Saturday 29 June 2019

जी-20 : ट्रम्प के दबाव में नहीं आये मोदी


अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने जी-20 देशों की बैठक के लिए जापान रवाना होने से पहले भारत विरोधी ट्वीट करते हुए लिखा कि मोदी सरकार द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर सीमा शुल्क बढ़ाये जाने के फैसले को वापिस लिया जाना चाहिए। कूटनीति में इसे बड़ा संकेत माना गया। ऐसा लगता है ओसाका में नरेंद्र मोदी से मिलने के पहले ट्रम्प उन पर मनोवैज्ञनिक दबाव बनाना चाह रहे थे। वैसे भी चीन के साथ आपसी व्यापार में बढ़ रहे तनाव से अमेरिका परेशान चल रहा है। चुनावी वर्ष में ट्रम्प के लिये अमेरिकी जनता को खुश रखना बेहद जरूरी है। पिछला चुनाव अमेरिका फस्र्ट की जिन नीतियों पर वे जीते उनको पूरी तरह अमल में नहीं ला सके । हालाँकि उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग के साथ बातचीत शुरू कर उन्होंने एक बड़ी कामयाबी हासिल की लेकिन अभी भी उसकी अकड़ पूरी तरह से खत्म नहीं हुई। दूसरी तरफ  अमेरिका में एक तरफ  तो बेरोजगारी बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ  चीन उसकी आर्थिक महाशक्ति के दावे को जिस तरह चुनौती दे रहा है वह भी ट्रम्प के लिए चिंता का कारण है। व्यापार शर्तों को लेकर चीन और अमेरिका के विवाद की वजह से भारत पर विपरीत प्रभाव पडऩे लगा जिससे बचने के लिए अमेरिकी वस्तुओं पर सीमा शुल्क में वृद्धि कर दी गई जो ट्रम्प को नागवार गुजर गुजर रही है। उसके पहले वे भारत को ईरान से कच्चा तेल नहीं खरीदने के लिए दबा चुके थे। इस कारण कूटनीतिक जगत में ये आशंका थी कि जी-20 सम्मलेन में ट्रम्प-मोदी मुलाकात तनावपूर्ण रहेगी। रूस से बड़े रक्षा सौदे करने की मोदी सरकार की नीति से भी ट्रम्प बहुत नाराज हैं। हालाँकि भारत सभी मामलों में अमेरिका को स्पष्ट तौर पर कह चुका था कि वह दबाव में नहीं आयेगा। लेकिन ट्रम्प भी जिद्दी स्वभाव के राजनेता माने जाते हैं इसलिए तनाव बढने की उम्मीदें जताई जा रही थीं। बहरहाल गत दिवस ओसाका में ट्रम्प और नरेंद्र मोदी के बीच सीधी बात भी हुई और जापान के प्रधानमन्त्री की मौजूदगी में भी। उसके बाद जो जानकारी आई उसके अनुसार श्री मोदी ने बजाय दबाव में आने के भारत का पक्ष जिस मजबूती से रखा वह बेहद महत्वपूर्ण है। रूस के साथ रक्षा सौदे, ईरान से कच्चे तेल की खरीदी और भारतीयों के लिए एच 1 वीज़ा में कटौती जैसे मुद्दे श्री मोदी ने बड़ी ही बेबाकी से रखते हुए ट्रम्प को जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने और भारत विरोधी अवधारणा से बचने की नसीहत दे डाली। इस मुलाकात के बाद श्री मोदी ने सम्मलेन को संबोधित करते हुए भारत जैसे विकासशील देशों के प्रति विकसित देशों के नजरिये में अपेक्षित बदलाव पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए भारत की भूमिका का प्रभावशाली प्रदर्शन किया। कूटनीति में नेता की भाव भंगिमा और व्यक्तित्व का बड़ा प्रभाव पड़ता है। पहली बार