Saturday 4 May 2019

क्या कभी शिक्षा भी बनेगी मुख्य चुनावी मुद्दा



सीबीएसई के 12 वीं के जो परिणाम गत दिवस आये उसमें एक बार फिर बालिकाओं ने बाजी मार ली। देश भर में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाली दोनों बेटियों हंसिका और करिश्मा ने 500 में से 499 अंक लेकर अपनी प्रतिभा का डंका पीट दिया। देश भर में उत्तीर्ण होने वालों में बालिकाओं का प्रतिशत 88 रहा वहीं बालकों का 79। बीते कई वर्षों से बेटियाँ इस परीक्षा में अव्वल आती रही हैं। प्रावीण्य सूची में भी उन्हीं का दबदबा है। वैसे ये चलन स्थायी रूप लेता जा रहा है जो एक शुभ संकेत है। बेटी पढ़ाओ का नारा जिस तरह से जोर पकड़ रहा है वह समाज की बदलती या यूँ कहें कि सुधरती हुई सोच का परिचायक है। आधी आबादी की देश के विकास में हिस्सेदारी के लिए ये जरूरी है कि बालिकाओं की शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जावे। सरकार की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन उससे भी ज्यादा परिवार की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव जरूरी है। भारतीय समाज मूलत: परिवार नामक जिस इकाई के भरोसे टिका हुआ है उसमें महिला की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। बतौर गृहिणी वह उसकी व्यवस्थापक होती है। बच्चों की परवरिश से लेकर गृह्स्थी के छोटे - बड़े कामों को कुशलतापूर्वक संपन्न करने की उसकी क्षमता बेमिसाल है। संयुक्त परिवारों में तो बगैर या कम शिक्षित महिला भी काम चला लेती थी लेकिन एकाकी परिवारों के उदय के बाद से जो स्थिति उत्पन्न हुई उसमें महिला का शिक्षित होना अनिवार्यता बन गई है। लगभग सभी क्षेत्रों  में महिलाओं की उल्लेखनीय उपस्थिति इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा की वजह से उनके भीतर जबर्दस्त आत्मविश्वास जाग्रत हुआ है। अब तो वे वायुसेना के लड़ाकू विमान तक उड़ाने लगी हैं। प्रशासन में तो उनकी उपस्थिति काफी पहले से हो चुकी  है लेकिन हाल के वर्षों में इसमें उल्लेखनीय  वृद्धि होना प्रसन्न करने वाला है। सीबीएसई  के परीक्षा परिणाम उस दृष्टि से बेहद उत्साहजनक हैं क्योंकि इसी पौध में से देश का भावी नेतृत्व तैयार होकर निकलने वाला है लेकिन ये आधी तस्वीर है। आज भी गावों की तो बात दूर रही शहरों तक में ऐसी बालिकाओं की बड़ी संख्या है जो शिक्षा  से वंचित रह जाती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी  माध्यमिक स्तर से ऊपर पढने वाली बालिकाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम ही है जबकि शासन उनके लिए हरसंभव सुविधा जुटाने में लगा रहता है। अच्छे सरकारी विद्यालयों का अभाव दिन ब दिन बढ़ता ही जा रहा है। और फिर शिक्षकों की रूचि भी शिक्षण कार्य में नहीं होती। निम्न आय वर्ग में किशोरावस्था की बालिका को भी परिवार के भरण -  पोषण में मां - बाप का हाथ बंटाना पड़ता है। ऐसी ही अनेक और भी समस्याएं हैं जो बालिकाओं की समुचित शिक्षा में बाधा बन जाती हैं। बावजूद इसके अब शिक्षा के प्रति जिस तरह बालिकाओं में रूचि पैदा हो रही है उससे आशा तो बंधती ही है। सीबीएसई की 12 वीं के परीक्षा परिणाम ने बालिका शिक्षा को एक बार पुन: चर्चा में ला दिया। जिन बेटे - बेटियों ने इसमें सफलता हासिल की वे सब बधाई और प्रोत्साहन के हकदार हैं। उनमें से जो मेधावी हैं वे उच्च शिक्षा प्राप्त  करने के बाद विदेश में न बस जाएं इसके लिए वातावरण बनाना चाहिए। आजकल संपन्न वर्ग के बच्चों को शालेय शिक्षा के बाद ही पढऩे के लिए विदेश भेज देने का सिलसिला चल पड़ा है। ये बच्चे पढ़ लिखकर वहीं काम करने लगते हैं। बेहतर हो शिक्षा के साथ देशभक्ति के संस्कार भी विकसित किए जावें क्योंकि उनके बिना शिक्षा निरर्थक है। विशेष रूप से  बालिकाओं में तो सांस्कृतिक और सामाजिक संस्कारों का बीजारोपण बहुत जरूरी है। लोकसभा चुनाव के घोषणापत्रों में विभिन्न राजनीतिक दलों ने शिक्षा के बारे में कुछ न कुछ लिखा तो जरुर है लेकिन कड़वा सच ये है कि चुनाव के बाद कोई भी सरकार शिक्षा पर अपेक्षित ध्यान  नहीं देती। हालाँकि नारेबाजी और दिखावे के लिए सार्वजनिक धन की बर्बादी तो जमकर होती है लेकिन उसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते क्योंकि प्रयासों में ईमानदारी का सर्वथा अभाव होता है। पता  नहीं वह दिन कब आयेगा जब राष्ट्रीय चुनाव में शिक्षा प्रमुख मुद्दा बनेगी ? फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि सीबीएसई के परीक्षा परिणामों से बालिकाओं की शिक्षा के प्रति रूचि तो बढ़ेगी ही साथ ही  पूरा समाज विशेष रूप से राजनीतिक बिरादरी इससे प्रेरित होकर सही दिशा में सही कदम उठायेगी। केवल मुख्यमंत्री की फोटोयुक्त बस्ते सायकिल , टैबलेट और  लैपटाप बाँटकर सौ फीसदी शिक्षा का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। जरूरत इस बात की है कि शिक्षक और विद्यालय चाहे सरकारी हों या निजी और शहर में हों या कस्बों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में उनका स्तर हर तरह से एक न्यूनतम मापदंड  तक एक समान होना चहिये। दूसरे शब्दों में कहें तो शिक्षा के क्षेत्र में समाजवादी चिंतन पूरी तरह से लागू होना चाहिए जिससे गरीब और संपन्न विद्यार्थी का भेद खत्म किया जा सके। जिन बालिकाओं और बालकों ने गत दिवस सफलता के आसमान को छुआ वे पूरे देश के दुलार और आशीर्वाद के सुपात्र हैं क्योंकि चुनाव के दौरान उत्पन्न कटुता  के बीच उन्होंने हम सभी को सुकून की अनुभूति कराई।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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