Tuesday 7 May 2019

काश , जनता को भी इसी तेजी से न्याय मिले

देश के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को यौन शोषण के आरोप से मुक्ति मिल गई। न्यायालय की इन हाउस कमेटी ने उन्हें बेदाग करार दिया। दरअसल जिस महिला के आरोपों पर उक्त समिति ने जांच शुरू की उसने जांच में सहयोग नहीं दिया जिसकी वजह से समिति के सदस्य न्यायाधीशों ने एकपक्षीय फैसला सुनाते हुए श्री गोगोई को पाक साफ होने का प्रमाणपत्र दे दिया। न्याय क्षेत्र के जानकारों के मुताबिक आरोपों को साबित करने का दायित्व शिकायतकर्ता महिला पर था। चूंकि वह जांच समिति के समक्ष हाजिर होने से पीछे हट गई इसलिए आरोपों की गम्भीरता कम हो गई या यूं कहें कि उसमें विश्वसनीयता का पुट लुप्त हो गया। इसीलिए जांच समिति ने श्री गोगोई को बेदाग मानते हुए राहत प्रदान कर दी। देश के मुख्य न्यायाधीश पर इस तरह का गम्भीर आरोप पहली बार लगने से पूरा विधि जगत हिल गया था। यद्यपि आरोप लगाने वाली महिला के बारे में विस्तृत जानकारी मिलने के बाद उसकी बातों को गम्भीरता से नहीं लिया गया लेकिन न्याय की सर्वोच्च आसंदी पर विराजमान महानुभाव पर चारित्रिक दोषारोपण अपने आप में अभूतपूर्व था इसलिए दूध का दूध और पानी का पानी होना नितांत आवश्यक था क्योंकि मुख्य न्यायाधीश महज एक व्यक्ति नहीं अपितु एक संस्था होता है जिसकी प्रामाणिकता में देश का असंदिग्ध विश्वास जरूरी है। इसीलिये ज्योंही आरोप उछला त्योंही नैतिकता का प्रश्न भी सामने आ गया। अनेक लोगों का मानना था कि निर्दोष साबित होने तक श्री गोगोई को न्यायिक कार्य से अलग रहना चाहिए किन्तु उन्होंने शुरुवात में ही ऐसा करने से मना कर दिया और जाँच समिति बना दी जिसने फास्ट ट्रेक कोर्ट से भी तेजी से काम करते हुए गत दिवस उनके दामन पर लगाये गये दागों को धोकर साफ कर दिया। हालांकि इस दौरान एक अधिवक्ता ने मुख्य न्यायाधीश पर लगाये गये आरोप को किसी योजनाबद्ध षडय़ंत्र से जोड़ते हुए उसके पीछे किसी कार्पोरेट घराने का हाथ होने जैसा आरोप लगाकर सनसनी मचा दी जिस पर सर्वोच्च न्यायालय में जोरदार बहस भी चली लेकिन वह प्रकरण अभी तक अनिर्णीत ही है। जाँच समित्ति ने जितनी तत्परता से मुख्य न्यायाधीश को बेकसूर साबित कर दिया उतनी ही तेजी उक्त मामले में भी अपेक्षित है क्योंकि सर्वोच्च न्यायलय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता को इस षडय़ंत्र का सूत्रधार बताया जा रहा था। उसके द्वारा पेश किये गये प्रमाण गोपनीयता के नाम पर उजागर नहीं किये गये। उसी तरह गत दिवस श्री गोगोई को निष्कलंक बताने वाली रिपोर्ट को भी गोपनीय रखा जा रहा है। ये अत्यंत आश्चर्यजनक है क्योंकि राफेल लड़ाकू विमान सहित अनेक प्रकरणों में सर्वोच्च न्यायालय ने ही गोपनीय दस्तावेजों के सार्वजनिक किये जाने पर दर्ज सरकारी आपत्तियों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया था। उस दृष्टि से यदि न्यायपालिका की किसी विशेष मर्यादा का उल्लंघन न होता हो तब श्री गोगोई को निर्दोष ठहराए जानी वाली रिपोर्ट को भी सार्वजनिक किया जाना विश्वसनीयता बढ़ाने में सहायक रहेगा। उसी तरह देश को उस आरोप की सत्यता के बारे में भी पता चलना चाहिए जिसके अनुसार मुख्य न्यायाधीश के चरित्र पर लगाए गये आरोप के पीछे कार्पोरेट घराने और फिक्सिंग जैसी बातें थीं। गनीमत ये रही कि सर्वोच्च न्यायालय पर लगी इस तोहमत को राजनीति का विषय नहीं बनाया गया वरना चुनाव के मौसम में जिस तरह के आरोप-प्रत्यारोप हो रहे हैं उनके मद्देनजर ये डर पैदा होने लगा था कि कहीं मुख्य न्यायाधीश के चरित्र पर लगे आरोपों पर भी सियासत न शुरू हो जाए। लेकिन इन सबसे हटकर ये सवाल हर खासो-आम के मन में तैर रहा है कि जितनी तेजी श्री गोगोई को निर्दोष साबित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने दिखाई क्या उतनी ही जन साधारण से जुड़े मामलों में भी दिखाई जायेगी? राम जन्मभूमि संबंधी विवाद को अपनी प्राथमिकता से बाहर रखने वाले श्री गोगोई ने अपने दामन को बेदाग़ साबित करने में जिस तत्परता से न्यायिक कार्रवाई को संचालित करवाया वह निश्चित ही प्रशंसनीय है लेकिन न्याय के समक्ष समानता का जो सिद्धांत है उसका लाभ हर नागरिक को बिना उसकी हैसियत देखे मिलना चाहिए। देश के प्रधान न्यायाधीश होने के नाते श्री गोगोई एक विशिष्ट दर्जे से जुड़े हैं जिसका सम्मान नितांत जरूरी है लेकिन न्याय में विलम्ब को लेकर मचने वाले हल्ले के बीच जिस त्वरित गति से उन्हें न्याय और राहत मिली वह मापदंड के रूप में स्थापित जब तक नहीं होती तब तक न्यायपालिका के प्रति लोगों के मन में अपेक्षित सम्मान और भरोसा कायम नहीं किया जा सकेगा। विधि क्षेत्र में ये उक्ति बहुत प्रचलित है कि न्याय में विलम्ब न्याय से इनकार करना है। उसी तरह किसी प्रकरण के निराकरण में आश्चर्यचकित कर देने वाली तेजी भी संदेह उत्पन्न करने वाली होती है। बहरहाल श्री गोगोई के बेदाग साबित हो जाने से पूरी न्याय व्यवस्था राहत महसूस कर रही होगी।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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