अमेरिका में अगले वर्ष राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने उसके लिये तैयारियां शुरू कर दी हैं। अमेरिकी जनता उनसे कितनी खुश है ये तो अगले साल ही पता चल सकेगा लेकिन कार्यकाल के अंतिम वर्ष में भी ट्रम्प वैसे ही पेश आ रहे हैं जैसे राष्ट्रपति बनते समय थे। यूँ भी उनके कड़क रवैये ने ही उन्हें इस पद तक पहुंचाया। अमेरिका और उसके नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए गैर समझौतावादी नीतियों के चलते ही ट्रम्प अधिक उम्र के बाद भी हिलेरी क्लिंटन जैसी लोकप्रिय महिला को हराने में सफल हुए थे। बीते साढ़े तीन साल के दौरान ट्रम्प ने पूरी दुनिया में अमेरिका के दबदबे को कायम रखने का प्रयास किया। ऐसा करते वक्त उन्होंने किसी की परवाह नहीं की। ये उनकी नीतियों का ही असर था कि उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग उन तक को उनके साथ वार्ता की टेबिल पर आना पड़ा। मेक्सिको से आने वाले घुसपैठियों को लेकर भी ट्रंप बेहद सख्त रहे। अमेरिकी युवकों को रोजगार दिलवाने के लिए उन्होंने वीजा नियम इस तरह बदले जिससे विदेशों से आने वालों की संख्या घटाई जा सके। पश्चिम एशिया को लेकर उनकी नीतियां भी अमेरिकी प्रभुत्व को बढ़ाने वाली रहीं लेकिन सीरिया और आईएसआईएस संकट के साथ अफगानिस्तान समस्या को हल करने में वे पूरी तरह विफल रहे। हालाँकि पाकिस्तान के बारे में उनकी नीति काफी कारगर कही जा सकती है जिसकी वजह से भारत को काफी ताकत मिली। 2016 के चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने आतंकवाद से लडऩे के लिए भारत को समर्थन देने का जो वायदा किया उसकी वजह से वहां रह रहे लाखों भारतीयों ने न सिर्फ उन्हें वोट दिए वरन आर्थिक सहायता भी दी। लेकिन हाल के कुछ ,महीनों में ट्रम्प द्वारा भारत पर जिस तरह से दबाव बनाया जा रहा है वह चौंकाने वाला है। यद्यपि पुलवामा और बालाकोट के घटनाचक्र में उनका रवैया भारत समर्थक रहा और हाफिज सईद को वैश्विक आतंकवादी घोषित करवाने में भी अमेरिका ने आगे बढ़कर काम किया लेकिन बीते दिनों रूस से मिसाइल खरीदने के मोदी सरकार के फैसले पर ट्रम्प ने जिस तरह धमकाया उससे ये लगा कि ट्रंप के मन में भारत को लेकर जो भाव दिखाई देता रहा वह स्थायी नहीं था और उसके पीछे अमेरिका का निहित स्वार्थ रहा। ऐसा लगता है वे सोचते थे कि आतंकवाद के विरुद्ध समर्थन देकर वे भारत को भी पकिस्तान जैसा दुमछल्ला बना लेंगे लेकिन चाहे रक्षा सौदे हों या फिर दूसरे अंतरराष्ट्रीय विवाद , मोदी सरकार ने बिना डरे अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गईं ताबड़तोड़ विदेश यात्राओं की आलोचना करने वाले भी मान रहे हैं कि वैश्विक स्तर पर भारत का दबदबा और सम्मान दोनों बढ़े हैं। यहाँ तक कि चीन जैसे पाकिस्तान के पक्के समर्थक तक को मोदी सरकार ने काफी संतुलित बना दिया। डोकलाम और उसके बाद हाफिज सईद जैसे विवादों में आखिकार चीन को झुकना पड़ गया। लगता है ट्रंप को ये रास नहीं आया कि भारत स्वतंत्र होकर अपनी विदेश नीति का संचालन करे। इसीलिये उन्होंने ईरान से भारत द्वारा