Saturday 1 June 2019

जय श्री राम कहना कौन सा अपराध है

एक बात समझ से परे है कि सार्वजनिक रूप से जय श्री राम का उद्घोष करना भारतीय दंड विधान संहिता की किस धारा के अंतर्गत ऐसा अपराध है जिसमें किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की जा सके। लेकिन लगता है बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी की खीझ भरी सनक अब चरमोत्कर्ष पर जा पहुँची है। लोकसभा चुनाव के दौरान सड़क पर जय श्री राम की नारे लगाते लोगों को देखकर ममता ने अपना वाहन रुकवाया और पास जाकर न सिर्फ उन्हें डांटा-फटकारा अपितु धमकाने से भी बाज नहीं आईं। चुनावी नतीजे विपरीत चले जाने के बाद तो सुश्री बैनर्जी और भी भन्नाई घूम रही हैं। गत दिवस उनके काफिले के सामने जय श्री राम के नारे लगा रहे आठ व्यक्तियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। लगे हाथ मुख्यमंत्री ने ऐसे लोगों को देख लेने की धमकी भी दे डाली। ममता के मुताबिक ये बाहरी तत्व हैं। प्राप्त समाचारों के मुताबिक जय श्री राम के नारे से ममता की चिढ़ की प्रतिक्रियास्वरूप अब वहां आम लोग भी ऐसा करने लगे हैं। दरअसल बंगाल में बड़ी संख्या में राजस्थान, बिहार और उप्र के लोग बसे हुए हैं। इन प्रान्तों में राम नाम लेना बेहद सामान्य बात होती है। ये भी सही है कि बंगाल में भाजपा के पाँव जिस तरह मजबूत होते जा रहे हैं उसके पीछे इन उत्तर भारतीयों का समर्थन प्रमुख कारण है। लोकसभा की 18 सीटों पर भाजपा की विजय को पहले अकल्पनीय समझा जाता था लेकिन 23 मई की दोपहर तक ये वास्तविकता बन गयी। यही नहीं तो विधानसभा की जिन 8 सीटों के उपचुनाव लोकसभा के साथ हुए उनमें से भी भाजपा ने चार जीतकर ममता को आने वाले खतरे का एहसास करवा दिया। ज्यादा समय नहीं बीता जब कुछ उपचुनावों में भाजपा को तृणमूल कांग्रेस के बाद दूसरा स्थान मिला लेकिन दोनों के बीच मतों का अंतर इतना बड़ा था जिसे देखकर राजनीतिक प्रेक्षक मान बैठे थे कि भाजपा को बंगाल में जमने में कम से कम एक दशक लग जाएगा। लेकिन वह आकलन उस समय गलत होता लगा जब ग्राम पंचायतों सहित स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की। बावजूद इसके कि तृणमूल के गुंडों ने उसके उम्मीदवारों को नामांकन करने तक से रोका और तब उच्च न्यायालय के निर्देश पर व्हाट्स एप से उन्हें नामांकन करने की सुविधा दी गई। उसके पहले ममता ने दुर्गा प्रतिमा विसर्जन जुलूस पर रोक लगाने जैसे निर्णय भी किये जिन्हें अदालत ने रद्द कर दिया। उनके ऐसे ही फैसलों से ये बात जनमानस में पैठ कर गई कि सुश्री बैनर्जी को केवल 27 फीसदी मुस्लिम मतों की फिक्र  रहती है और हिन्दुओं को तो वो अपनी जेब में समझती हैं। चूंकि वामपंथी बंगाल में पूरी तरह हाशिये पर जा पहुंचे हैं और कांग्रेस घुटनों के बल पर चलने को मजबूर है इसलिए ममता का ये सोचना स्वाभाविक था कि वे चुनौतीविहीन हैं लेकिन वे जितना मुस्लिम परस्त होती गईं भाजपा को अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर भी आसानी से मिलता गया। लोकसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी को एक्सपायरी दवा की तरह बताकर उन्हें प्रधानमंत्री नहीं मानने और प्राकृतिक आपदा के समय आये उनके फोन का जवाब नहीं देने जैसे कदमों से ममता ने अपनी छवि पूरी तरह से खराब कर ली। होना तो ये चाहिए था कि चुनाव परिणाम आने के बाद वे सामान्य शिष्टाचार का पालन करते हुए मोदी सरकार के शपथ ग्रहण में शामिल होकर केंद्र - राज्य सम्बन्धों को नए सिरे से मधुर बनाने की पहल करतीं लेकिन उन्होंने वह अवसर भी गंवा दिया। गत दिवस जय श्री राम का नारा लगा रहे लोगों को गिरफ्तार करवाकर देख लेने की धमकी देने जैसा उनका कृत्य निश्चित रूप से ये साबित करता है कि सुश्री बैनर्जी पूरी तरह अपना संतुलन खोती जा रही हैं। आगामी विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं लेकिन उन्हें ये डर लग रहा है कि उनकी राजनीति अब ढलान पर आ चुकी है और बंगाल की जनता भाजपा को उनके विकल्प के तौर पर स्वीकार करने की मानसिकता बना चुकी है। बीते एक साप्ताह में ही तृणमूल के तीन विधायक टूटकर भाजपा में आ गये जिनमें एक मुस्लिम भी है। बड़ी संख्या में पार्षद भी तृणमूल छोड़कर भाजपा का दामन थाम रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान ही प्रधानमन्त्री ने अपनी एक रैली में कहा था कि तृणमूल के दर्जनों विधायक उनके सम्पर्क में हैं। हो सकता है उनका वैसा कहना ममता पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का प्रयास रहा हो लेकिन लोकसभा की 18 सीटें जीतने के बाद भाजपा बंगाल में तृणमूल की टक्कर में खड़ी हो गई है और यही ममता के बौखलाने की असली वजह है। जय श्री राम का नारा लगाने वालों की गिरफ्तारी से न केवल बंगाल अपितु अन्य राज्यों में भी हिन्दू समाज आक्रोशित हो सकता है। बेहतर हो सौम्य हिंदुत्व को अपनाने वाली कांग्रेस ममता के इस सनकीपन की आलोचना करे वरना जनेऊ, गोत्र और मन्दिर-मठ में जा-जाकर पूजा-पाठ पाखंड की श्रेणी में ही माना जाएगा। ममता एक संघर्षशील राजनेता मानी जाती हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद वे जिस तरह की निरंकुशता का परिचय दे रही हैं उसकी वजह से ही पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी भाजपा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। 23 मई के पहले तक 30-32 सांसदों के बल पर प्रधानमन्त्री बनने का ख्वाब देखने वाली ममता को अब अपना मुख्यमंत्री पद भी खतरे में लगने लगा है और इसीलिये वे बेहद बचकानी और काफी हद तक मूर्खतापूर्ण हरकतों पर उतर आई हैं। इससे उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता भी उजागर हो रही है। हो सकता है अमित शाह के गृहमंत्री बन जाने से भी वे भयाक्रांत हो उठी हों जिनके हेलीकाप्टर को उतरने की अनुमति एन वक्त पर रद्द करने जैसी हरकत चुनाव के दौरान उनकी सरकार ने कई मर्तबा की।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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