Saturday 4 May 2019

येचुरी के बयान पर कांग्रेस खामोश क्यों

भोपाल से कांग्रेस का प्रत्याशी बनने के बाद दिग्विजय सिंह ने उलाहना दिया था कि वे भी हिन्दू हैं तब रास्वसंघ उनका समर्थन क्यों नहीं करता? यद्यपि संघ ने तो उनकी बात का उत्तर नहीं दिया लेकिन गत दिवस भोपाल में हुई एक परिचर्चा के बाद श्री सिंह की चुप्पी से उक्त सवाल का जवाब मिल गया जिसमें बोलते हुए सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने रामायण और महाभारत को हिंसक घटनाओं से भरा बताते हुए कहा कि वे साबित करती हैं कि हिन्दू भी हिंसक हो सकते हैं। उन्होंने हिन्दुओं के हिंसक नहीं होने के दावे का मखौल भी उड़ाया। श्री येचुरी आये तो परिचर्चा को संबोधित करने थे लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर ये भाजपा के विरोध के लिए आयोजित की गई थी। इसीलिये उन्होंने हिन्दुओं को हिंसक बताते हुए भाजपा प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर भी निशाना साधा। सीपीएम महासचिव का नाम भले ही  उनके माता-पिता ने सीताराम रख दिया हो लेकिन साम्यवादी होने के कारण वे नास्तिक हैं और उनके वैचारिक पूर्वज माओ त्से तुंग के अनुसार धर्म अफीम की तरह है। श्री येचुरी ने हिन्दू धर्म और उसके शास्त्रों का कितना अध्ययन किया होगा ये उनकी उक्त टिप्पणी से ही उजागर हो गया। ऐसा लगता है  कि खूनी क्रांति के जरिये सता हथियाने की पक्षधर साम्यवादी विचारधारा में दीक्षित होने के कारण सीताराम जी को भी हर चीज में केवल और केवल हिंसा ही नजर आती होगी तभी तो उन्हें रामायण और महाभारत जैसे महान ग्रंथों में वर्णित सैकड़ों प्रेरणा दायक और ज्ञानवर्धक प्रसंगों में से केवल युद्ध ही याद रहा। लेकिन एक कट्टर माक्र्सवादी यदि हिन्दुओं को हिंसक बताने का दुस्साहस करे तब कोई अचरज नहीं होता क्योंकि ऐसा करना उनकी नीति है लेकिन खुद को धर्मनिष्ठ हिन्दू कहने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के दीक्षित शिष्य दिग्विजय सिंह के चुनाव क्षेत्र में ऐसा कहा गया और  उन्होंने अब तक उसका प्रतिवाद क्यों नहीं किया इस प्रश्न का जवाब उनसे अपेक्षित है। प्रश्न ये भी उठ खड़ा होता है कि भोपाल से उनका कोई प्रत्याशी नहीं होने के बाद भी वहां वामपंथी नेता और विचारकों की आवाजाही अचानक कैसे बढ़ गई ? श्री येचुरी के पहले गीतकार जावेद अख्तर भी आकर बुर्का और घूंघट संबंधी विवाद खड़ा कर चुके थे। वैसे वामपंथियों को पालने-पोसने की शैली श्री सिंह ने अपने राजनीतिक गुरु स्व. अर्जुन सिंह से सीखी है जिनके शासनकाल में मप्र वामपंथी बुद्धिजीवियों की आश्रयस्थली बन गया था। लेकिन बीते साल अपनी पत्नी के साथ नर्मदा परिक्रमा करते हुए उन्होंने अपनी आस्थावान हिन्दू की जो छवि स्थापित की उसे देखते हुए होना तो ये चाहिए था कि वे रामायण और महाभारत जैसे पवित्र और पूजनीय ग्रन्थों में वर्णित प्रसंगों के आधार पर हिन्दुओं को हिंसक साबित करने के दावे का प्रतिवाद करते किन्तु चूँकि श्री येचुरी ने उस बहाने भाजपा को कठघरे में खड़ा किया था इसलिए वे बातें उनके मन को प्रिय लगने वाले वचन बन गईं। श्री सिंह के विरुद्ध लड़ रही भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञा की आलोचना किये जाने पर तो उनकी चुप्पी स्वाभाविक है लेकिन जहां बात हिन्दुओं की शांत प्रकृति को ही झुठलाने की हो रही हो तब उन जैसे मुखर नेता को कहना चाहिये कि श्री येचुरी गलतबयानी कर रहे हैं जो हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथों का अपमान तो है ही पौराणिक प्रसंगों के आधार पर स्थापित हिन्दुओं के विश्वास का उपहास भी है। इस प्रकार देखें तो सीताराम येचुरी के साथ ही दिग्विजय सिंह भी हिन्दुओं के बारे में की गई घोर आपत्तिजनक टिप्पणी के मौन समर्थक होने से दोष के भागीदार हैं। हिन्दू होने के नाते रास्वसंघ से समर्थन की अपेक्षा करने वाले श्री सिंह को ये समझ में आया गया होगा कि उनकी अपेक्षा पूरी क्यों नहीं होती। ये आश्चर्य की बात है कि अपने को हिन्दू साबित करने के लिए एक तरफ  जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद को ब्राह्मण बताते हुए यज्ञोपवीत धारण करने की हद तक जाते हुए मन्दिरों के चक्कर काटते हैं वहीं पूजा-पाठी दिग्विजय सिंह के चुनाव क्षेत्र में हिन्दुओं को हिंसक ठहराने जैसी बात होती रही और वे मुंह में दही जमाये हुए हैं क्योंकि उससे उनको राजनीतिक लाभ होने की सम्भावना है। श्री येचुरी के संदर्भित बयान के विरुद्ध चुनाव आयोग में शिकायत की जा चुकी है लेकिन सीपीएम महासचिव की आपत्तिजनक बातों का केवल दिग्विजय सिंह ही क्यों किसी और कांग्रेस नेता द्वारा विरोध नहीं किया जाना ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि कांग्रेस अभी भी मुस्लिम तुष्टीकरण का लोभ त्याग नहीं पा रही। उल्लेखनीय है हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान गांधी की बहिन प्रियंका वाड्रा भी अनेक हिन्दू मंदिरों में पूजा-अर्चना करती देखी गईं। सौम्य हिंदुत्व का दिखावा बीते काफी समय से कांगे्रस की रणनीति का हिस्सा रहा है। ऐसे में श्री येचुरी भोपाल में हिन्दुओं को खुलेआम हिंसक बता गए और वह भी पौराणिक ग्रंथों का उदाहरण देते हुए लेकिन श्री गांधी से लेकर भोपाल में बैठे कांगे्रस के किसी भी नेता ने सीपीएम महासचिव की आलोचना नहीं की। ऐसे में यदि हिन्दू मतों को गोलबंद करने का प्रयास किया जावे वह क्रिया की प्रतिक्रिया मात्र होगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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