भारतीय टीम के पूर्व कप्तान और दुनिया के सबसे लोकप्रिय क्रिकेटरों में से एक महेंद्र सिंह धोनी ने विश्व कप से फुर्सत होते ही भारतीय सेना से जुडऩे की इच्छा व्यक्त की और उन्हें मानद लेफ्टीनेंट कर्नल का दर्जा देकर पैराशूट रेजीमेंट में टेरिटोरियल आर्मी यूनिट में प्रशिक्षण दिया जा रहा है । 31 जुलाई से 15 अगस्त तक जम्मू - कश्मीर में रहते हुए वे पेट्रोलिंग गार्ड और पोस्ट ड्यूटी जैसे काम करेंगे । इसके पहले सचिन तेंदुलकर भी वायु सेना में इसी तरह जुड़ चुके हैं। प्रसिद्ध अभिनेता नाना पाटेकर का सेना से जुड़ाव भी लोगों की जानकारी में है । धोनी भारतीय क्रिकेटरों में सचिन के बाद सबसे ज्यादा पैसे वाले हैं। बतौर खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों से उनकी विदाई की चर्चा जोरों पर है। हालाँकि अब तक उन्होंने सन्यास नहीं लिया लेकिन 39 साल की आयु में क्रिकेट खेलते रहना कठिन है। विश्व कप के सेमी फायनल मैच में धोनी के रन आउट होने पर उनकी शारीरिक क्षमता को लेकर काफी सवाल उठे क्योंकि विकेट के बीच तेजी से दौड़कर रन बनाने वालों में धोनी को बेजोड़ माना जाता रहा है । उस मैच में भारत की नजदीकी हार का कारण उनके रन आउट होने को ही माना गया वरना वे विषम परिस्थितियों में भी मुकाबला भारत के पक्ष में मोड़ लाये थे । कहते हैं वे पहली बार ड्रेसिंग रूम में आकर रुआंसे देखे गये। निश्चित रूप से ये उनका आखिरी विश्व कप मैच था। चर्चा है बीसीसीआई ने उन्हें सन्यास की घोषणा से रोक रखा है । लेकिन ये तय है कि मुख्य धारा के क्रिकेट से वे दूर होते जा रहे हैं । ऐसे में उन्होंने भारतीय सेना में अपनी मानद सेवा देने का जो निर्णय किया वह अच्छा संकेत है । भले ही दो चार हफ्ते के प्रशिक्षण मात्र से वे पूरी तरह सेना के सांचे में नहीं ढल सकते लेकिन उन सरीखी नामी-गिरामी हस्तियों का प्रतीकात्मक जुड़ाव भी असरकारक होता है और उस लिहाज से धोनी के इस कदम का स्वागत होना चाहिए । ये हकीकत किसी से छिपी नहीं है कि भारतीय सेना विशेष रूप से थल सेना में अफसरों की बहुत कमी है। सत्तर - अस्सी के दशक तक युवाओं में सेना का अफसर बनने का जबर्दस्त आकर्षण देखा जाता था । एनसीसी के जरिये महाविद्यालयीन विद्यार्थी सेना में अपना भविष्य देखा करते थे लेकिन बीते दो ढाई दशक में हालात पूरी तरह से बदल गए । देशभक्ति का ज्वार तो उछाल मारता देखा जा सकता है किन्तु जब सेना में भर्ती होने की बात आती है तब सैनिक बनने के इच्छुक बेरोजगारों की भीड़ उमड़ पडती है लेकिन अफसर बनने वाले युवाओं का टोटा पड़ जाता है । इससे निपटने के लिए सेना ने सेवा शर्तों के साथ ही पदोन्नति के नियमों को भी काफी आकर्षक बनाया लेकिन समस्या यथावत है। धोनी के सांकेतिक सैन्य प्रशिक्षण से ये समस्या हल हो जायेगी ये मान लेना तो खुशफहमी होगी लेकिन यदि उन जैसी और हस्तियाँ इस तरह सेना के साथ जुड़ें तब निश्चित रूप से कुछ न कुछ फर्क तो पड़ेगा। भारत जैसे देश में सेना में अनिवार्य रूप से नौकरी करने जैसा अमेरिकी नियम तो कभी लागू नहीं हो सकता लेकिन सेना में अफसरों की कमी को लम्बे समय तक बनाये रखना भी देश की सुरक्षा के लिहाज से चिंताजनक है । आज पूरा देश कारगिल दिवस के बहाने भारतीय सेना के वीर जवानों और युवा अफसरों के शौर्य और सर्वोच्च बलिदान का स्मरण कर श्रद्धावनत है । ऐसे में महेंद्र सिंह धोनी को सेना की वर्दी में देखकर युवाओं में सेना के जरिये देश की सेवा करने की भावना उत्पन्न होगी ये उम्मीद तो की ही जा सकती है। इसी के साथ ये अपेक्षा भी गलत नहीं होगी कि खेल के साथ फिल्म जगत के कुछ और युवा उत्साही कलाकार भी सेना के साथ जुड़कर उत्प्रेरक की भूमिका निभाएंगे । किसी शायर ने इसी संदर्भ में बड़ी ही सटीक पंक्तियाँ लिखी थीं :-
चलो चलते हैं मिल जुलकर वतन पर जान देते हैं , बहुत आसान है कमरे में वन्दे मातरम कहना।
- रवीन्द्र वाजपेयी
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