Wednesday 8 May 2019

कम्प्यूटर से कम्प्यूटर बाबा तक

मप्र में जब शिवराज सरकार ने कुछ बाबाओं को राज्यमंत्री पद का दर्जा देकर सरकारी सुविधाओं से नवाजा था तब कांग्रेस ने उसका खूब मखौल उड़ाया। लेकिन कुछ समय बाद उनमें से कम्प्यूटर बाबा नामक एक टूटकर कांग्रेस में आ गये और विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान और भाजपा की खूब मुखालफत की। कमलनाथ सरकार के शपथ ग्रहण में कम्प्यूटर बाबा को विशिष्ट अतिथियों के साथ मंचासीन भी करवाया गया। भोपाल में जब दिग्विजय सिंह के विरोध में भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारा तब कांग्रेस ने उस पर तरह-तरह के तंज कसे लेकिन जब ये लगा कि साध्वी हिन्दू मतदाताओं के धु्रवीकरण में सफल हो सकती हैं तब दिग्विजय सिंह को भी ध्याना आया कि खुद को हिन्दू साबित किया जाए और इसीलिये गत दिवस भोपाल में एक खुले मैदान में कम्प्यूटर बाबा ने हठयोग का आयोजन किया जिसमें श्री सिंह ने सपत्नीक सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया जिसके चित्र टीवी के पर्दों पर पूरे देश ने देखे। दिग्विजय सिंह ऐलानिया तौर पर खुद को हिन्दू कहते हैं। पूजा-पाठ भी उनकी दिनचर्या और राजनीतिक गतिविधियों का चिरपरिचित हिस्सा है। उस लिहाज से भोपाल में गत दिवस हुआ कर्मकांड एक साधारण धार्मिक आयोजन कहा जा सकता है किन्तु लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा क्यों और किसलिए  किया गया इसका उद्देश्य सामान्य राजनीतिक समझ वाला भी बता देगा। सही बात ये है कि अपनी उम्मीदवारी की घोषणा काफी पहले से हो जाने की वजह से दिग्विजय सिंह ने भोपाल लोकसभा सीट के काफी हिस्सों में प्रारम्भिक जनसंपर्क कर लिया था। दूसरी तरफ  भाजपा में प्रत्याशी चयन को लेकर भारी असमंजस और अनिश्चितता बनी रहने के कारण राजनीतिक जगत में ये अवधारणा भी व्याप्त होने लगी कि भाजपा  दिग्विजय सिंह को अघोषित वाकओवर देने जा रही है। लेकिन लम्बे विचार-विमर्श के बाद जब उसकी तरफ  से प्रज्ञा ने आकर मैदान सम्भाला तब अचानक भोपाल का चुनाव राष्ट्रीय महत्व का बन गया और दिग्विजय सिंह फिर उसी चक्रव्यूह में फंस गए जिसमें बीते 30 साल से कांग्रेस घिरी हुई है। प्रज्ञा ठाकुर मालेगांव विस्फोट में आरोपी हैं। बरसों जेल में भी रही। जाँच के दौरान अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बखान करते हुए उन्होंने खूब सहानुभूति बटोरी। विशेष रूप से महिलाओं के मन में उनके प्रति जबर्दस्त आकर्षण पैदा होने की खबरें आने लगीं। भोपाल की सीट 1989 के चुनाव से धु्रवीकरण के वशीभूत भाजपा के कब्जे में चली आ रही है। दिग्विजय सिंह को उतारकर कांग्रेस ने इस कब्जे को समाप्त करने का जोरदार दांव चला जो शुरुवात में तो कामयाब लगा लेकिन जब से साध्व़ी प्रज्ञा ने मोर्चा संभाला तब से वे रक्षात्मक नजर आने लगे। पहले पहल तो उन्होंने विकास को मुद्दा बनाकर भोपाल के लिए अपना अलग से घोषणापत्र जारी किया लेकिन जल्दी ही उन्हें लग गया कि बाजी उनके हाथ से खिसकने की कगार पर है तब उन्होंने कम्प्यूटर बाबा की शरण ली। दो दिन पहले बाबा ने ऐलान किया कि वे हजारों साधुओं को भोपाल बुलवाकर दिग्विजय के समर्थन में भी भगवा लहर चलवाने की कोशिश करेंगे और उसके बाद ही उन्होंने हठयोग नामक आयोजन में दिग्विजय सिंह की शिरकत करवाकर हिन्दू मतदाताओं को लुभाने का दांव चला। एक समय था जब कांग्रेस राजनीति में धर्म के उपयोग को लेकर भाजपा को घेरा करती थी किन्तु बीते एक डेढ़ वर्ष में वह समझ गई कि हिंदुत्व राजनीति के केंद्र में आ गया है और केवल अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण से चुनावी वैतरणी पार नहीं की जा सकती। गुजरात और कर्नाटक के बाद मप्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मप्र के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने मंदिर-मठ आदि के दौरे जमकर किये। इसका उन्हें कितना लाभ हुआ ये तो स्पष्ट नहीं हो सका लेकिन दिखावे के लिए ही सही  सौम्य हिंदुत्व को कांग्रेस ने अपनी रणनीति का हिस्सा बना लिया। उसके तमाम नेता अपने को हिन्दू साबित करने में जुट गए। दिग्विजय सिंह पार्टी के उन नेताओं में से हैं जो भाजपा और रास्वसंघ के कटुतम आलोचक कहे  जा सकते हैं। आतंकवादियों को लेकर अतीत में दिए कुछ बयानों से उनकी हिन्दू विरोधी छवि बन गयी थी। भोपाल से उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाने के पीछे कांग्रेस की सोच वहां की बड़ी मुस्लिम आबादी के परम्परागत समर्थन के साथ हिन्दू मतों को जोड़कर भाजपा को शिकस्त देना रही। विधानसभा चुनाव में भोपाल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विधानसभा सीटों पर कांग्रेस को अच्छी खासी सफलता से उसे ये लगने लगा कि हिन्दू मतों में भी वह सेंध लगा सकती है। लेकिन साध्वी प्रज्ञा की वजह से पांसे उलटे पड़ते लगे तब जाकर दिग्विजय सिंह को कम्प्यूटर बाबा की शरण में जाना पड़ा। चुनाव जीतने के लिए अनेक प्रत्याशी धार्मिक और तांत्रिक विधियों और ज्योतिषियों का सहारा लेते हैं लेकिन सार्वजानिक रूप से हठयोग के जरिये मतदाताओं को आकर्षित करने का तरीका नवीनतम है। हठयोग क्या है और इसका उद्देश्य क्या है ये जानना हमारा उद्देश्य कदापि नहीं है लेकिन भोपाल के आयोजन से एक बात साबित हो गयी कि स्व. राजीव गांधी के कार्यकाल में कम्प्यूटर से जुडऩे  वाली कांग्रेस उनके बेटे राहुल गांधी का दौर आते-आते तक कम्प्यूटर बाबा की शरण में आ गई। इस बदलाव को क्या कहा जाये ये विश्लेषण का विषय है। राजनीति जो न करवाए कम है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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