Saturday 6 July 2019

सीतारमन का भाषण : अंतरिम बजट का उपसंहार

अपने पूर्ववर्ती वित्तमंत्रियों क्रमश: पी चिदम्बरम और अरुण जेटली के विपरीत निर्मला सीतारमन अपने मध्यमवर्गीय होने का एहसास करवाती हैं। शायद इसीलिये उनके बजट से मध्यमवर्ग को ये उम्मीद रही होगी कि वे लोकलुभावन दिखने वाली सौगातें परोसेंगी। लेकिन ऐसा सोचने वाले दो घंटे से भी ज्यादा के उनके भाषण के बाद ये समझ नहीं पा रहे कि भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्तमंत्री ने उनकी जेब काटी या भरी? इसी तरह उद्योग और व्यापार जगत को लग रहा था कि उद्योगपतियों की हितैषी सरकार के तौर पर विपक्ष के निशाने पर रही मोदी सरकार 2019 के जबर्दस्त जनादेश के बाद उनके लिए राहतों का पिटारा खोल देगी लेकिन बजट खत्म होते-होते तक शेयर बाजार में आई गिरावट ने उद्योग जगत की त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी। देना तो दूर रहा 5 करोड़ से ज्यादा आय वालों पर आयकर का अधिभार बढ़ाकर उनकी जेब हल्की करने का दांव चल दिया। घर खरीदने पर ऋण और ब्याज अदायगी में मिली छूट से जहां निर्माण उद्योग का ठहराव दूर करने का प्रयास दिखा तो पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाकर रोजाना जनता की जेब खाली करने की चाल भी चल दी गयी। आयकर की दरें अपरिवर्तित रखी गईं। सवाल ये है कि बिना पानी पिए लगातार दो घंटे से भी ज्यादा बोलती रहीं श्रीमती सीतारमन ने ऐसा क्या किया या दिया जिसके लिए उनकी तारीफ  की जाये? लेकिन केवल इस सवाल के आधार पर बजट का विश्लेषण करना सतही होगा। दरअसल मोदी सरकार की दूसरी पारी का ये पहला बजट सही मायने में बीती फरवरी में पियूष गोयल द्वारा प्रस्तुत अंतरिम बजट का उपसंहार ही है।  कारोबारी साल की एक तिमाही बीत चुकी है। दिसम्बर से वर्ष 2020-21 का बजट बनाने की कवायद शुरू हो जायेगी। चुनाव में व्यस्त रहने से केंद्र सरकार बीते कुछ महीनों में आर्थिक मोर्चे पर ज्यादा कुछ कर नहीं सकी और यही स्थिति उद्योग व्यापार जगत की भी रही जो राजनीतिक अनिश्चितता के कारण धीमी रफ्तार से संभलते हुए चला। अब चूँकि देश में स्थिर सरकार वापिस लौटी है तथा प्रधानमंत्री के पास पर्याप्त बहुमत के साथ पांच साल का अनुभव भी है तब ये अपेक्षा करना गलत नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी ने जिस नए भारत का सपना देश के समक्ष पेश किया उसे साकार करने की दिशा में वे मजबूती से कदम बढ़ाएंगे और यही कल पेश हुए बजट का सार है जो गाँव , गरीब और किसान पर केन्द्रित  होने की वजह से आकर्षक भले न दिखे लेकिन ठोस अवश्य है, ये आंशिक तौर पर तो माना ही जा सकता है। पिछले कार्यकाल में भी श्री मोदी ने जिस अर्थनीति को लागू किया वह चकाचौंध भरी भले नहीं थी लेकिन उसने भारत की जमीनी सच्चाई को समझकर उन समस्याओं को हल करने का प्रयास जरुर किया जो आवश्यक  होने के बाद भी उपेक्षित थीं। जनधन, स्वच्छता, उज्ज्वला, रसोई गैस, शौचालय, सस्ते घर, आयुष्मान जैसी योजनाओं को उच्च और मध्यम वर्ग भले ही न समझ सका हो लेकिन प्रधानमंत्री ने गाँव और गरीब तक अपनी मजबूत पकड़ बनाकर तमाम आलोचनाओं और आशंकाओं को हॉंशिये पर धकेल दिया। वरना नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी जैसे निर्णय उनकी वापिसी को मुश्किल बनाने के लिए पर्याप्त थे। किसानों की आत्महत्या को नहीं रोक पाना और उन्हें फसल का वाजिब मूल्य प्राप्त नहीं होना बड़ा मुद्दा रहा जिसे लेकर श्री मोदी लगातार आलोचना झेलते रहे लेकिन कांग्रेस द्वारा किसानों की कर्ज माफी के वायदे पर तीन राज्य