प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की वैचारिक आधार पर कितनी भी आलोचना की जाये लेकिन उनकी लक्ष्य आधारित कार्यशैली और अपने कार्य की सार्थकता में विश्वास उन्हें आम राजनेताओं की कतार से अलग खड़ा कर देता है। हमारे देश में राजनीतिक नेता आम तौर पर दो किस्म के हैं। एक वे जो अपनी लोकप्रियता के बलबूते चुनाव जितवाने के कारण करिश्माई कहलाते हैं और दूसरे वे जो अपने कामकाज के आधार पर जनता के बीच अपनी छवि बना लेते हैं। संयोग से श्री मोदी में उक्त दोनों खूबियाँ हैं। गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के पहले उन्होंने पार्षद तक का चुनाव नहीं लड़ा था लेकिन उसके बाद वे लगातार तीन विधानसभा चुनावों में भाजपा को जिताकर लाए। अनेक बार तो परिस्थितियाँ उनके पूरी तरह विपरीत भी बनीं किन्तु उन्होंने बड़ी ही चतुराई से उनको अपने पक्ष में मोड़कर खुद को लोकप्रिय जननेता साबित कर दिया। लेकिन प्रांतीय स्तर पर ऐसा करिश्मा तो लालू प्रसाद यादव भी कर चुके थे। अन्य राज्यों में भी ऐसे मुख्यमंत्री हुए जो अपने व्यक्तिगत आभामंडल के दम पर अपनी पार्टी को सत्ता में बनाये रहे। बंगाल में ज्योति बसु इसके सबसे बड़े उदाहरण थे। वर्तमान परिदृश्य में उड़ीसा के नवीन पटनायक ने लगातार पांचवा चुनाव जितवाकर अपनी लोकप्रियता प्रमाणित की और वह भी प्रचंड मोदी लहर में। उस दृष्टि से गुजरात में भाजपा की सत्ता बनाये रखने का कारनामा कोई अद्वितीय नहीं था। लेकिन नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय छवि बनी उनकी सरकार के कामों से जिनके कारण गुजरात देश के अग्रणी राज्यों में शुमार होने लगा। शासन-प्रशासन में रहने का कोई अनुभव नहीं होने के बावजूद अपने 12 वर्षीय कार्यकाल में उन्होंने राज्य के भीतर कुछ ऐसे विषयों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए जनकल्याण के प्रकल्प प्रारम्भ किये जो उसके पहले तक अछूते समझे जाते थे। नर्मदा के पानी को कच्छ तक पहुंचा देना, अहमदाबाद में साबरमती नदी के सूखेपन को नर्मदा के जल से दूर करने और गुजरात में पर्यटन को एक बड़े उद्योग के रूप में स्थापित करने के साथ ही उन्होंने उसे निवेशकों की पसंदीदा जगह बना दी। अपने व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों का बड़ी ही होशियारी के साथ प्रचार करते हुए उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमताओं के प्रति विश्वास कायम किया जिसके बलबूते वे 2014 में देश के प्रधानमन्त्री बन गए। भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिलवाकर उन्होंने वह कारनामा कर दिखाया जो अटल जी जैसा अनुभवी नेता तक नहीं कर सका था। शुरुवात में ऐसा लगा भी कि गुजरात की सफलता को दिल्ली में दोहराना आसान नहीं होगा लेकिन ज्यादा वक्त नहीं बीता और उन्होंने ये संकेत दे दिए कि भारत सरीखे समस्याग्रस्त और विविधता भरे देश की जिम्मेदारी सँभालने का हुनर उनके पास है जिसका आधार उनका आत्मविश्वास और किसी भी विषय की गहराई में जाकर उसे समझने की प्रवृत्ति थी। पांच साल की उनकी सरकार को लेकर तमाम बातें कही जाती रहीं। चौतरफा विरोध और विवाद उन्हें घेरे रहे लेकिन उन सबसे अविचलित रहकर श्री मोदी अपनी कार्ययोजना के अनुसार कदम आगे बढ़ाते रहे और 2019 के आम चुनाव में पहले से भी ज्यादा बहुमत के साथ सत्ता में लौटे। इंदिरा जी के बाद इस तरह की सफलता किसी सत्तासीन प्रधानमन्त्री को पहली मर्तबा मिली। निश्चित रूप से ये उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता का कमाल ही था वरना भाजपा के सांसदों के विरुद्ध लोगों के मन में गुस्सा कम नहीं था। दूसरी पारी में मिली सफलता का जश्न लम्बे समय तक मनाने की बजाय उन्होंने तेजी से शुरूवात करते हुए कुछ नए काम हाथ में लिए जिनमें सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण है जल संरक्षण। गत दिवस मन की बात नामक अपने रेडियो प्रसारण में उन्होंने इस विषय पर पूरे देश का ध्यान आकर्षित करते हुए विभिन्न क्षेत्रों की नामी-गिरामी हस्तियों का आह्वान किया कि वे जल संरक्षण के इस अभियान में अपना योगदान दें। प्रधानमन्त्री ने उन व्यक्तियों और स्वयंसेवी संस्थाओं की जानकारी साझा करने की अपील भी की जो इस कार्य में पहले से जुटे हुए हैं। श्री मोदी ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि जल संरक्षण उनके इस कार्यकाल में सर्वोच्च प्राथमिकता पर होगा। उल्लेख्नीय है बीते पांच साल में उन्होंने स्वच्छता और शौचालय जैसे अछूते विषयों को राष्ट्रीय विमर्श का विषय बनाकर जनता के मन में अपनी सकारात्मक छवि बनाई थी। हालाँकि इसको लेकर उनका मजाक भी बना लेकिन उससे अप्रभावित हुए बिना वे आगे बढ़ते गए और अमिताभ बच्चन जैसे शख्स तक को उस मुहिम में शरीक कर लिया। साफ-सफाई और शौचालय जैसे अभियानों की सार्थकता को जिस तरह समाज की स्वीकृति और समर्थन मिला उसे देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि जल संरक्षण संबंधी उनका अभियान भी राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में सफलता की सीढियां चढ़ेगा। प्रधानमन्त्री ने ये विषय ऐसे समय उठाया जब पूरा देश भयंकर गर्मी और उससे उत्पन्न जलसंकट से हलाकान हो चुका है। देश के बड़े हिस्से में पीने के पानी का अभूतपूर्व संकट है। मानसून के आगमन में कुछ दिनों की देरी से हालात और भी ज्यादा गंभीर हो गए हैं। जाहिर तौर पर यही सही समय है जब लोगों को जल संरक्षण के प्रति प्रेरित किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने आगामी पांच साल में हर घर तक पेय जल की लाइन पहुँचाने का जो संकल्प किया उसके लिए जल संरक्षण अत्यंत जरूरी है। इसे केवल सरकारी कार्यक्रम न बनाकर उन्होंने पूरे समाज को उससे जोडऩे की जो मंशा जताई वह उनकी दूरंदेशी को दर्शाता है। लेकिन ये सच है कि इस कार्य में हर व्यक्ति को हाथ बंटाना पड़ेगा। पानी की बर्बादी को रोकना हम सभी का कर्तव्य है। बरसाती जल को कैसे संग्रहित करें इसके लिए जो भी तरीके हैं उनका उपयोग किया जाना चाहिए। गिरते भूजल को रोकने के लिए भी ऐसा करना जरूरी है। प्रधानमन्त्री ने अपने मन की जो बात कही उसे हर देशवासी को अपने मन की बात बनाना चाहिये क्योंकि पानी का संरक्षण केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए नहीं बल्कि अगली पीढिय़ों के लिए भी जरूरी है। इसके पहले कि समस्या पूरी तरह लाइलाज हो जाये उसका समाधान कर लेना ही बुद्धिमानी होगी। प्रधानमंत्री के इस अभियान को राजनीति से ऊपर उठकर समर्थन मिलना राष्ट्रहित में होगा।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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