खरीदे जाने वाले सस्ते कच्चे तेल के अनुबंध को तोडऩे का दबाव बनाया जिसे भारत को स्वीकार करना पड़ा क्योंकि वैसा नहीं करने पर अमेरिकी प्रभुत्व वाले अन्य तेल उत्पादक देशों से भी खरीदी कठिन हो जाती। लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं है। खाड़ी देशों में केवल ईरान ही है जो अमेरिका को चुनौती देता रहा है। पश्चिम एशिया में जिन देशों के शासकों ने अमेरिका के झंडे तले आने से इंकार किया उन्हें वाशिंगटन ने आर्थिक अथवा सैनिक तरीके से घुटने टेकने मजबूर किया या फिर नेस्तनाबूत कर दिया। सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी इसके उदाहरण हैं। सीरिया में चल रहा मौजूदा संकट भी उसी का परिणाम है। दरअसल पश्चिम एशिया और खाड़ी के देशों की अपार तेल संपदा पर अमेरिका की कुटिल दृष्टि सदैव से रही है। सऊदी अरब इस्लामिक देशों में सबसे संपन्न और तकातवर देश है जिस पर एक परिवार का शासन है। अमेरिका ने सऊदी अरब को अपने पाले में रखते हुए अरब जगत पर अपना वर्चस्व बनाये रखा लेकिन ईरान में जब शाह की सत्ता का पतन होकर अयातुल्ला खोमैनी का कट्टर इस्लामी राज आया तब से ही वह अलग हटकर चलने लगा। ईराक से भी उसका लम्बा युद्ध चला। ईरान द्वारा परमाणु शक्ति प्राप्त करने के बाद अमेरिका और ज्यादा नाराज हो उठा। परमाणु कार्यक्रमों पर प्रतिबंधों को नकार कर उसने अमेरिका को जब ठेंगा दिखाना शुरू किया तभी से वह उसे भी ईराक और लीबिया की तरह तबाह करने के बहाने तलाशा करता है। लेकिन ईरान झुकने को तैयार नहीं है। ट्रंप प्रशासन लगातार उसको घेरने की कोशिश में है जिसकी वजह से खाड़ी में एक नया युद्ध क्षेत्र सजने की स्थिति आ गयी है। गत दिवस अमेरिका के एक जासूसी विमान को धराशायी कर ईरान ने अमेरिका को बौखलाने का मौका दे दिया है। ट्रंप ने जहाँ उसे गम्भीर नतीजे भुगतने की धमकी दी वहीं रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने अमेरिका को चेताया है कि वह आग से खेलने की गलती नहीं करे। लेकिन इस तनातनी में भारत जैसे देश का तेल निकलने का खतरा पैदा हो गया है जो अपनी जरूरत का 80 फीसदी से भी ज्यादा कच्चा तेल आयात करता है। ईरान से सस्ते तेल की खरीदी बंद हो जाने के बाद वैसे भी भारत में पेट्रोल - डीजल के दाम बढऩे का अंदेशा हैं। ईरान और अमेरिका भिड़े तब स्थिति और भी खराब हो सकती है। सबसे बड़ी बात ये है कि ट्रम्प के पास ईरान के विरुद्ध आक्रामक रवैया अपनाने के अलावा और दूसरा विकल्प नहीं है क्योंकि आगामी चुनाव के मद्देनजर उन्हें अपना दबदबा कायम करना ही पड़ेगा वरना अब तक उन्होंने जो कड़क छवि बनाई वह एक झटके में नष्ट हो जायेगी। लेकिन ईरान संकट से ट्रम्प को फायदा हो या नहीं, भारत का बड़ा नुकसान हो जाएगा। दूसरे कार्यकाल की शुरुवात में ही उत्पन्न इस संकट से निपटना मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय मंडी में कच्चे तेल के बढ़ते दाम भारतीय अर्थव्यवस्था का कचूमर निकाल देंगे।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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