Friday 31 May 2019

दूसरी पारी : ज्यादा उम्मीदों के साथ बड़ी चुनौतियां

मंत्रीमंडल की शपथ विधि के साथ मोदी सरकार की दूसरी पारी का विधिवत शुभारंभ हो गया। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के साथ 57 मंत्रियों ने शपथ ली। सभी सहयोगी दलों को एक-एक मंत्री पद दिया गया। इस फार्मूले से बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यू) संतुष्ट नहीं हुई जिसके लोकसभा में लगभग डेढ़ दर्जन सांसद जीते हैं। ऐसा लगता है दो सदस्यों वाले अकाली दल को एक और छह सीटें जीतने वाली लोक जनशक्ति पार्टी से एक मंत्री बनाया जाना नीतिश को रास नहीं आया। अपना दल की अनुप्रिया पटेल भी मंत्री नहीं बनाये जाने से शपथ ग्रहण समारोह तक में नहीं आईं। हालांकि नीतिश और अनुप्रिया दोनों ने एनडीए में बने रहने की बात कही। नीतिश तो शपथ विधि के साक्षी भी रहे। ऐसा माना जा रहा है कि महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा के विधानसभा चुनाव नजदीक होने से इन राज्यों पर विशेष ध्यान दिए जाने से श्री मोदी ने जनता दल (यू) को कम प्रतिनिधित्व देने का फैसला लिया होगा वरना शिवसेना भी एक से ज्यादा मंत्री के लिए दबाव बना सकती थी। मंत्रियों की सूची से जयंत सिन्हा, महेश शर्मा, मेनका गांधी राज्यवर्धन सिंह राठौड़, सत्यपाल सिंह जैसे अपेक्षित नाम जहां गायब रहे वहीं पूर्व विदेश सचिव एस.जयशंकर को सीधे कैबिनेट मंत्री बनाये जाने से सभी चौंक गए लेकिन पिछली सरकार में भी श्री मोदी ने मंत्रीमंडल का विस्तार करते हुए कुछ पूर्व नौकरशाहों को मंत्री बनाया था जिनमें एक दो तो उस समय तक सांसद तक नहीं बने थे। इससे ये संकेत मिला कि प्रधानमन्त्री राजनीतिक अनुभव के साथ ही प्रशासनिक दक्षता को भी महत्व देते हैं। हालाँकि मेनका गाँधी, जयंत सिन्हा, राज्यवर्धन राठौड़ की गिनती सक्षम और सफल मंत्रियों में की जाती रही लेकिन भाजपा के 303 सांसद जीत जाने की वजह से श्री मोदी को उन्हें बाहर रखना पड़ गया। राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा है कि अभी जो 23 स्थान मंत्रीमंडल में रिक्त हैं उन्हें भी शीघ्र भरा जाएगा और तब सहयोगी दलों की नाराजगी दूर करने का प्रयास होगा। अरुण जेटली और सुषमा स्वराज ने जहां स्वास्थ्य संबंधी कारणों से मंत्री पद नहीं लिया वहीं जगत प्रकाश नड्डा को अमित शाह की जगह भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना के चलते बाहर रखा गया। कुल मिलाकर मोदी मंत्रीमंडल काफी संतुलित नजर आ रहा है और फिर जब खुद अमित शाह उसमें वरिष्ठता क्रम पर तीसरे नम्बर पर हों तब प्रधानमन्त्री की ताकत और प्रभाव दोनों स्वाभाविक रूप से बढ़ जायेंगे। वैसे बीते पांच साल का अनुभव बताता है कि श्री मोदी की अपने सहयोगियों पर पूरी पकड़ रही तथा हर मंत्रालय पर उन्होंने पैनी नजर रखी जिसे कुछ लोग उनकी तानाशाही बताने से बाज नहीं आये लेकिन उसी का नातीजा रहा कि भाजपा को आशातीत सफलता मिल सकी। नरेंद्र मोदी अपने पूर्ववर्ती डा. मनमोहन सिंह के विपरीत किसी समानांतर शक्ति केंद्र से संचालित नहीं होते। सरकार और पार्टी संगठन दोनों पर उनकी जबर्दस्त पकड़ की वजह से ही बीते पांच वर्ष में वे कठोर निर्णय ले सके। जिस भाजपा को व्यापारियों की पार्टी कहकर मजाक उड़ाया जाता था उसके प्रति गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय मतदाताओं को आकर्षित करने के कारनामे के बाद उनके आलोचक भी दबी जुबान उन्हें इन्दिरा गांधी के कद का नेता मानने मजबूर हो गए। प्रधानमन्त्री जानते हैं कि विशाल बहुमत की वजह से