Monday 15 July 2019

करतारपुर : काश , विभाजन के समय ध्यान दिया होता


जिसे आज छोटी सी बात समझा जाता है वही कालान्तर में बड़ी भूल के रूप में खलती है। इसका ज्वलंत उदहारण है भारतीय सीमा से कुछ किलोमीटर दूर पाकिस्तान में बना पवित्र करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जहाँ गुरु नानक देव जी ने जीवन का अंतिम समय व्यतीत किया था। देश के विभाजन के समय हमारे नेता और उनके सलाहकार इस बारे में सतर्क रहते तो वह पवित्र स्थल भारत में होता। इमरान खान के प्रधानमन्त्री बनने के बाद पकिस्तान सरकार ने करतारपुर कॉरीडोर बनाने के प्रकल्प को स्वीकृति दे दी। पंजाब सरकार के तत्कालीन मंत्री और बतौर पूर्व क्रिकेटर इमरान के मित्र नवजोत सिंह सिद्धू ने इसका श्रेय अवश्य लिया किन्तु सरकारों के स्तर पर करतारपुर कॉरीडोर बनाकर भारत से जाने वाले सिख श्रृद्धालुओं को अपने पवित्र धार्मिक स्थल के दर्शनों का पुण्य लाभ दिलाने का प्रयास लम्बे समय से से चल रहा था। बहरहाल पाकिस्तान की रजामंदी के बाद दोनों तरफ  से एक अच्छी सड़क के साथ तीर्थ यात्रियों के लिए समुचित व्यवस्थाएं करने का काम तेजी से चल पड़ा। आगामी नवम्बर में गुरुनानक देव जी के 550 वें प्रकाश पर्व पर उक्त कारीडोर का शुभारम्भ होने की उम्मीद जताई जा रही है। अभी तक भारतीय सीमा से दूरबीन की मदद से इस पवित्र स्थल का अवलोकन करने की व्यवस्था थी। लेकिन पाकिस्तान ने अपने स्वभाव अनुसार तीर्थयात्रियों से वीजा शुल्क के नाम पर पैसा उगाहने का दांव चला जबकि करतारपुर में दर्शन करके तीर्थयात्री चंद घंटों में भारतीय सीमा में लौट सकते हैं। कुछ और शर्तें थोपने का प्रयास भी उसने किया किन्तु अंतत: उसे झुकना पड़ा। गत दिवस वाघा सीमा चौकी पर हुई संयुक्त सचिव स्तर की बातचीत में प्रतिदिन 5000 तीर्थयात्रियों को बिना वीजा के जाने की अनुमति के साथ कॉरीडोर के समुचित विकास के अलावा उसका भारत विरोधी खालिस्तानियों द्वारा उपयोग नहीं किये जाने पर भी सहमति बनी। इसके लिए इमरान सरकार की सदाशयता तो स्वागतयोग्य है ही लेकिन भारत का सख्त रवैया कहीं ज्यादा श्रेय का हकदार है। पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने पकिस्तान पर जिस तरह से सैन्य और कूटनीतिक दबाव बना रखा है वह भी कल की वार्ता में भारत का पलड़ा भारी रहने के तौर पर सामने आया। उल्लेखनीय है बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत ने पकिस्तान से बोलचाल बंद करते हुए उस पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए हैं। इमरान खान तभी से लगातार वार्ता की पेशकश कर रहे हैं लेकिन मोदी सरकार उन्हें भाव नहीं दे रही। दूसरी तरफ आर्थिक मोर्चे पर पाकिस्तान पूरी तरह से बदहाली की स्थिति में आ चुका है। विश्व मंच पर भी उसकी हालत बहुत ही दयनीय है। सबसे बड़ी बात चीन से भी अब उसे पहले जैसा साथ नहीं मिल रहा। कश्मीर घाटी में आतंकवाद की जड़ें खोदने के लिए भारत सरकार जो कार्रवाई कर रही है उससे भी पकिस्तान में उथल-पुथल है। हाफिज़ सईद के वैश्विक आतंकवादी घोषित हो जाने के बाद से उस पर दुनिया भर का दबाव बढ़ रहा है। कुल मिलाकर पाकिस्तान इस समय बेहद मुसीबत के दौर में है वरना वह करतारपुर कॉरीडोर विषयक व्यवस्थाओं पर इतना नरम रुख नहीं दिखाता । भारत सरकार की विदेश नीति भी कम प्रशंसा की पात्र नहीं है जिसकी वजह से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में पूरी तरह कुख्यात हो चुका है। लेकिन इस सन्दर्भ में एक सवाल बार-बार मन को कचोटता है कि देश के बंटवारे के समय हमारे भाग्य विधाताओं के दिमाग में करतारपुर साहिब को भारत में रखने के बारे में कोई विचार क्यों नहीं आया? और यदि आया था तब उन्होंने उसका संज्ञान क्यों नहीं लिया? विभाजन की रूपरेखा एक या दो दिन में तो नहीं बनी होगी। लार्ड माउन्टबेटन तो पकिस्तान के अलावा सिख होमलैंड बनवाने का षड्यंत्र तक रच चुके थे। वह तो पाकिस्तान बनने के संकेत स्पष्ट होते ही वहां दंगे फसाद शुरू हो गए जिसमें सिखों के साथ भी अमानुषिक अत्याचार होने लगे और बतौर शरणार्थी उन्हें भारत में शरण लेना पड़ी जिसके कारण उस समय तो सिख होमलैंड की बात दबकर रह गयी लेकिन उसके बीज बाद में पंजाबी सूबा और खलिस्तान के रूप में अंकुरित हुए। कहने वाले ये कह सकते हैं कि 70 वर्ष बाद इस बात को छेडऩे का क्या औचित्य है? लेकिन जो कौम इतिहास की गलतियों को भुलाकर वर्तमान में मशगूल हो जाती है वह भविष्य में भी धोखा खा सकती है। दुर्भाग्य से भारत का इतिहास गलतियों से सबक नहीं लेने की प्रवृत्ति से भरा हुआ है। तात्कालिक लाभ की खातिर देश और समाज के दूरगामी हितों की उपेक्षा करने का दुष्परिणाम ही सदियों की गुलामी के रूप में हमें भोगना पड़ा। यदि करतारपुर साहिब जैसे सिखों के सबसे पवित्र श्रद्धा केन्द्रों में से एक को लेकर तत्कालीन नेतागण थोड़ा सा ध्यान दे देते तब शायद हमें पाकिस्तान से नि:शुल्क वीजा जैसी छोटी से चीज के लिए बात नहीं करनी पड़ती। खैर, जो हो चुका सो हो चुका लेकिन भारत जैसे विशाल देश को अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर बेहद सतर्क और संवेदनशील रहना चाहिए। पाकिस्तान के नर्म पड़ जाने मात्र से खुश होकर बल्लियों उछलने लगना मूर्खों के स्वर्ग में विचरण करने जैसा होगा क्योंकि भारत की हर सौजन्यता का प्रत्युत्तर उसने अव्वल दर्जे की धूर्तता और नीचता से दिया है। करतारपुर साहिब कॉरीडोर प्रारंभ होना निश्चित तौर पर खुशी की बात होगी लेकिन उसके जरिये खलिस्तानी आतंक वापिस न लौट आये इसका ध्यान सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर रखा जाना चाहिए।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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