Friday 17 May 2019

प्रज्ञा : जी का जंजाल बन सकती हैं

दक्षिण भारत के सुप्रसिद्ध अभिनेता कमल हासन द्वारा नाथूराम गोड़से के बारे में की गई टिप्पणी पर पूछी  गई प्रतिक्रिया के जवाब में भोपाल लोकसभा सीट से भाजपा की प्रत्याशी प्रज्ञा ठाकुर ने जो कुछ भी कहा वह न सिर्फ अवांछनीय और अनुचित अपितु घोर निंदाजनक भी है। गोड़से की विचारधारा और देशभक्ति का भाव उस दिन निरर्थक होकर रह गये थे जिस दिन उसके साथ महात्मा गांधी के हत्यारे होने का कलंक जुड़ गया। प्रज्ञा राजनीति में नई-नई उतरी हैं इसलिए उन्हें उससे जुड़ी मान-मर्यादा का उतना ज्ञान और ध्यान नहीं है जितना आम तौर पर अपेक्षित होता है। भोपाल से चुनाव मैदान में उतरने के साथ ही उन्होंने मुम्बई पुलिस के अधिकारी स्वर्गीय हेमंत करकरे को लेकर बेहद विवादास्पद बयान देकर भाजपा को मुसीबत में डाल दिया था। मालेगांव कांड की जाँच के दौरान उनके साथ जो ज्यादतियां हुईं उसकी जानकारी देकर उन्होंने जो सहानुभूति अर्जित की थी वह स्व. करकरे के बारे में दिए गये बयान से निश्चित तौर पर कम हुई। बावजूद उसके उनके साथ जो हुआ उसे लेकर उनके प्रति काफी हमदर्दी बनी रही। लेकिन गत दिवस गोड़से को देशभक्त बताने के बाद प्रज्ञा के बारे में ये धारणा और मजबूत हो गयी कि वे भाजपा के लिए जी का जंजाल बनने जा रही हैं। कल ज्योंही उनका बयान आया त्योंही भाजपा ने बिना देर किये उससे दूरी बनाते हुए उन्हें माफी माँगने के लिये कह दिया। चौतरफा थू-थू होने के बाद प्रज्ञा ने भी पाँव पीछे खींचते हुए पार्टी के मत के साथ होने की बात कह दी किन्तु तब तक जो नुकसान होना था वह तो हो ही चुका था। गोड़से द्वारा अदालत में दिए गये बयान को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएँ होती रही हैं जिसमें उसने गांधी जी की हत्या किये जाने के अपने कुकृत्य को सही ठहराने का भरपूर प्रयास किया था। उसकी देशभक्ति को लेकर किसी भी प्रकार की अवधारणा बनाना अब बेमतलब है क्योंकि उस जैसा व्यक्ति किसी भी देश या समाज का आदर्श नहीं हो सकता। लोकतन्त्र भले ही बहुमत के आधार पर चलता हो लेकिन जिस तरह फूलन देवी द्वारा अपने साथ हुए अन्याय का बदला लेने किये गये सामूहिक हत्याकांड को जायज नहीं ठहराया जा सकता भले ही उसे जनता ने चुनाव जिता कर लोकसभा में भेज दिया हो। उसी तरह प्रज्ञा को भोपाल की जनता सांसद बना दे उसके बाद भी यदि वे राजनीतिक शिष्टाचार का पालन नहीं करेंगी तब उनको वह सम्मान नहीं मिल सकेगा जिसकी चाहत उन्हें राजनीति में खींच लाई। भगवा आतंकवाद के नाम पर उन्हें जिस तरह फंसाया गया उसके कारण समाज के एक बड़े वर्ग में उन्हें लेकर सहानुभूति का भाव है लेकिन अपने साथ हुए अन्याय के प्रतिकार स्वरूप वे ऊल जलूल बातें कहेंगी तब वे लोगों की नजरों से उतर जायेंगी । गोड़से को हिन्दू आतंकवादी कहने के बयान पर कमल हासन की भी काफी आलोचना हुई। आज भी एक वर्ग है जो ये, मानता है कि गोड़से ने देश के अहित की चिंता की वजह से महात्मा जी की ह्त्या जैसा जघन्य कृत्य किया लेकिन वह तर्क भी गले नहीं उतरता। बल्कि इससे एकदम अलग हटकर ये कहना सही होगा कि उसके उस कार्य ने देश में हिंदूवादी ताकतों को पचास साल पीछे कर दिया वरना कांग्रेस 1962 आते-आते तक जनता की निगाहों से उतर जाती। गांधी जी भी यदि जीवित रहते तब 1974 में बाबू जयप्रकाश नारायण ने जिस सम्पूर्ण क्रांति का आन्दोलन खड़ा किया वह 1957 आते तक महात्मा गांधी और विनोबा भावे के नेतृत्व में शुरू हो चुका होता। गोड़से के प्रति सहानुभूति रखने वालों को ये नहीं भूलना चाहिए कि आजादी के बाद जब देश ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था अपना ली तब हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार था और गांधी जी का वैचारिक विरोध भी अपराध नहीं माना जाता। कांग्रेस के भीतर भी अनेक ऐसे कद्दावर नेता रहे जिन्होंने समय-समय पर महात्मा जी की नीतियों का खुलकर विरोध किया। सरदार पटेल ने तो ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर बापू को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज करवाने तक में संकोच नहीं किया था। ऐसे में गोड़से की कथित देशभक्ति और स्वाधीन भारत के हितों की चिंता करने वाला भाव उसके एक कृत्य की वजह से मिट्टी में मिल गया। प्रज्ञा ठाकुर ने भले ही पार्टी की फटकार के उपरांत अपने बयान को लेकर लल्लो-चप्पो शुरू कर दी और भाजपा ने भी उसे सिरे से नकारकर नुकसान से बचने की कोशिश की हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर की एक पार्टी को अपने यहाँ नई भर्ती करते समय किसी भी व्यक्ति की मानसिकता और सोच के स्तर का भली-भांति परीक्षण कर लेना चाहिए। दिल्ली विधान सभा के चुनाव के दौरान पार्टी की एक और साध्वी सांसद ने रामजादे और हरामजादे जैसी टिप्पणी से भाजपा को नुकसान पहुँचाया था। उप्र के सांसद साक्षी महाराज भी अनर्गल बातें बोलने की लिए कुख्यात हैं। उसी कड़ी में प्रज्ञा ठाकुर भी आ खड़ी हुई  हैं जिनसे भाजपा को तात्कालिक चुनावी लाभ शायद मिल भी जाये लेकिन कालान्तर में ऐसे लोग लम्बा नुकसान कर जाते हैं। प्रज्ञा ने गोड़से को लेकर जो भी कहा उसे उनकी निजी राय मानकर हवा में नहीं उड़ाया जा सकता क्योंकि अब वे एक एक राष्ट्रीय पार्टी की ओर से लोकसभा के लिए प्रत्याशी बन चुकी हैं। राजनीतिक और वैचारिक मतभेद चाहे कितने भी क्यों हों किन्तु गांधी जी की हत्या करने वाले की सार्वजानिक प्रशंसा किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं हो सकती।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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