Saturday 27 July 2019

संदर्भ-आजम खान : जूते खाय कपाल ........

उप्र की रामपुर सीट से चुने गये सपा के लोकसभा सदस्य आजम खान की बदजुबानी नई बात नहीं है। चुनाव के दौरान रामपुर से भाजपा उम्मीदवार जयाप्रदा के बारे में की गई उनकी अश्लील टिप्पणी पर भी काफी हल्ला मचा था। आजम अतीत में भारत माता को डायन कहने तक की हद तक जा चुके हैं। हाल ही में उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि उनके पूर्वज बंटवारे के समय पाकिस्तान नहीं गये। वैसे उनकी विवादस्पद सार्वजनिक टिप्पणियों की सूची बनाई जाए तो 25-50 पृष्ठ की पुस्तिका प्रकाशित हो सकती है। उनकी बदजुबानी को सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और अब नये सुप्रीमो अखिलेश का समर्थन और संरक्षण रहा है क्योंकि वे पार्टी के मुस्लिम चेहरे हैं। पिछले दिनों आजम को भू माफिया घोषित कर दिया गया। रामपुर में लोगों की जमीन जबरन कब्जाने के कई प्रकरण उनके विरुद्ध दर्ज किये जा चुके हैं। इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि उनके इलाके के दर्जनों मुस्लिम पुरुष और महिलाएं खुलकर सामने आये और आजम द्वारा बलपूर्वक उनकी जमीनें छीनी जाने के आरोपों की पुष्टि की। लेकिन आज की चर्चा का केंद्र दो दिन पहले लोकसभा में बोलते हुए आजम द्वारा आसन्दी पर विराजमान महिला सांसद रमा देवी से की गई बेहूदगी है। सदन में वे अपने भाषण में इधर-उधर देखते हुए शेर सुनाने लगे तब रमा देवी ने उन्हें टोकते हुए आसंदी से मुखातिब होकर अपनी बात कहने का निर्देश दिया जिस पर उन्होंने ऐसी बात कह दी जो पूरी तरह निम्नस्तरीय होने से  महिला के अपमान की श्रेणी में रखी जाने लायक थी। उस पर होहल्ला मच गया। रमा देवी भाजपा सांसद हैं इसलिए सत्ता पक्ष ने आजम खान के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और बात माफी मांगने अन्यथा सदस्यता समाप्त किये जाने तक बढ़ गई। गत दिवस लोकसभा में अधिकांश महिला सांसदों ने इस प्रकरण पर एक स्वर से आजम खान को घेरा और तकरीबन सभी पक्षों ने लोकसभा अध्यक्ष से मांग की कि उनके विरुद्ध इतनी कड़ी कार्रवाई की जाए जिससे भविष्य में कोई और इस तरह की हिमाकत न कर सके। आश्चर्य की बात रही कि अखिलेश यादव ने ये कहते हुए आजम का बचाव किया कि उनकी मंशा पीठासीन महिला सांसद के अपमान की नहीं थी। इसी तरह की कोशिश कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी और एआईएमआईएम सदस्य असदुद्दीन ओवैसी द्वारा की गई लेकिन सदन के भीतर और बाहर आजम खान के विरोध में ही ज्यादा आवाजें उठीं। महिला सांसदों ने तो पार्टी की सीमा तोड़कर आजम खान के विरुद्ध सख्त कदम उठाने की मांग की। लोकसभा अध्यक्ष ने इस मामले पर सर्वदलीय बैठक भी बुलाई और संभवत: वे सोमवार को इस बारे में निर्णय सुनायेंगे। ये भी संभव है की बेहद मोटी चमड़ी वाले आजम खान सदन में माफी मांगकर बड़ी सजा से खुद को बचा लें। लेकिन उन जैसे नेताओं के कारण संसदीय लोकतंत्र की जो फजीहत हो रही है उसके मद्देनजर अब राजनीतिक दलों को महज चुनाव जीतने की क्षमता को ही प्रत्याशी की योग्यता का आधार मानने वाली सोच त्यागनी चाहिए। आजम खान तो खैर अव्वल दर्जे की गिरी हुई मानसिकता वाले व्यक्ति हैं जो मुस्लिम नहीं होते तो मुलायम सिंह और उनकी पार्टी भी उन्हें इतना सिर पर नहीं चढ़ाती लेकिन दूसरी पार्टियों में भी ऐसे सांसदों की कमी नहीं है जो समय-समय पर ऊल-जलूल टिप्पणियों के जरिये राजनीतिक ही नहीं अपितु पूरे सार्वजानिक वातावरण को प्रदूषित करते रहते हैं। भाजपा में भी साक्षी महाराज जैसे लोग हैं जो व्यर्थ की बातें कहकर विवाद पैदा करते रहते हैं। नाम लेने बैठें तो संसद ही नहीं विधानसभाओं में भी ऐसे घटिया लोग चुनकर आ जाते हैं जिन्हें संसदीय गरिमा और सामजिक शिष्टाचार का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहता। लेकिन आजम खान ने लोकसभा में रमा देवी से जिस अंदाज में बात की वह अखिलेश यादव की नजर में भले ही साधारण बात रही हो और हो सकता हो अपने कुसंस्कारों की वजह से आजम खान ने बिना आगे-पीछे सोचे वह सब कहा हो किन्तु समय आ गया है जब उन्हें ये एहसास करवा दिया जाए कि संसद वर्जनाहीन मानसिकता वाली पेज थ्री संस्कृति आधारित देर रात की पार्टी नहीं है जिसमें महिलाओं के साथ बेतकल्लुफी में शालीनता को पूरी तरह तिलांजलि दे दी जाए। आजम खान केवल मुस्लिम होने की खाते रहे हैं लेकिन उनकी जुबान जिस तरह से बेलगाम होती जा रही है उसे देखते हुए उन्हें सबक सिखाना जरूरी हो गया है। लोकसभा के वर्तमान अध्यक्ष ओम बिरला ने जिस तरह से सदन को संचालित करते हुए एक अनुशासन कायम किया उसकी वजह से सामान्य तौर पर अपेक्षित है कि आजम अगर सदन के भीतर अपने कुकृत्य के लिए रमा देवी से बिना शर्त माफी नहीं मांगते तब उस बदतमीजी पर उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। हो सकता है उप्र सरकार द्वारा उनके विरुद्ध दर्ज किये गये भूमि हड़पने सम्बन्धी अपराधिक मामलों की वजह से उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा गया हो लेकिन उनकी हरकत किसी भी सूरत में काबिले माफी नहीं है। बात-बात में शेरो-शायरी सुनाने वाले आजम खान को इस देसी उक्ति में निहित भाव को भी समझ लेना चाहिए : -
जऱा सी जिभिया कर गई बाल बवाल, चुपके से भीतर हुई और जूते खाय कपाल।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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