Tuesday 25 June 2019

जल संरक्षण : केवल बुद्धिविलास तक सीमित न रहे

मानसून का इंतजार खत्म होने को है। मौसम विभाग के दावों के मुताबिक आधे देश में बरसाती बादल बरसने लगे हैं। इस साल निर्धारित तिथियों से तकरीबन 10 दिन विलम्ब से मेघ आगे बढ़ रहे हैं। यूँ तो मानसून की तारीखें आगे-पीछे होती रहती हैं लेकिन इस वर्ष गर्मी ने जो रौद्र रूप दिखाया उसकी वजह से देश का बहुत बड़ा हिस्सा हल़ाकान हो गया। तापमान ने पिछले सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। लगातार पारे के 45 डिग्री और उससे भी उपर बने रहने से जनजीवन तो अस्त-व्यस्त और त्रस्त हुआ ही पशु-पक्षी भी परेशान हो उठे। तापमान का बढऩा केवल भारत की समस्या नहीं है लेकिन इस समस्या से जूझने के लिए जिस चिंतन और तदनुसार प्रयासों की जरूरत हुई उसके अभाव की वजह से ग्रीष्म ऋतु साल दर साल पीड़ादायक होती जा रही है। जल का संकट इसके पीछे बड़ा कारण है। देश के वे इलाके जहां कभी जल स्रोतों की भरमार रही वे भी पानी की कमी का सामना करने मजबूर हैं। विकास की नई-नई ऊंचाइयां छूने के दावों के बीच देश के दर्जनों शहरों में लोग बूँद-बूँद पानी के लिए तरसने मजबूर हों तब ये कहना ही पड़ता है कि कहीं न कहीं कुछ कमी रह गई जिससे कि सर्वोच्च प्राथमिकता वाले विषय की अनदेखी कर दी गई। इस बारे में सबसे दुखदायी बात ये है कि सरकार सहित समूचे समाज को इस स्थिति के लिए पूर्व में चेताया गया था लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया। बढ़ती आबादी और शहरों के बेतरतीब विकास ने समस्या को और विकराल बना दिया। कुएं, तालाब, बावली और यहाँ तक कि छोटी-छोटी सहायक नदियों का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त होता चला गया। जो पानी श्रमसाध्य था वह तकनीक के विकास की वजह से सुलभ क्या हुआ उसकी अपराधिक बर्बादी जैसे हालात बन गये। भूजल स्तर में लगातार गिरावट ने समस्या को और भी गम्भीर बना दिया। ले देकर मानसून और हिमालय के ग्लेशियरों से निकली नदियाँ ही देश में जलापूर्ति का जरिया बच रहीं। लेकिन प्रकृति के स्वभाव में हो रहे परिवर्तन ने एक तरफ  जहां मानसूनी बरसात को अनिश्चित बना दिया वहीं दुनिया भर में बढ़ रहे तापमान ने हिमालय की पर्वतमालाओं पर जमी बर्फ  के अथाह भंडार में भी सेंध लगा दी। इन सबका संभावित परिणाम जल के गम्भीर संकट के तौर पर सामने आने लगा लेकिन उसके बाद भी न सरकार चेती और न समाज ने इस बारे में अपनी जिम्मेदारी का एहसास ही किया। मानसून में कुछ दिनों की देरी से पूरा देश परेशान होकर रह गया। प्रश्न ये है कि क्या बीते कुछ महीनों से भीषण गर्मी झेल रहे देश के करोड़ों लोगों के मन में जल संरक्षण की भावना जाग्रत होगी या ज्योंही बरसात हुई त्योंही सब कुछ बुलाकर फिर भेड़ चाल शुरू हो जायेगी। पानी के लिए लड़ रहे कार्यकर्ता राजेन्द्र सिंह ने तो जलाधिकार नामक एक नई सोच को जन्म दिया। दूसरी पारी की शुरुवात करते ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर तक नल से पानी पहुँचाने की महत्वाकांक्षी योजना को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल कर लिया। श्री मोदी जिस काम को हाथ में लेते हैं उसे परिणाम तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत हो जाते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने सौराष्ट्र के सूखे इलाकों तक नर्मदा का पानी पहुँचाने का जो कारनामा किया वह उनकी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। लेकिन देश भर के गांवों में घर-घर पानी पहुँचाने का लक्ष्य तब तक पूरा नहीं हो सकेगा जब तक जल के संरक्षण की समुचित सोच और उसके अनुरूप व्यवस्थाएं न हों। उस दृष्टि से जरूरी है कि एक तरफ  तो पानी की फिजूलखर्ची जैसी अय्याशी पर विराम लगे वहीं दूसरी तरफ  बचे हुए जल स्रोतों को मरने से बचाने पर ध्यान देते हुए बरसाती पानी के अधिकतम संरक्षण की कार्ययोजना पर तेजी से काम हो। नगरीय सीमाओं में वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था नये बन रहे मकानों के लिए अनिवार्य तो है लेकिन स्थानीय निकाय मकान बन जाने के बाद कभी ये देखने तक नहीं आते कि भवन स्वामी ने उसकी व्यवस्था की भी या नहीं? इसी के साथ पहले से बने घरों में भी वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली को अनिवार्य किया जाना चाहिए। शहरों में नाली से नाली तक सड़क बनाने के कारण कच्ची जगह कम होती जा रही हैं। घरों के बीचों-बीच बनने वाले कच्चे आँगन भी अतीत बनकर रह गये हैं। ऐसे में पानी के संरक्षण हेतु किये जाने वाले प्रयासों को बदली हुई परिस्थिति के अनुरूप ढालकर जल ही जीवन है को एक राष्ट्रीय सोच बनाने का अभियान बनाने की जरुरत है। अनेक समाज विज्ञानियों ने ये भविष्यवाणी की है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा। उत्तरी धु्रव से बड़े-बड़े हिमशैल जिस तेजी से समुद्र में उतरकर आ रहे हैं वह उक्त भविष्यवाणी में निहित आशंका को बल प्रदान करती है लेकिन विकसित देशों ने तो पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण के लिए चिंता और चिंतन करते हुए काम भी शुरू कर दिया जबकि हमारे देश में अभी तक ये केवल बुद्धिविलास का हिस्सा मात्र है। बेहतर हो नरेंद्र मोदी उन्हें मिले विराट जनादेश का इस दिशा में उपयोग करते हुए जल संरक्षण और संवर्धन को सर्वोच्च प्राथमिकता वाला विषय बनायें। वरना पानी के लिए विश्वयुद्ध जब होगा तब होगा लेकिन हमारे देश के भीतर जरुर इसके लिए खूनखराबा होने लगेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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