जनता की उम्मीदें और बढ़ गई हैं और लोग उन्हें एक चमत्कारी नेता समझने लग गए हैं। पहले कार्यकाल में उनसे बहुत सी गलतियाँ भी हुईं लेकिन नेकनीयती की वजह से लोगों ने उन्हें नजरंदाज करते हुए पहले से भी ज्यादा बहुमत के साथ उनकी सरकार दोबारा बनवा दी। प्रधानमन्त्री सफलता पर इतराने वाले इंसान नहीं हैं और कार्य शुरू करने में समय व्यर्थ नहीं गंवाते। केन्द्रीय सचिवालय में चल रही चर्चाओं के अनुसार प्रधानमन्त्री ने चुनाव परिणाम आने के पहले ही अगले 100 दिन की कार्ययोजना तैयार करवा ली थी जो उनके आत्मविश्वास के साथ ही कार्य संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता का परिचायक है। 2014 में पद सँभालते ही उन्होंने केन्द्रीय सचिवालय में सचिवों के ऊपर जिस तरह से लगाम कसी और सत्ता के गलियारों को दलालों से आजाद किया उसके अनुकूल नतीजे आये। शुरू-शुरू में उन पर ये आरोप भी लगे कि वे मंत्रियों की तुलना में नौकरशाही को ज्यादा महत्व देते हैं लेकिन कालान्तर में ये साबित हो गया कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों के बेहतर समन्वय से अनुकूल नतीजे हासिल किये जा सके। नोटबंदी का फैसला जिस तरह गोपनीय रहा वह इसकी सर्वोत्तम मिसाल कही जा सकती है। दूसरी पारी में जिन मंत्रियों को बाहर रखा गया उनमें से कुछ को भाजपा संगठन में दायित्व दिए जाने की उम्मीद है। दो दर्जन स्थान खाली रखे जाने के पीछे भी श्री मोदी की कुछ न कुछ सोच अवश्य रही होगी। नीतिश कुमार की नाराजगी दूर करने के साथ ही वे जगन मोहन रेड्डी जैसे नये सहयोगी एनडीए में जोडऩे के लिए प्रयासरत रहेंगे। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण निर्णय अमित शाह को मंत्रीमंडल में शामिल करने का रहा जो भारतीय राजनीति में नये चाणक्य के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि उन्हें संगठन से सरकार में लाकर प्रधानमन्त्री ने अपना कुछ भार कम करने का दांव चला है। मंत्रियों के बीच समन्वय के साथ ही नीतियों के सफल क्रियान्वयन का काम संभवत: अब श्री शाह के जिम्मे होगा। यदि वे वित्त मंत्री बने तब ये माना जाएगा कि प्रधानमन्त्री इस विभाग को अलोकप्रियता से उबारना चाहते हैं जो बीते पांच वर्ष में अरुण जेटली की वजह से उसके साथ चिपकी रही। मंत्रीमंडल में क्षेत्रीय संतुलन के साथ ही जातीय समीकरणों को भी साधा गया है वहीं एस. जयशंकर जैसे विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी को लेकर प्रधानमन्त्री ने ये जता दिया कि वे अपनी दूसरी पारी में भी अंतर्राष्ट्रीय मोर्चे पर भारत को एक मजबूत स्थिति में खड़ा रखना चाहेंगे जो उनकी चुनावी विजय में सहायक बनी। इस सरकार के सामने चुनौतियों का अंबार है। औद्योगिक उत्पादन गिर रहा है, छोटे और मझोले उद्योग-व्यापार बंद होने के कगार पर हैं जिसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। आयात बढ़ते जाने से व्यापार घाटा अभी चरम पर है। लेकिन इन सबके बीच सबसे अच्छी बात ये है कि जनता को प्रधानमन्त्री की मेहनत और ईमानदारी पर पूरा भरोसा है और ये बेहद सुखद स्थिति है क्योंकि शासक के पीछे जनता खड़ी रहे तब वह अपना काम भी मुस्तैदी से कर सकता है। विशेष रूप से निर्णय लेने का साहस उसमें आ जाता है। राजनीतिक खींचातानी से उपर उठकर ये समय नई सरकार को शुभकामनाएं देने का है क्योंकि उसकी सफलता पर किसी एक व्यक्ति या पार्टी का नहीं अपितु देश का भविष्य निर्भर है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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