भाजपा से छीन लिए जाने के बावजूद महज पांच महीने बाद लोकसभा चुनाव में उन्हीं तीन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा को भारी-भरकम सफलता मिलना ये दर्शाता है कि प्रधानमन्त्री की नीति और नीयत पर  देश के विशाल ग्रामीण क्षेत्र को भरोसा है वहीं शहरों में रहने वाले गरीबों तक भी उनकी सरकार ने जो योजनायें और कार्यक्रम पहुंचाए उनका चमत्कारी असर पड़ा। लेकिन चर्चा और आश्चर्य का विषय ये है कि भाजपा के परम्परागत समर्थक माने जाने वाले नौकरपेशा वर्ग और व्यापार जगत के लिए पिछली मोदी सरकार ने ऐसा कुछ भी नहीं किया जो उन्हें प्रभावित करता लेकिन लोकसभा चुनाव में इस तबके ने भी फिर एक बार मोदी सरकार के नारे को हकीकत में बदल दिया। इसकी वजह ये है कि प्रधानमंत्री ने लोगों के मन में ये विश्वास जगा दिया है कि वे देश के दूरगामी हितों के मद्देनजर ऐसे रास्ते पर चल रहे हैं जो भारत को दुनिया के ताकतवर देशों के साथ बराबरी से बैठने की हैसियत दिलवाने में सहायक होगा। और इसीलिये दूसरी पारी का पहला बजट भी लोगों को खुश करने की बजाय उन छोटी-छोटी बातों पर केन्द्रित है जिनसे समाज के उपेक्षित वर्ग के उत्थान का लक्ष्य हासिल किया जा सके। किसानों और छोटे व्यापारियों को पेंशन जैसी योजना के साथ स्वास्थ्य के लिए ज्यादा राशि का आवंटन बजट की मूल भावना को दर्शाता है वहीं सड़कों सहित अधो संरचना के अन्य प्रकल्पों पर ध्यान देना विकास के पहिये को चलायमान रखने में मददगार बनेगा। रेलवे के निजीकरण जैसे उपाय भी समय की मांग हैं। सबसे बड़ी बात है प्रधानमंत्री द्वारा अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाने को लेकर आत्मविश्वास से भरा होना जो किसी भी देश की प्रगति का आधार होता है। श्री मोदी बहुत ही देसी किस्म के इंसान हैं जिन्हें समाज के बीच बतौर साधारण कार्यकर्ता काम करने का लम्बा अनुभव है। शायद यही वजह है कि उनकी पूरी राजनीति आम जनता विशेष रूप से गरीब तबके पर केन्द्रित रहा करती है। जाति और वर्ग विशेष के वोट बैंक से ऊपर उठकर सीधे जनता से जुड़े काम करने की वजह से ही वे अपने आलोचकों के भी चहेते बने हुए हैं। जहां तक बात निर्मला सीतारमन की है तो ये बजट दरअसल अंतरिम बजट के अधूरेपन को भरने की औपचारिकता मात्र होने से बड़े नीतिगत निर्णयों को समाहित नहीं कर सका। ये कहना भी गलत नहीं होगा कि ये भी कामचलाऊ ही है। अगले वित्तीय वर्ष का बजट ही सही मायने में श्रीमती सीतारमन और इस सरकार की दूसरी पारी की दिशा को स्पष्ट करेगा। आगामी कुछ महीनों में महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, जम्मू-काश्मीर में  विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। मोदी सरकार चाहती तो उन्हें ध्यान में रखते हुए खैरातों के ढेर लगा सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया। किसानों की कर्ज माफी और न्यूनतम आय के 72 हजार जैसे काँग्रेसी वायदों को जनता द्वारा ठुकराए जाने से केंद्र सरकार का हौसला बुलंद हो गया है। लेकिन तमाम अच्छाइयों के बाद भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर मोदी सरकार की मुनाफाखोरी गले नहीं उतरती। रही बात बैटरी चलित वाहनों की तो वे  फिलहाल इतने सस्ते नहीं कि आम आदमी उन्हें खरीद सके। वैसे बजट की अनेक ऐसी तकनीकी  बातें अभी सामने आना बाकी हैं जिनका समाज के हर तबके पर प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव पड़ेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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