प्रधानमन्त्री बनने के बाद श्री मोदी की कूटनीतिक क्षमता को लेकर संदेह करने वाले कम नहीं थे लेकिन उनके विदेशी दौरों को जो सफलता मिली उसने तमाम आशंकाओं को गलत साबित कर दिया। अब तो उनके पास बीते पांच साल का अनुभव है। दूसरी बार भारी बहुमत से सत्ता में लौटने के बाद श्री मोदी का आत्मविश्वास भी पूर्वापेक्षा और ज्यादा है। विश्व के सभी बड़े राजनेताओं से उनके रिश्ते बेहद अनौपचारिक और आत्मीयतापूर्ण हो चुके हैं। रूस, जापान, चीन के शासकों से श्री मोदी ने जिस तरह से नजदीकी बना रखी है उसी के कारण वे अमेरिका के साथ बातचीत में दबावमुक्त नजर आये। रही बात ट्रम्प की तो वे चुनावी साल में भारत को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकते क्योंकि अमेरिका में रह रहे लाखों भारतवंशी केवल अप्रवासी नहीं अपितु एक ताकतवर वोट बैंक बन चुके हैं। अनेक नाम तो ऐसे हैं जो राष्ट्रपति चुनाव में आर्थिक सहायता भी करते हैं। इस वजह से ट्रम्प कहें कुछ भी लेकिन वे भारत के साथ टकराव से बचेंगे और यही बात श्री मोदी भांप चुके हैं। बहरहाल जी-20 देशों के सम्मलेन में भारत की भूमिका अब विश्व की बड़ी शक्तियों के समकक्ष होती जा रही है। विदेश नीति को लेकर प्रधानमंत्री कितने गम्भीर हैं इसका प्रमाण पिछली सरकार में उन्होंने सुषमा स्वराज को विदेश मंत्री बनाकर दिया। घरेलू राजनीति में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करवा चुकी श्रीमती स्वाराज ने वैश्विक स्तर पर भी अपनी क्षमता का जो शानदार प्रदर्शन किया और बेहद तनाव भरे क्षणों में जिस धैर्य और साहस का परिचय दिया वह मोदी सरकार की सफलता का प्रमुख आधार बना। अस्वस्थतावश वे चुनाव नहीं लड़ीं तब श्री मोदी ने सबको चौंकाते हुए पूर्व विदेश सचिव एस. जयशंकर को विदेश मंत्री बना दिया जिन्हें भारतीय विदेश सेवा के सर्वश्रेष्ठ अधिकारियों में गिना जाता है। जी-20 सम्मेलन के पहले अमेरिका के विदेश मंत्री भारत सरकार का मन टटोलने नई दिल्ली आये थे। उन्हें श्री जयशंकर ने बिना लागलपेट के कह दिया कि भारत की विदेश नीति उसके राष्ट्रीय हितों के अनुकूल होगी। ऐसा लगता है उन्होंने अपने राष्ट्रपति को भारत के कड़े रुख से अवगत करवा दिया जिसके बाद ही जापान में श्री मोदी से मिलते समय राष्ट्रपति ट्रम्प काफी सहज नजर आये। हालाँकि उनके अस्थिर स्वभाव को देखते हुए बहुत ज्यादा सौजन्यता की उम्मीद नहीं की जा सकती लेकिन रूस के साथ किये गए बड़े रक्षा सौदे के बाद मोदी सरकार ने अमेरिका से भी उतनी ही बड़ी खरीदी का फैसला करते हुए रणनीतिक संतुलन बना दिया। विदेश नीति के मामले में श्री मोदी का अब तक का रिकार्ड शानदार रहा है। जी-20 सम्मेलन में विकसित देशों की उपस्थिति के बीच भारत को जो महत्व मिल रहा है उसके पीछे 2019 का जनादेश भी है जिसके कारण नरेंद्र मोदी विश्व के ताकतवर नेताओं की सूची में काफी उपर आ चुके हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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