Tuesday 18 June 2019

विरोध के लिए विरोध छोडऩा होगा विपक्ष को

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने 17 वीं लोकसभा के प्रथम सत्र के प्रारम्भ में विपक्ष को लेकर जो बयान दिया वह स्वागतयोग्य है और देश अपेक्षा करता है कि विपक्ष भी जनादेश की भावना को समझते हुए विरोध के लिए विरोध करने की नीति त्यागकर खुद को लोकतंत्र का रक्षक साबित करेगा। श्री मोदी ने विपक्ष को संख्याबल से निराश न होने की सलाह देते हुए आश्वासन दिया कि प्रजातंत्र की मूल भावना के अनुरूप उसे पूरा सम्मान देते हुए उसकी हर बात को सुना जाएगा।  ये कहना गलत नहीं होगा कि बीते पांच साल में संसद के भीतर और बाहर सत्ता और विपक्ष के बीच जितनी कटुता देखी गयी वह संसदीय प्रजातंत्र के लिहाज से अत्यंत दुखद एवं चिंताजनक थी । लोकसभा चुनाव में उसका बेहद विकृत स्वरूप सामने आया। नेताओं के सार्वजनिक बयानों से ऐसा लगा कि लड़ाई नीतियों और मुद्दों से भटककर व्यक्तिगत शत्रुता पर केन्द्रित हो गई।  बहरहाल जनता ने सुनो सबकी और करो मन की का उदाहारण पेश करते हुए अपना फैसला सुना दिया। प्रजातंत्र में सत्ता परिवर्तन भी एक संस्कार है जिसमें सौजन्यता और शालीनता का महत्व है। संसदीय व्यवस्था में सत्ता और विपक्ष के बीच नियंत्रण और संतुलन का सिद्धांत चलता है। जिसमें सत्ता पक्ष का दायित्व है विपक्ष को संरक्षण और सम्मान दोनों दे क्योंकि आखिरकार उसे भी मतदाताओं के एक हिस्से का समर्थन प्राप्त होता है। ऐसी स्थिति में विपक्ष को अनसुना करना जनता के एक बड़े वर्ग को नजरअंदाज करना है। प्रधानमन्त्री ने अपने बयान में इसी भाव को व्यक्त किया है। लेकिन ये सौजन्यता इकतरफा नहीं हो सकती। सत्ता पक्ष के साथ ही विपक्ष की भी जिम्मेदारी है कि वह जनमत की इच्छा का सम्मान करते हुए देश हित में अपनी भूमिका का सही निर्वहन करे। उस दृष्टि से देखें तो 16 वीं लोकसभा में विपक्ष की भूमिका नकारात्मक ज्यादा रही जिसकी वजह से संसद में पर्याप्त कामकाज नहीं हो सका। हालाँकि सत्ता पक्ष ने भी अनेक अवसरों पर बेकार की हठधर्मिता दिखाई किन्तु विपक्ष को जितना भी अवसर संसद में मिला उसका सदुपयोग करने की बजाय उसने हंगामे में पूरी ताकत लगा दी। उसका उद्देश्य सरकार को उपलब्धियां हासिल करने से रोकना था लेकिन प्रधानमंत्री ने बड़ी ही चतुराई से विपक्ष को गैर जिम्मेदार ठहरा दिया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भले ही भाजपा और प्रधानमन्त्री के विरुद्ध बेहद आक्रामक रवैया अपनाया लेकिन वे जनमानस में अपनी क्षमता और योग्यता को लेकर विश्वास पैदा करने से चूक गए। लोकसभा चुनाव में श्री मोदी को मिली अपार सफलता के पीछे विपक्ष विशेष रूप से श्री गांधी का वैकल्पिक नेतृत्व के तौर पर खुद को स्थापित नहीं कर पाना भी बड़ा कारण बन गया। परिणामस्वरूप इस बार भी कांग्रेस को ख़ास सफलता नहीं मिल सकी और लोकसभा में उसकी सदस्य संख्या 44 से बढ़कर बमुश्किल 52 तक पहुँच सकी। लेकिन सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि दर्जन भर से ज्यादा राज्यों में वह पूरी तरह से साफ  हो गयी जिसके कारण उसका अखिल भारतीय स्वरूप