Tuesday 23 July 2019

चंद्रयान जैसी ही कर्तव्यनिष्ठा अन्य कार्यों में भी हो

  आखिरकार अन्तरिक्ष वैज्ञनिकों की बरसों की मेहनत धरती से उड़कर आसमान तक जा पहुँची। चन्द्रमा के धरातल पर अपना लेंडर उतारने के उद्देश्य से प्रक्षेपित भारत का चंद्रयान-2 गत दिवस सफलतापूर्वक छोड़ा गया। यद्यपि अभी अंतिम लक्ष्य प्राप्त  करने में उसे डेढ़ महीने से भी कुछ दिन ज्यादा लगेंगे लेकिन प्रारंभिक चरण सफलतापूर्वक सम्पन्न होने से वैज्ञानिकों का हौसला जिस तरह से ऊंचा दिखाई दिया उसके बाद कहा  जा सकता है कि सितम्बर  के पहले सप्ताह में भारत अमेरिका , रूस और चीन के बाद चौथा देश बन जायेगा जिसका लेंडर चाँद की धरती पर उतरेगा। उससे भी बड़ी बात ये होगी कि इसरो के वैज्ञनिकों ने जिस स्थल का चयन किया वह अब तक अछूता है। चंद्रमा के जिस दक्षिणी दक्षिणी धु्रव पर भारत का विक्रम नामक लेंडर उतरेगा वहां अभी तक मानव निर्मित कोई उपकरण नहीं पहुँचा है। दावा किया जा रहा है कि चंद्रमा के नजदीक तक पहुंचे चंद्रयान-1 ने वहां पानी होने के संकेत दिए थे जबकि चंद्रयान-2 के अभियान में इसकी पुष्टि की जायेगी। और यदि ऐसा हो सका तब भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम को संचालित करने वाला इसरो विश्व के अग्रणी अन्तरिक्ष संगठन नासा  के टक्कर में खड़ा होने की हैसियत हासिल कर लेगा। यद्यपि अन्तरिक्ष संबंधी  कोई भी अभियान जब तक पूरा न हो तब तक उसे सफल नहीं माना जा सकता। अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों के अनेक महत्वाकांक्षी अभियान भी बुरी तरह विफल हुए लेकिन विज्ञान गलतियों  से सीखकर आगे बढऩे की सतत प्रक्रिया है और ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि इसरो ने तमाम विफलताओं के बावजूद अपने  बलबूते जो कुछ भी हासिल किया उसकी वजह से भारत दुनिया भर में अपनी धाक  जमाने में सफल रहा और अनेक देशों के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने का व्यवसाय भी उसे मिला।  उल्लेखनीय है विज्ञान की खोजों  से आर्थिक लाभ अर्जित करना ही विकसित देशों की  समृद्धि का आधार है। यहाँ तक कि वहां  के विश्वविद्यालय एवं अन्य संस्थान तक शोध का व्यवसायिक उपयोग करते हुए धनार्जन  करते हैं। उस दृष्टि से भारत में इसरो ने इस दिशा में अच्छी साख बनाई और अनेक देशों के दर्जनों उपग्रह एक साथ अन्तरिक्ष में भेजकर अपनी तकनीकी क्षमता और श्रेष्ठता साबित कर दी। प्रारम्भ में भारत सरीखे विकासशील देश के लिए इस तरह के अभियानों के  औचित्य पर सवाल भी उठे। पीने का पानी, शौचालय, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं से करोड़ों लोगों के वंचित रहने के बावजूद अन्तरिक्ष कार्यक्रमों पर अरबों रूपये खर्च करने के बारे में खूब बहस भी चली। ये भी कहा गया कि इसरो को केवल मौसम, संचार और जासूसी जैसे उद्देश्य से उपग्रह छोडऩे तक सीमित रहना चाहिये लेकिन जब भारत ने 2014 में बहुत ही कम खर्च में मंगल ग्रह की कक्षा में अपना उपग्रह मंगलयान स्थापित  करने में सफलता हासिल कर ली तब ये सोचा जाने लगा कि अन्तरिक्ष में लम्बी छलांगें लगाना केवल वैज्ञानिक या सामरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक महाशक्ति बनने के लिए भी आवश्यक हो गया है। उसी के बाद इसरो को उपग्रह प्रक्षेपण का व्यवसाय अनेक देशों से मिलने लगा और इसमें एक गौरवशाली  अध्याय तब और जुड़ गया जब अमेरिका जैसे अन्तरिक्ष विज्ञान के सूरमा तक ने अपना एक उपग्रह इसरो के जरिये अन्तरिक्ष में भेजा। मंगलयान की सफलता ने हमारे वैज्ञनिकों के आत्मविश्वास में जो वृद्धि की उसी का प्रमाण है कि चंद्रयान-2 के साथ गए लेंडर विक्रम को उस दक्षिणी धु्रव पर उतारने जैसा दुस्साहसिक निर्णय लिया जा सका और इसीलिए अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस और जापान सरीखे अग्रणी देश भी इस अभियान पर पैनी निगाह रखेंगे। चन्द्रमा पर पानी मिलेगा या नहीं  और वहां मानव जीवन संभव है अथवा नहीं इन प्रश्नों का जवाब अभी बहुत दूर है और हो सकता है न भी मिले। लेकिन चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण से भारत ने ये दर्शा दिया कि एक विकासशील देश होने के बावजूद उसने इस क्षेत्र में विश्वस्तरीय दक्षता हासिल कर ली है। इस अभियान की सफलता की कामना पूरा देश कर रहा है लेकिन सफलता के इन क्षणों में भी हमें  एक बात याद रखनी होगी कि हमारा अन्तरिक्ष कार्यक्रम केवल भारत की जरूरतों की पूर्ति के साथ ही उससे होने वाली व्यवसायिक आय तक ही सीमित रहे। इस संदर्भ में सोवियत संघ का उदहारण अध्ययन का विषय है जो शीतयुद्ध से उत्पन्न आशंकाओं के चलते अन्तरिक्ष अभियानों पर अनाप-शनाप धन लुटाते-लुटाते आर्थिक संकट में फंसकर टुकड़े-टुकड़े हो गया। इसके अलावा  नासा में कार्यरत भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के देश लौटने का माहौल और अनुकूल परिस्थितियाँ बनाने की दिशा में भी सोचा जाना चाहिए जिनके कारण अमेरिका ने अन्तरिक्ष के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धियां हासिल कीं। भारत अभी भी अपने करोड़ों नागरिकों को मूलभूत सुविधाएँ देने के लिए प्रयासरत है। गरीबी, बेरोजगारी, बेघरबारी, गंदगी, बीमारियाँ, अशिक्षा और इन जैसी और समस्याओं से जंग जारी है। सरकार अरबों रूपये सामाजिक कल्याण की योजनाओं और कार्यक्रमों पर खर्च कर रही है लेकिन उनके परिणाम अपेक्षानुसार नहीं आ रहे। ऐसे में चंद्रयान के सफल प्रक्षेपण ने ये आत्मविश्वास तो जगाया ही है कि भारत चाहे तो कर  सकता है। चंद्रयान के प्रक्षेपण को कुछ दिन पहले  तकनीकी खराबी की वजह से एन वक्त पर रोकना पड़ा था। इसरो की पूरी टीम ने दिन रात काम करते हुए उस खराबी को दुरुस्त कर जल्दी ही प्रक्षेपण को सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया। ऐसी ही कर्तव्यनिष्ठा और पेशेवर ईमानदारी अन्य क्षेत्रों में भी आ जाए तब ही हमारा देश उन समस्याओं पर विजय हासिल कर सकेगा जो हमारी समूची प्रगति पर प्रश्नचिन्ह लगा देती हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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