Friday 14 June 2019

मोदी के साथ डोभाल : पाकिस्तान को साफ़ संकेत

बड़ा ही विचित्र संयोग है कि किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल होने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रस्थान और कश्मीर के अनन्तनाग में सीमा सुरक्षा बल के काफिले पर आतंकवादी हमले का समय बेहद नजदीकी था। इस सम्मलेन में पकिस्तान भी हिस्सा ले रहा है। श्री मोदी को बिश्केक जाने के लिए पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का उपयोग करने का प्रस्ताव इमरान सरकार ने किया जिसे भारत ने ठुकरा दिया और श्री मोदी का विमान लम्बा चक्कर काटकर बिश्केक पहुँचा। दरअसल पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर जिस तरह निन्दित हुआ उसके बाद वहां के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने भारत के साथ बातचीत के काफी प्रयास किये लेकिन मोदी सरकार ने पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद पर नियंत्रण किये बिना किसी भी प्रकार की वार्ता से इंकार कर दिया। कूटनीति के जानकारों को लग रहा था कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर श्री मोदी पाकिस्तान के प्रति कठोर रुख दर्शा रहे थे जो बाद में बदल जाएगा। लेकिन ताजा घटनाक्रम देखते हुए लगता है कि पुलवामा के घाव अभी भरे नहीं हैं क्योंकि पाकिस्तान ने विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई के अलावा ऐसा कुछ भी नहीं किया जिससे लगता कि वह रिश्ते सुधारने के बारे में ईमानदार सोच रखता है। बहरहाल चुनाव में शानदार जीत के बाद प्रधानमन्त्री श्री मोदी का आत्मविश्वास और बढ़ गया। उन्हें ये विश्वास हो गया कि देश का जनमानस पाकिस्तान के प्रति उनकी नीति से खुश है। शायद यही वजह रही कि अपने शपथ ग्रहण समारोह में श्री मोदी द्वारा छोटे - छोटे अनेक पड़ोसी देशो के प्रमुखों को बुलाया गया लेकिन इमरान खान को ठेंगा दिखा दिया जबकि 2014 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ आमंत्रित थे। इमरान खान द्वारा फोन पर दी गई बधाई के दौरान भी श्री मोदी ने उनसे दो टूक कहा कि जब तक उनका देश आतंकवाद को पालता - पोसता रहेगा तब तक रिश्ते सामान्य होने की बात भूल जाओ। उसके बाद आ गया बिश्केक सम्मलेन जिसमें ये उम्मीद लगाई जा रही थी कि आपसी सम्बन्ध सुधारने पर विचार होगा लेकिन पहले श्री मोदी द्वारा पकिस्तान के वायु क्षेत्र के उपयोग से मनाही और फिर बिश्केक में इमरान खान की पूरी तरह से अनदेखी कर देना इस बात का संकेत है कि श्री मोदी दूसरी पारी में पाकिस्तान के प्रति वैसी सौजन्यता दिखाने की गलती नहीं करेंगे जैसी उन्होंने पिछले कार्यकाल में की थी। उल्लेखनीय है अपनी विदेश यात्रा के दौरान काबुल से वे बिना किसी औपचारिक आमंत्रण अथवा पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के नवाज शरीफ  को जन्मदिन की बधाई देने सीधे लाहौर पहुंच गये और उनके परिवार में चल रहे विवाह कार्यक्रम में भी शामिल हुए। पहले - पहल तो उसे एक बड़ा कूटनीतिक कदम माना गया जिसकी पूरी दुनिया में तारीफ  हुई लेकिन बाद में हुए कुछ आतंकवादी हमलों के बाद उस यात्रा को लेकर प्रधानमन्त्री को काफी आलोचनाएं झेलनी पडीं। उसे स्व. अटलबिहारी वाजपेयी की लाहौर बस यात्रा के बाद हुए कारगिल हमले की पुनरावृत्ति बताते हुए श्री मोदी को विदेश नीति का नौसिखिया तक कहा गया। यद्यपि दुनिया की बड़ी ताकतों के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री ने प्रशंसा भी खूब बटोरी लेकिन पुलवामा के बाद उनके 56 इंची सीने के दावे का मखौल भी खूब उड़ा। हो सकता है उसी से बचने के लिए उन्होंने बालाकोट जैसा कारनामा रचा हो लेकिन कश्मीर में आतंकवादियों के लगातार सफाये के बावजूद मोदी सरकार पाकिस्तान को पूरी तरह सुधार नहीं सकी ये कहना गलत नहीं होगा। बलूचिस्तान की आज़ादी का समर्थन भी उतना खुलकर नहीं किया जा सका जितना अपेक्षित था। शायद यही वजह रही होगी कि दूसरे कार्यकाल की शुरुवात से ही श्री मोदी पाकिस्तान को लेकर बेहद सतर्क हैं और बीते कुछ दिनों से इस्लामाबाद से बातचीत की जितनी भी कोशिशें हुईं उनको नजरअंदाज कर दिया गया। बिश्केक में इमरान खान की उपेक्षा के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जब श्री मोदी के साथ एकांत में वार्ता के दौरान पाकिस्तान से रिश्ते सामान्य करने का मुद्दा छेड़ा तब भी प्रधानमन्त्री ने उन्हें बिना किसी लिहाज के कह दिया कि आतंकवाद के चलते वैसा नामुमकिन है। बिश्केक में श्री मोदी रूस के राष्ट्रपति पुतिन सहित अन्य राष्ट्राध्यक्षों से तो बेहद गर्मजोशी की साथ मिले लेकिन इमरान खान से दुआ सलाम तक नहीं किया। हो सकता है कूटनीतिक शिष्टाचार के तहत दिखावे के तौर पर दोनों नेताओं के बीच रस्म अदायगी हो भी जाए लेकिन अभी तक जो संकेत  मिले हैं उनसे लगता है इस बार श्री मोदी पाकिस्तान को लेकर तात्कालिक उपायों की बजाय दूरगामी नीति पर चलना चाहते हैं। पिछली पारी में वे पकिस्तान को कूटनीतिक मोर्चे पर विश्व बिरादरी में अलग - थलग करने के साथ ही सैन्य क्षेत्र में भी करारी मात दे चुके हैं। यहाँ तक कि अनेक मामलों में चीन तक को अपने पक्के दोस्त की सहायता करने में आगे - पीछे होना पडा। हाफिज सईद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के बारे में चीन ने खूब अड़ंगे लगाये लेकिन अंतत: उसे झुकना पड़ा। वैसे भी दूसरी बार सत्ता सँभालने के बाद श्री मोदी का आत्मविश्वास चरम पर है। कूटनीतिक मोर्चे पर किसी राष्ट्रप्रमुख की दृढ़ता उसके साथ जुड़े जनसमर्थन पर निर्भर होती है। श्री मोदी इस बारे में काफी भाग्यवान हैं। बिश्केक सम्मलेन में वार्ता की टेबिल पर उनके साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का बैठा होना भी पकिस्तान को एक संकेत हैं। उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देना भी शायद कूटनीतिक कार्ययोजना का हिस्सा कहा जा सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment