागत परिधान धारण किये। योग को लेकर भी यदि वे इसी तरह की सदाशयता दिखाते हुए उसके प्रचार-प्रसार  में सहयोग दें तो उससे उनका फायदा तो होगा ही कांग्रेस को भी लाभ पहुंचेगा। कल हुए आयोजन में  यदि कांग्रेस अपने स्तर पर भी योग दिवस का आयोजन करती और उसके बड़े - छोटे नेता इसमें शरीक होते तब वह इस विषय पर भाजपा को निहत्था करने  में कामयाब हो सकती थी। उसकी तरह ही अपने को धर्मनिरपेक्ष कहने वाली अन्य पार्टियों ने भी योग दिवस को  भाजपा की झोली में डाल दिया। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि योग गुरु बाबा रामदेव ने योग को घर - घर पहुँचाने में ऐतिहसिक भूमिका का निर्वहन किया। जिसका असर पूरी दुनिया में हुआ और केवल भारतवंशी ही नहीं अपितु पश्चिमी जीवनशैली में डूबे असंख्य विदेशी भी योग के दीवाने हो गए। बीते कुछ वर्षों में योग महाविद्यालयीन पाठ्यक्रम में शामिल करने  से बड़ी संख्या में योग के शिक्षक तैयार हो सके जिन्हें देश ही नहीं विदेशों में भी रोजगार मिलने लगा। ये कहना गलत नहीं होगा कि आजादी के बाद पश्चिमी दुनिया  की चकाचौंध ने हमारी जीवनशैली ही नहीं अपितु सोच को भी बदल दिया जिसके कारण हमें अपनी गौरवशाली विरासत में पिछड़ापन नजर आने लगा। आयुर्वेद के साथ  ही योग भी इसी के चलते उपेक्षा का शिकार हो गया। राजनीति से ऊपर उठकर इस विषय पर गम्भीर चिंतन होना चाहिए। बाबा रामदेव और नरेंद्र मोदी ने योग को उसका खोया सम्मान दिलवाने में जो योगदान दिया उसकी वजह से उसे अछूत मान लेना बहुत बड़ी भूल होगी। बेहतर हो योग को लेकर एक सकारात्मक सोच विकसित की जाये क्योंकि ये स्वस्थ और अनुशासित समाज की बुनियादी जरूरत है जो प्रकृति और पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने का रास्ता दिखाती  है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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