Monday 8 July 2019

कर्नाटक में कांग्रेस का दांव उलटा पड़ गया

बरसों पहले जो गलती भाजपा ने उप्र में मायावती को साझा सरकार का मुख्यमंत्री बनवाकर की थी, वही कांग्रेस ने कर्नाटक में कुमारस्वामी को गद्दीनशीन करवाकर दोहराई। पिछले विधानसभा चुनाव में वहां भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी लेकिन बहुमत से सात-आठ सीटें उसे कम मिलीं। पूरे परिणाम आने के पहले ही सोनिया गांधी ने कुमार स्वामी के पिताश्री एचडी देवगौड़ा से बात कर उनके बेटे को मुख्यमंत्री बनवाने का प्रस्ताव दे डाला। राज्यपाल चूँकि भाजपा के थे इसलिए उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा को सरकार बनाने का अवसर दिया जरूर लेकिन उनकी दशा वही हुई जो 1996 में बनी अटल जी की 13 दिन की सरकार की हुई। दरअसल भाजपा तोडफ़ोड़ का अवसर चाहती थी लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण विश्वास मत आनन-फानन में पेश करना पडा जिसमें वह विफल रही और फिर कांग्रेस के समर्थन से कुमार स्वामी सत्ता पा गए। उपमुख्यमंत्री पद जरुर कांग्रेस के हिस्से में आया। वैसे कुमार पहले भी भाजपा की मदद से मुख्यमंत्री बने थे लेकिन उन्होंने उसके साथ वही किया जो अतीत में मायावती उप्र में कर चुकी थी। वैसे भी कुमार स्वामी की छवि एक भ्रष्ट नेता की रही है। उनकी एकमात्र योग्यता पूर्व प्रधानमन्त्री का पुत्र होने से ज्यादा नहीं है। कांग्रेस को हरवाने में भी देवगौड़ा परिवार का खासा योगदान रहा। लेकिन महज भाजपा को रोकने के लिए सोनिया जी ने वह दांव चला जिसको तात्कालिक सफलता भले मिल गयी हो लेकिन पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को कुमारस्वामी की सत्ता बर्दाश्त नहीं हुई। और वे भीतर-भीतर सरकार को कमजोर करने में लगे रहे। ये कहने में भी कुछ गलत नही है कि उस वजह से सरकार का कामकाज भी प्रभावित हुआ। हालांकि विधान सभा और लोकसभा के कुछ उपचुनावों में गठबन्धन को अच्छी खासी सफलता मिल गई लेकिन स्थानीय निकाय के चुनावों में भाजपा अपनी जमीन हासिल करने में काफी हद तक कामयाब रही। लोकसभा चुनाव में भी देवगौड़ा के जनता दल ( एस ) के साथ कांग्रेस का गठजोड़ हुआ लेकिन अविश्वास की खाई चौड़ी होती गई। जिस वजह से सरकार के स्थायित्व पर संकट के बादल मंडराते रहे। अनेक बार तो कुमारस्वामी ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि सरकार चलाना मुश्किल हो रहा है। बावजूद उसके लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियां मिलकर लड़ीं लेकिन मोदी लहर ने गठबंधन की हवा निकाल दी। हालत यहाँ तक हो गयी कि एचडी देवगौड़ा और उनके पौत्र तक चुनाव ह़ार गये। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडग़े और वीरप्पा मोइली भी नहीं जीत सके। उसके बाद से ही ये अटकलें लगती रहीं कि कुमारस्वामी की सरकार भाजपा गिरवा देगी। लेकिन ऐसा लगता है पार्टी का आलाकमान जल्दबाजी के मूड में नहीं है और इसीलिये उसने छापामार शैली अपनाते हुए कांग्रेस विधायकों से इस्तीफा दिलवाने का दांव चला जिसके तहत बीते सप्ताह अनेक विधायक त्यागपत्र देकर मुम्बई जा बैठे। खबर मिलते ही कुमारस्वामी