Saturday 8 June 2019

मानसून की दगाबाजी का खात्मा होना चाहिए

मानसून। ये शब्द कहां से आया। इसका मतलब क्या है। यह कौन सी भाषा का है। कोई नहीं जानता। फिर भी भारतीय जनजीवन में इसका महत्व बहुत ज्यादा है। यह भी कह सकते हैं कि इसके बिना यह देश अधूरा है। आमतौर पर मई जाते-जाते मानसून की हलचल तेज हो जाती है। 25 मई के बाद दक्षिणी हिस्से से मानसून भारत में प्रवेश करता है और जून के पहले सप्ताह में केरल तक फैल जाता है। यह विडम्बना ही है कि आजादी के इतने साल बाद भी मौसम के बारे में कोई सटीक सिस्टम हमारे पास नहीं है। यहां तक कि कई उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जाने के बाद भी हम मौसम के बारे में अंदाज पर निर्भर रहते हैं। सरकारी एजेन्सी भी इस मामले में ढुलमुल साबित हो रही है। अभी कुछ दिन पहले दावा किया गया था कि इस दफा मानसून सामान्य रहेगा। पहले इसके वक्त पर आने का दावा भी रहा। अब इसे विलंबित बताया जा रहा है। यह भी कि मानसून अबके कुछ कम रह सकता है। प्री मानसून तो पूरी तरह चौपट हो गया है। 65 साल में यह दूसरा प्री मानसून है जो दगा दे गया। ऊपर से भीषण गर्मी ने  जनजीवन को बेहाल कर दिया है। थोड़े दिन पहले तक इस तरह का संकेत किसी ने नहीं दिया था। यही वजह है कि उत्तर से लेकर दक्षिण तथा पूरब से लेकर पश्चिम तक पानी की त्राहि-त्राहि मची हुई है। पानी की एक बूंद खून से ज्यादा महंगी है। लाखों-करोड़ों लोग गंदा पानी पीने मजबूर हैं। मध्यप्रदेश की ही बात करें तो 60 से 70 फीसदी आबादी हाय-हाय कर रही है। इस राज्य के कुछ ही शहर छोड़कर ज्यादातर में दो दिन में या तीन दिन में या सप्ताह में एक बार पानी दिया जा रहा है। चूंकि प्री मानसून विफल होने की जानकारी किसी के पास नहीं रही इसीलिए आपदा प्रबंधन  हो नहीं पाया। महाराष्ट्र के एक-दो जिले में ट्रेन से पानी पहुंचाने की व्यवस्था की जा सकी है। बाकी जगह पानी ने लोगों का जीना हराम कर दिया है। अभी जो स्थिति है उससे तो यह भी आशंका हो रही है कि कहीं मानसून ऊपर-नीचे न हो जाये। स्काई नेट नामक निजी एजेन्सी ने देश के कुछ भाग में सूखे का इशारा किया है। कुल मिलाकर हालात संगीन हैं। नई नवेली मोदी सरकार के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती मुंह फाड़कर खड़ी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम का तमामतर कौशल इम्तिहान की जद में है। जरा सी भी देर हुई तो मामला हाथ से निकल जायेगा। दो केन्द्रीय मंत्री ने भी अपने राज्य को लेकर प्रधानमंत्री से मदद मांगी है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ भी केन्द्र सरकार से राशि चाह रहे हैं। उम्मीद पर दुनिया कायम है परंतु विगत कई साल से सूखे की मार झेल-झेल कर बहुत बड़ा किसान वर्ग हताश हो चुका है। पिछले कुछ साल से किसान आत्महत्या ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। यह ठीक है कि लोकसभा चुनाव में किसान मुद्दा नहीं बन पाया। ऐसा होता तो काफी कुछ नजारा बदला हुआ होता। वर्तमान सरकार को दो-तीन काम प्राथमिकता के आधार पर करने पड़ेंगे। सबसे पहले तो मौसम विज्ञान को पूर्ण रूपेण सक्षम तथा त्रुटिरहित बनाया जाये। चाहे ठंड हो या बरसात पहले से बताया जाये कि आने वाले दिनों में ऐसा-ऐसा होगा। सही-सही जानकारी होती तो प्री मानसून की दगाबाजी इतनी विकराल नहीं होती। संबंधित राज्य सरकार इस मुसीबत का सामना करने के लिए पहले से तैयार होती। कई राज्य में लगातार सूखा पड़ रहा है किन्तु न जाने क्यों वहां की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है।  एक-दो रोज में मानसून सक्रिय नहीं होता तो प्रधानमंत्री को सभी मुख्यमंत्री की बैठक बुलानी चाहिए। खास कर जिन राज्य में ज्यादा कोहराम है वहां पर विशेष ध्यान दिया जाये। कृत्रिम बारिश के साथ-साथ जलस्रोत संरक्षण की नीति बनानी चाहिए। श्री मोदी ने अलग से जल विभाग बनाने का वादा किया था। अब टाइम आ गया है जब इस विभाग के बारे में तत्परता बरती जाये। कोशिश बरसात में ज्यादा से ज्यादा पानी बचाने की भी होना चाहिए। पानी बचाओ अभियान पूरे देश में एक साथ शुरू किया जाये। जल परिवहन की भी एक सी राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए। नदी जल बंटवारे को लेकर कुछ प्रदेश अभी भी लड़ रहे हैं। दूसरे कार्यकाल के शुभारंभ पर मौसम ने आंख तरेर दी है। रिकार्ड तोड़ गर्मी ने सारे देश को हिलाकर रख दिया है। इसका भी उपाय मोदी सरकार को गंभीरता से करना पड़ेगा। ईश्वर करे कि देर-सबेर से ही सही वर्षा रानी अपनी मेहरबानी बरकरार रखें। जल्द से जल्द गर्मी का यह दौर खत्म हो और झमाझम बारिश धरती की जलन पर मरहम लगाये।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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