Thursday 18 July 2019

कुलभूषण : फांसी टली पर खतरा बाकी है

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के बहुप्रतीक्षित फैसले ने पूरे भारत को हर्षित कर दिया। कल का पूरा दिन बड़ी ही उहापोह में बीता। किसी अमंगल की आशंका से जनमानस डरा हुआ था। शाम होते ही हेग से ये जानकारी आई कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के 16 में से 15 न्यायाधीशों ने पाकिस्तान द्वारा तेहरान से अगवा कर नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जादव को फांसी देने के फैसले पर रोक लगाते हुए उस पर पुनर्विचार के साथ ही भारतीय राजनयिक अधिकारियों को उससे मिलने की सुविधा प्रदान करने का निर्देश भी दिया। हालाँकि न्यायालय ने कुलभूषण की सजा माफ करने और उसे भारत को सौंपे जाने के आग्रह को ठुकरा दिया लेकिन पकिस्तान को विएना संधि के उल्लंघन का दोषी मानते हुए गिरफ्तारी की सूचना तीन सप्ताह देर से देने के अलावा कुलभूषण को भारतीय राजनायिकों से नहीं मिलने देने हेतु जिम्मेदार भी माना। इस फैसले का तात्कालिक लाभ ये हुआ कि कुलभूषण को फांसी टल गयी। अब पाकिस्तानी अदालत को पूर्व में दी गई सजा पर विचार करना होगा और भारतीय दूतावास के अधिकारी उससे भेंट कर उसकी सहायता कर सकेंगे। यद्यपि इसे उसकी जीवन रक्षा की गारंटी नहीं कहा जा सकता क्योंकि पाकिस्तान विश्व बिरादरी के समक्ष निष्पक्ष न्यायिक प्रक्रिया का दिखावा चाहे कितना भी करे लेकिन वह कुलभूषण को फांसी देने का हरसंभव प्रयास जारी रखेगा। एकबारगी मान भी लें कि मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया जावे तब भी उसका जीवित भारत लौटना आसान नहीं होगा। अदालत ने भारत की अनेक दलीलों को अस्वीकार भले किया हो लेकिन फैसले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू ये है कि केवल पाकिस्तानी न्यायाधीश को छोड़कर बाकी सभी ने कुलभूषण की फांसी पर लगी रोक जारी रखने के साथ ही उसे भारतीय राजनयिकों से संपर्क की सुविधा देने का फैसला स्पष्ट शब्दों में देते हुए पकिस्तान को इस बाबद विएना अन्तर्राष्ट्रीय संधि के प्रावधानों के उल्लंघन का कसूरवार माना। वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भारत के पक्ष को जिस सटीक और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया उसके लिए वे अभिनन्दन के साथ ही पूरे देश की ओर से कृतज्ञता के अधिकारी भी हैं। साल्वे जी अधिकतर लन्दन में रहते हैं और देश के सबसे महंगे अधिवक्ताओं में उनकी गिनती होती है लेकिन उन्होंने कुलभूषण की जान बचाने के लिए मात्र एक रूपये की फीस लेकर पाकिस्तानी तर्कों की हवा निकाल दी। कल के फैसले का असर पाकिस्तान पर क्या होगा इसे लेकर संशय है। लेकिन श्री साल्वे ने स्पष्ट किया है कि निर्णय का पालन नहीं होने पर भारत के सामने सं.रा.सुरक्षा परिषद जाने का विकल्प है। ये फैसला कूटनीतिक दृष्टि से भी बेहद माहत्वपूर्ण है। आतंकवाद को पालने- पोसने के आरोप में फंसे पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बुरी तरह बिगड़ चुकी है। उस पर अंतर्राष्ट्रीय कर्जे का बोझ बढ़ता ही जा रहा है जिसका ब्याज चुकाते-चुकाते उसकी कमर टूटी जा रही है। प्रधानमंत्री इमरान खान भीख का कटोरा लेकर अमेरिका जाने के पहले हाफिज सईद की गिरफ्तारी का नाटक कर चुके हैं। लेकिन उसके बाद भी उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध ही है। यदि हालात ऐसे ही रहे तो बड़ी बात नहीं फौज के संरक्षण में सत्ता तक पहुंचे इमरान फौज द्वारा ही अपदस्थ कर दिए जाएं। कल आये फैसले में अमेरिका और चीन के न्यायाधीश ने भी पाकिस्तान को विएना संधि के उल्लंघन का दोषी मानकर दिखा दिया कि विश्व बिरादरी में भारत की वजनदारी तेजी से बढ़ रही है। इस निर्णय से दुनिया भर में फैले भारतवंशियों के बीच सुरक्षा का भाव भी उत्पन्न हुआ है। बीते कुछ वर्षों में मुसीबत में फंसे अप्रवासी भारतीयों को सुरक्षित निकाल लाने में विदेश मंत्रालय ने जो शानदार कार्य किया उसकी सर्वत्र प्रशंसा हुई। पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने विदेश विभाग को आम हिन्दुस्तानी के दु:ख दर्द से जोड़कर जो सहृदयता दिखाई उससे अप्रवासी भारतीयों में आत्मविश्वास जागा है। हेग की अदालत में बैठे 16 न्यायाधीशों में शामिल पाकिस्तानी सदस्य को भी ये मानना पड़ा कि भारत की याचिका पर विचार करना अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है जबकि पाकिस्तान का दावा इसके उलट था। भारत के पूरे तर्कों और मांगों को भले ही नहीं माना गया हो लेकिन कुलभूषण को न्याय दिलवाने के लिए भारत सरकार की कोशिशों को इससे ताकत मिली तथा पाकिस्तान निश्चित तौर पर दबाव में आया है। बावजूद इसके संतुष्ट होकर बैठ जाना नादानी होगी क्योंकि पाकिस्तानी सत्ता विशेष रूप से फौजी तबका नीचता की पराकाष्ठा तक चला जाये तो कोई अचरज नहीं होगा। कुलभूषण को बीमारी का बहाना बनाकर मार दिए जाने की भी आशंका विद्यमान है। ऐसे में दूसरे चरण में भारत को अमेरिका के साथ ही चीन से बातचीत के जरिये कुलभूषण की सुरक्षित वापिसी का कूटनीतिक प्रयास करना चाहिए। भारत के नये विदेश मंत्री उक्त दोनों ही देशों में भारत के राजदूत चूंकि रह चुके हैं इसलिए उनके अपने पुराने राजनयिक सम्पर्क इस दिशा में उपयोगी हो सकते हैं। अमेरिकी और चीनी न्यायाधीश द्वारा भी भारत के पक्ष में फैसला देने से पाकिस्तान बेहद दबाव में है और यही सबसे अच्छा मौका है कुलभूषण की रिहाई के लिए उसे बाध्य करने का। हालाँकि इमरान खान के लिए ऐसा करना इधर कुआं उधर खाई जैसी स्थिति से गुजरना होगा लेकिन ये भी सही है कि क्रिकेटर से प्रधानमंत्री बने इमरान हाल के वर्षों में पाकिस्तान के सबसे कमजोर और अनुभवहीन प्रधानमंत्री साबित हो रहे हैं जबकि भारत में प्रधानमंत्री न सिर्फ  घरेलू अपितु वैश्विक स्तर पर भी बेहद ताकतवर हैं और उस दृष्टि से ये भारत के लिए एक स्वर्णिम अवसर है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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