Friday 19 July 2019

लूटी गई माया के आनंद पर रोक जरूरी

बसपा प्रमुख मायावती का ये तंज पूरी तरह से सही है कि भाजपा आपने गिरेबान में भी झांके क्योंकि चाहे जितने भी दावे करे लेकिन आर्थिक भ्रष्टाचार के मामले में वह दूसरी पार्टियों से अलग कतई नहीं है। लेकिन ऐसा कहने से उनके अनुज और हाल ही में बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाये गये आनंद कुमार की बेशुमार संपत्ति को केवल इसलिए उपेक्षित नहीं किया जा सकता कि वे दलित हैं और बाकी पार्टियों के नेताओं और परिजनों ने भी भ्रष्टाचार के जरिये अपनी अनेक पीढिय़ों का इंतजाम कर लिया है। मायावती की खुन्नस तब सामने आई जब आयकर विभाग द्वारा आनंद के 400 करोड़ के बेनामी प्लाट को नोएडा में जप्त कर लिया गया। उल्लेखनीय है आनंद पर लम्बे समय से आयकर विभाग नजर रखे हुआ था। 2007 से 2012 के बीच मायावती के शासन काल में आनंद जिस तरह अरबपति बने और विभिन्न कंपनियों के मालिक या डायरेक्टर के पद तक पहुंचे वह व्यवसायिक कौशल होता तब किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए। लेकिन आनंद ने यह सम्पन्नता जिस हाथी पर आसीन होकर प्राप्त की वह सामान्य व्यक्ति भी जानता है। मायावती पर भ्रष्टाचार के मामले बरसों से चल रहे हैं जिनकी प्रगति राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर बसपा की उपयोगिता पर निर्भर करती रही है। उनकी अपनी धन संपत्ति में भी कल्पनातीत वृद्धि हुई जिसे वे दबंगी से दलित स्वाभिमान के नाम पर स्वीकार भी करती हैं। लेकिन यदि उनका बाल भी बांका नहीं हुआ तो उसकी वजह राजनीतिक स्वार्थ ही रहे। कांग्रेस के साथ भाजपा ने भी बसपा का उपयोग समय-समय पर किया जिसकी वजह से वे अब तक सुरक्षित बनी रहीं लेकिन बीते कुछ सालों से उनके चारों तरफ  का घेरा छोटा होता जा रहा है जिससे उनके शिकंजे में आने की सम्भावना बढ़ चली है। 2014 के लोकसभा चुनाव में मिला शून्य और 2017 के विधानसभा चुनाव की जबर्दस्त पराजय के बाद मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उस समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने जैसी जिल्लत तक उठाई जिसके नेताओं ने उनकी अस्मत पर हमला करने का दुस्साहस किया था और जिसकी वजह से लंबे समय तक वे सपा नेताओं खास तौर पर मुलायम सिंह यादव परिवार का मुंह देखना तक पसंद करती थीं। लेकिन नरेंद्र मोदी के खौफ  के चलते मायावती ने मुलायम सिंह का प्रचार करने मैनपुरी जाने जैसी शर्मिंदगी भी झेली। बावजूद उसके लोकसभा चुनाव में भाजपा वापिस आई। हालाँकि बसपा शून्य से 10 लोकसभा सांसदों तक पहुँच गयी लेकिन भाजपा ने उप्र में सपा-बसपा गठबंधन के जातिगत आधार को जिस तरह ध्वस्त किया उससे भारतीय राजनति में बड़ा बदलाव आया है। वैसे मायावती जैसी राजनेता ने दलित राजनीति का सामंतीकरण करते हुए अपनी सम्पन्नता को दलित उत्थान का रूप देकर कुछ नया नहीं किया क्योंकि एकाध को छोड़कर सभी छोटे और क्षेत्रीय दलों में ये प्रवृत्ति आम तौर पर देखी जा सकती है। लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने भाई आनंद और विदेश में पढ़कर आये भतीजे को पार्टी में प्रमुख जिम्मेदारी देकर एक तरह से उत्तराधिकार की प्रक्रिया को सार्वजनिक कर दिया जिसका विरोध करने का साहस कोई नहीं कर सका। पार्टी के महासचिव और ब्राह्मण चेहरे सतीश चन्द्र मिश्रा भी चुपचाप आनंद की ताजपोशी देखते रह गये। जाहिर है आनंद केवल भाई ही नहीं मायावती के आर्थिक प्रबंधक भी हैं और उनके पास आई अकूत दौलत उनके अपने पौरुष की नहीं अपितु बहिन जी के राजनीतिक प्रभाव का परिणाम है। इसीलिए उन्होंने बिना देर किये भाजपा को भी कीचड़ में सना बताते हुए याद दिलाया कि देश में चली आ रही राजनीतिक परिपाटी और शिष्टाचार के मुताबिक उसे भी उनके साथ वैसा ही सलूख करना चाहिए जैसा एक भ्रष्ट दूसरे भ्रष्ट के साथ,करता है (संदर्भ : सिकंदर और पोरस का सुप्रसिद्ध संवाद)। लेकिन मायावती भूल गईं कि राजनीति केवल नेताओं की निजी जागीर नहीं रही। देश का आम नागरिक भ्रष्टाचार को लेकर बेहद उद्वेलित है। उसके मन में ये बात गहराई तक जा बैठी है कि उसकी सारी समस्याओं और देश के पिछड़ेपन का असली कारण नेताओं द्वारा निर्लज्जता और बेरहमी से की गई अवैध कमाई है। नरेंद्र मोदी ने अपने राजनैतिक कौशल से लोगों के मन में ये बात बिठा दी है कि वे राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ रहे हैं और इसीलिये उनका सुनियोजित और संगठित विरोध होता है। गांधी परिवार को भी इसी आधार पर कठघरे में खड़ा करने में उन्हें कामयाबी मिली है। अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने के लिए छापों का सहारा लेने के आरोप भी उन पर नियमित लगा करते हैं। लेकिन इतना तो मानना ही पड़ेगा की श्री मोदी ने राजनीतिक भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय विमर्श का विषय बनाया। हॉलांकि उनकी सरकार और पार्टी पर भी जवाबी आरोप लगे। राहुल गांधी ने तो पूरा लोकसभा चुनाव चौकीदार चोर है के नारे लगवाकर लड़ा लेकिन जनता के मन में ये भरोसा जम गया है कि प्रधानमन्त्री एक दूरगामी सोच लेकर व्यवस्था सुधारने में जुटे हुए हैं। आनंद की बेनामी संपत्ति का जप्त होना मायावती को भले नागवार गुजरे लेकिन आम जनता में उसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया है। उच्चस्तरीय राजनीतिक गलियारों में व्याप्त चर्चाओं के अनुसार श्री मोदी की कार्ययोजना में ऐसे ही और भी कदम शामिल हैं। लेकिन उन्हें पक्षपात से भी बचना होगा क्योंकि येदियुरप्पा और उस जैसे कुछ बड़े भाजपा नेता भी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे रहे। मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की भाजपा सरकारें गिरने का एक कारण वहा फैला भ्रष्टाचार भी था। यदि श्री मोदी न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर की नीति पर बढ़े तब जनता भी उनके साथ मुस्तैदी से खड़ी रहेगी। राजनेताओं द्वारा जनता को लूटकर बटोरी गई माया पर आनंद लूटने का सिलसिला जिस दिन रुक जायेगा तब भारत भी कुछ वर्षों में विकासशील से विकसित देश बन जाएगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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