Thursday 2 May 2019

झुकाने वाला हो तो चीन भी झुक सकता है

पाकिस्तान के कुख्यात इस्लामी आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद का मुखिया और पुलवामा हमले के सूत्रधार माने जा रहे मसूद अजहर को लम्बी जद्दोजहद के बाद संरासंघ ने वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। वैसे तो ये काम बरसों पहले हो जाता लेकिन पकिस्तान का संरक्षक बना बैठा चीन तत्संबंधी प्रस्ताव पर वीटो करता आ रहा था। लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसी महाशक्तियों के अलावा जर्मनी और जापान ने भी जब कड़ा रुख अख्तियार करते हुए चीन पर दबाव बनाया तब जाकर उसने अडिय़ल रवैया छोड़ते हुए अपना वीटो वापिस ले लिया। गत दिवस संरासंघ ने मसूद को विधिवत वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। पिछली बार जब चीन ने वीटो किया था तब उसने इस बात का आश्वासन दिया था कि इस विवाद का समुचित हल निकाल लिया जावेगा और दो दिन पहले उसने इस आशय के संकेत भी दे दिए थे। ये महज संयोग ही हो सकता है कि भारत में चुनाव के चलते ये निर्णय हुआ और उसके पहले ही ईस्टर के दिन श्रीलंका में चर्चों पर मुस्लिम आतंकवादी हमले में 250 से भी ज्यादा लोग मार दिए गये। मसूद का बचाव करने के कारण भारत और चीन के रिश्तों में तल्खी बढती ही जा रही थी। जनता के बीच चीन के साथ व्यापार सम्बन्ध खत्म करने की मांग भी जोर पकडऩे लगी थी। विपक्षी दल प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी द्वारा चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ दोस्ताना बनाने की कोशिशों का मजाक उड़ाने से भी बाज नहीं आ रहे थे। राहुल गांधी ने श्री मोदी पर चीन से डरने का आरोप तक लगा डाला। लेकिन पुलवामा हमले के बाद भारत के पक्ष में जिस तरह से वैश्विक सहानुभूति और समर्थन उमड़ा उसके बाद चीन को भी ये लगने लगा कि यदि अब भी वह अड़ा रहा तब विश्व बिरादरी में अकेला पड़ जाएगा। दूसरी तरफ  पाकिस्तान की बिगड़ती आर्थिक हालत के चलते चीन को उसकी पीठ पर हाथ रखना घाटे का सौदा लगने लगा। मसूद अजहर पर लगाये वीटो को हटाने के फैसले के पीछे उसकी सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना वन बेल्ट वन रोड से दुनिया के अनेक देशों द्वारा अचानक हाथ खींच लेना भी एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। उल्लेखनीय है भारत उन पहले देशों में से था जिसने वन बेल्ट वन बेल्ट रोड का विरोध किया था। ये सड़क पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से से होकर गुजरने वाली है जिससे भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे अवसर पर जब भारत में नई सरकार के लिए चुनाव चल रहा है तब चीन द्वारा अचानक अपने रुख में बदलाव करना इस बात का भी संकेत है कि उसे श्री मोदी के सत्ता में लौटने का भरोसा हो चला है। वरना वह 23 मई को लोकसभा चुनाव के परिणाम आने तक इन्तजार कर सकता था। यही वजह है कि ज्योंही मसूद संबंधी संरासंघ का निर्णय घोषित हुआ त्योंही भारत में राजनीतिक स्तर पर उसकी चर्चा शुरू हो गई। इसे प्रधानमन्त्री की सफल कूटनीति का नतीजा बताया जाने लगा। हालाँकि ये याद दिलाने वाले भी पीछे नहीं रहे कि डा मनमोहन सिंह की सरकार के समय भी हाफिज सईद को लेकर ऐसा ही फैसला संरासंघ द्वारा किया गया था और इसका कोई विशेष असर नहीं होगा। लेकिन ये बात भी सही हैं कि मोदी सरकार ने जिस तरह से विश्व स्तर पर भारत को एक मजबूत आर्थिक और सामरिक शक्ति के तौर पर पेश किया उसकी वजह से चीन भी दबाव में आ गया। बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक के बाद पूरी दुनिया ने उसे भारत द्वारा आत्मरक्षार्थ उठाया कदम बताते हुए उसका समर्थन किया। यहाँ तक कि चीन भी खुलकर पाकिस्तान का साथ देने की हिम्मत नहीं दिखा सका। मसूद अजहर पर प्रतिबन्ध लगने से यद्यपि न तो जैश ए मोहम्मद खत्म होगा और न ही पकिस्तान की नीति और नीयत में कोई अंतर आयेगा लेकिन इससे भारत का महत्व और शक्ति दुनिया के सामने साबित हो गई। सबसे बड़ी बात ये हुई कि चीन पहली मर्तबा भारत के सामने झुकता नजर आया। हालाँकि इसे उसकी सदाशयता मान लेना भूल होगी। सही बात ये है कि वर्तमान परिस्थितियों में वैश्विक मंचों पर भारत के बढ़ते महत्व से चीन काफी सतर्क हो उठा है। उसे ये लगने लगा है कि यदि उसने अपना रवैया नहीं सुधारा तब वह भारत के बड़े उपभोक्ता बाजार को खो सकता है। कुल मिलाकर भारत के लिए ये बड़ी कामयाबी है जिसका श्रेय यदि मोदी सरकार और भाजपा लेते हैं तब वह गलत नहीं होगा। गत सप्ताह चीन की यात्रा पर गए पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान का खान का जिस तरह से फीका स्वागत करने के साथ ही चीन के राष्ट्रपति ने उन्हें भारत से रिश्ते सुधारने की नसीहत दी वह भी इस बात का संकेत था कि चीन उसका आंख मूंदकर समर्थन करने की अपनी नीति में संशोधन करते हुए भारत के तुष्टीकरण के लिए भी प्रयासरत हो चुका है। मसूद अजहर पर लगे वैश्विक प्रतिबंध से पाकिस्तान पर विश्व बिरादरी का दबाव बढ़ेगा। ये भी कहा जा रहा है कि चीन द्वारा लगातार विश्व जनमत की उपेक्षा के चलते अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन मिलकर पाकिस्तान पर कड़े प्रतिबन्ध लगाने की तैयारी कर रहे थे जिनके परिणामस्वरूप उसकी नाकेबंदी हो जाती और तब चीन का अरबों-खरबों का निवेश डूबने के कगार पर आ जाता। पाकिस्तान के प्रति भारत का कड़ा रुख भी चीन के लिए एक संकेत था जिसकी बानगी डोकलाम विवाद के समय उसे मिल ही चुकी थी। इस तरह मसूद अजहर पर प्रतिबन्ध लगने से भारत को एक तीर से दो निशाने साधने जैसा लाभ हुआ। सबसे बड़ी बात ये हुई कि मोदी सरकार ये साबित करने में सफल हो गई कि चीन को भी झुकाया जा सकता है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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