अमेरिका से भागे - भागे आये। इस दौरान ये खबर आ गई कि कुछ और इस्तीफा देने वाले हैं। ऐसा होने पर सरकार का बहुमत समाप्त हो जायेगा और भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिल सकेगा। हालांकि बचाव कार्य शुरू हो गया है और श्री देवगौड़ा ने श्री खडग़े को मुख्यमंत्री बनाने का सुझाव देकर कांग्रेस को खुश करने का पांसा फेंका लेकिन सही बात ये है कि कर्नाटक जबरदस्त राजनीतिक संकट से गुजर रहा है और प्रदेश सरकार एक तरह से आक्सीजन पर टिकी है। कांग्रेस और जनता दल ( एस ) इसके लिए भाजपा को दोषी ठहरा रहे हैं वहीं भाजपा का कहना है कि श्री सिद्धारमैया इस अस्थिरता के लिए जिम्मेदार हैं और ब्लैकमेल करते हुए खुद मुख्यमंत्री बनने का प्रपंच रच रहे हैं। श्री देवगौड़ा द्वारा श्री खडग़े का नाम आगे बढ़ाने के पीछे भी पूर्व मुख्यमंत्री को रोकने का प्रयास लगता है। लेकिन इस रस्साखींच में कांग्रेस का सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि उसने जनता दल ( एस ) को फिर से खड़ा कर दिया। श्री देवगौड़ा चूँकि एक जाति विशेष के बड़े नेता हैं इसलिए कुमारस्वामी के हटने से उस जाति के बीच कांग्रेस की स्थिति खलनायक की बन जायेगी। कुमारस्वामी की खराब छवि का नुकसान कांग्रेस को लोकसभा में जमकर हुआ। यदि वह विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद चुपचाप विपक्ष में बैठ जाती तब भाजपा का सत्ता प्रेम उसे जनता दल (एस) के शिकंजे में फंसने के लिए मजबूर करता क्योंकि दोनों ही पार्टियां इतनी जल्दी मध्यावधि चुनाव का जोखिम नहीं उठातीं और उस सूरत में देवगौड़ा परिवार और येदियुरप्पा के बीच वर्चस्व और अहं की लड़ाई होना अवश्यम्भावी था जिसका लाभ कांग्रेस लोकसभा चुनाव में जरुर उठा लेती। लेकिन सोनिया जी की जिस तत्परता को कांग्रेस की सफल रणनीति माना गया वह अंतत: आत्मघाती साबित हुई और धीरे - धीरे सरकार की साख घटती चली गयी। कांग्रेस हाईकमान जिस तरह से असहाय बना बैठा है वह भी हैरान करने वाला है। ऐसा लगता है सिद्धारमैया खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे की नीति पर चल रहे हैं। दूसरी तरफ देवगौड़ा पिता-पुत्र सोच रहे हैं कि सत्ता का जितना सुख लूटा जा सके लूट लिया जाये क्योंकि अगले चुनाव में उनकी पार्टी अपनी सफलता शायद ही दोहरा सकेगी। लोकसभा चुनाव में एचडी देवगौड़ा और उनके साथ ही उनके पौत्र की पराजय मामूली बात नहीं थी। कहते हैं उसके पीछे भी सिद्धारमैया का खेल रहा। कुल मिलाकर आज की स्थिति में गठबंधन सरकार भले ही ले देकर बच जाये और कुमारस्वामी की जगह कोई और समझौता मुख्यमंत्री बन जाए तब भी उसका स्थायित्व सदैव खतरे में रहेगा। दूसरी तरफ भाजपा को चाहिए कि वह बजाय जोड़तोड़ की सरकार बनाने के नए चुनाव का विकल्प चुने जिसमें उसकी विजय सुनिश्चित होगी वरना वह भी दलबदलुओं की मांगें पूरी करते-करते अपनी छवि खराब कर बैठेगी। और वैसे भी येदियुरप्पा राजनीतिक दृष्टि से कितने भी ताकतवर हों लेकिन उन्हें ईमानदार नेता कहना गलत होगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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