प्रभावित हो सकता है। प्रधानमन्त्री के आश्वासन के बाद अब राहुल को चाहिए कि वे आगामी पांच वर्ष का उपयोग सही तरीके से करते हुए अपनी और कांग्रेस दोनों की छवि एक जिम्मेदार विपक्ष के तौर पर स्थापित कर्रें। इसके लिए उन्हें चौकीदार चोर है जैसे नारों से बचना होगा। राफेल सौदे पर भी वे कुछ ऐसा प्रमाण नहीं दे सके जिससे उनकी विश्वसनीयता साबित हो पाती। ऊपर से बीच चुनाव में सर्वोच्च न्यायालय से माफी मांगने के कारण उनकी किरकिरी और हो गयी। हालाँकि विपक्ष का अर्थ अब केवल कांग्रेस नहीं रह गया है लेकिन ये भी सही है कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही विपक्ष का पर्याय है। इसलिए राहुल को चाहिए कि वे संसद का उपयोग बेहतर तरीके से करते हुए देश को ये एहसास कराएं कि वे विपक्ष की भूमिका के महत्व को समझते हैं और ये भी कि उनमें गलतियों से सीखने की क्षमता है। जहां तक बात श्री मोदी द्वारा विपक्ष का सम्मान किये जाने की है तो ये इस बात पर निर्भर करेगा कि विपक्ष जनादेश को कितनी ईमानदारी से स्वीकार करता है। उल्लेखनीय है 2014 के चुनाव परिणामों को आखिर तक वह स्वीकार नहीं कर सका और पूरे पांच साल उसे जुमलेबाजी का नतीजा बताते हुए प्रधानमन्त्री को फेंकू साबित करने में लगा रहा। 23 मई को आये नतीजों के बाद भी विपक्ष का एक वर्ग जिसमें कांग्रेस के भी कुछ बड़े नेता हैं ये प्रचारित करने में जुटा हुआ है कि भाजपा ने ईवीएम में गड़बड़ी के जरिये इतनी बड़ी सफलता हासिल की। यदि भविष्य में भी इसी तरह के बहाने बनाकर सच्चाई से मुंह चुराया जाता रहा तब विपक्ष की बची-खुची विश्वसनीयता भी जाती रहेगी। राहुल गांधी को ये समझ लेना चाहिए कि उनकी पारिवारिक राजनीतिक विरासत के प्रति जनता के मन में अब पहले जैसा सम्मान नहीं रहा। इसके विपरीत श्री मोदी बड़ी ही चतुराई से स्वयं को आम जनता के प्रतिनिधि के तौर पर साबित करने में कामयाब हो गये। बीते पांच साल में कांग्रेस और श्री गांधी, भाजपा और श्री मोदी द्वारा बनाये गये चक्रव्यूह में फंसते चले गए। चुनाव के प्रत्येक चरण में मोदी-शाह की जोड़ी ने अलग-अलग रणनीति से कांग्रेस को उलझाये रखा और वह उसका काट ढूंढते-ढूंढते चरों खाने चित्त हो गयी। यदि राहुल गांधी कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए तैयार करना चाहते हैं तो उन्हें अगले पांच सालों तक बतौर विपक्षी नेता अपनी जिम्मेदारी का ठीक से निर्वहन करना होगा। भाजपा ने बिना समय गंवाए अपने संगठन में पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी जबकि कांग्रेस अभी तक न तो राहुल गांधी द्वारा पार्टी अध्यक्ष पद छोड़े जाने से उत्पन्न अनिश्चितता दूर कर सकी और न ही लोकसभा में उसने अपने नेता का चयन ही किया। चुनाव परिणाम के बाद श्री गांधी ने कहा था कि उनकी लड़ाई विचारधारा पर आधारित है लेकिन दुर्भाग्यवश वे और कांग्रेस दोनों ये बताने में पूरी तरह विफल रहे कि उनकी विचारधारा आखिर है क्या? और इसी मामले में भाजपा और श्री मोदी उन पर भारी पड़ गये।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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