Monday 20 May 2019

आयेगा तो मोदी ही... हकीकत बनने की ओर

इसमें कोई  शक नहीं है कि मतदान के बाद किये गये सर्वे के निष्कर्ष कई बार आंशिक ही नहीं वरन पूरी तरह से गलत निकले हैं लेकिन ऐसा तो हर क्षेत्र में होता है और उस दृष्टि से गत दिवस लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान हो जाने के बाद विभिन्न टीवी चैनलों द्वारा जारी किये गए एग्जिट पोल में एकाध को छोड़कर सभी ने यदि फिर एक बार मोदी सरकार के दावे पर मोहर लगाई है तो उसे सिरे से नकारना भी उचित नहीं होगा। हालाँकि भाजपा को अपने दम पर पूर्ण बहुमत मिलने को लेकर संशय बना हुआ है लेकिन एनडीए की सरकार बनना सुनिश्चित है। कांग्रेस सहित समूचा विपक्ष ही नहीं बल्कि मोदी विरोधी असहिष्णुता गेंग  भी 23 को अंतिम नतीजों के पहले तक हार नहीं मानने पर आमादा है। लेकिन पिछले रिकार्ड और सर्वे के तरीके पर चाहे जितने प्रश्नचिन्ह लगाए जाएं लेकिन इतना तो तय है कि एग्जिट पोल और वास्तविक परिणामों के बीच यदि अंतर आ जाए तब भी दो बातें तो तय हैं कि चाहे बहुमत के साथ बने या समर्थन बटोरकर लेकिन सरकार बनेगी तो भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की ही और उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे। विपक्ष के साथ समाचार माध्यमों में भी एक समूह ऐसे लोगों का है जो त्रिशंकु की स्थिति में मोदी विहीन एनडीए सरकार की कल्पना करता रहा है लेकिन जैसे हालात बनते दिख रहे हैं उनके अनुसार एनडीए की सरकार जैसे भी बने लेकिन उसके मुखिया श्री मोदी ही होंगे। इसकी वजह आंध्र के जगन मोहन रेड्डी और तेलंगाना के चन्द्रशेखर राव हैं जो अपने  राज्य की राजनीतिक परिस्थितियों के कारण किसी भी सूरत में कांग्रेस के साथ नहीं जा सकते। हालांकि भाजपा का इनसे किसी प्रकार का गठबंधन नहीं था लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि वे जरूरत पडऩे पर एनडीए के साथ जुडऩा ही पसंद करेंगे। लोकसभा  में तेलुगु देशम द्वारा मोदी सरकार के विरुद्ध पेश किये गये अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दौरान भी इन दोनों ने अनुपस्थित रहकर भाजपा की मदद ही की थी। चूँकि चन्द्रबाबू नायडू श्री रेड्डी और श्री राव दोनों के सियासी दुश्मन नम्बर एक हैं इसलिए उनका झुकाव चाहे-अनचाहे एनडीए की तरफ  ही रहेगा। इस प्रकार अन्य विरोधी दलों के समर्थन से कांग्रेस की या कांग्रेस के समर्थन से तथाकाथित तीसरे  मोर्चे की सरकार बनने संबंधी आशावाद हकीकत में बदलता नहीं लगता। रही बात भाजपा की तो उसके सबसे बड़ी पार्टी होने को लेकर किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है लेकिन वह 2014 की तरह ही 272 के जादुई आंकड़े को पार कर सकेगी इस पर जरुर किन्तु-परन्तु लग रहे  हैं। हालांकि जिन  दो-तीन सर्वेक्षणों में एनडीए को 350 से उपर बताया गया है यदि वे सही निकले  तब जरुर भाजपा अकेले 300 के आंकड़े को हासिल कर  इतिहास रच सकेगी और ऐसा हुआ तब ये मानना ही होगा कि मोदी नाम की सुनामी थी जिसे विपक्ष तो क्या अच्छे-अच्छे राजनीति के जानकार तक नहीं समझ सके। बहरहाल किसी भी एग्जिट पोल ने कांग्रेस के बहुमत तो दूर की बात रही उसके नजदीक फटकने की आशंका तक नहीं जताई। यहाँ तक कि बिहार और महाराष्ट्र में गठबंधन के बावजूद भी वह मतदाताओं की पसंद नहीं बन सकी। पहले  ये उम्मीद की जा रही थी कि हालिया अच्छे प्रदर्शन के बाद वह गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को घुटनाटेक करवा देगी लेकिन जो संकेत आये उनके अनुसार तो वह खुद मुंह के बल गिरती नजर आ रही है। कर्नाटक से भी उसे अच्छी खबर नहीं मिल रही। केवल तमिलनाडु वह राज्य है जहां कांग्रेस का गठबंधन सफलता की ओर है लेकिन उसका श्रेय और सीटों का बड़ा हिस्सा द्रमुक के खाते में जाएगा। केरल में  भी वामपंथी बंटवारा करते दिख  रहे है। केवल पंजाब में कांग्रेस अपने दम पर बढ़त लेती दिखती है। लेकिन उसमें भी योगदान मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह का ज्यादा है। इस प्रकार कांग्रेस 44 सीटों से कितनी उपर जायेगी ये प्रश्न भी अब महत्वहीन हो गया है क्योंकि उसके नेतृत्व वाले यूपीए को ही कोई 150 तक नहीं मान रहा। इस चुनाव में चंद्रबाबू नायडू और अरविन्द केजरीवाल जैसे क्षेत्रीय छत्रपों का नूर भी उतरता दिखाई दे रहा है। उप्र में सपा-बसपा महागठबंधन के प्रदर्शन को लेकर बड़ी आशाएं लगाने वाले भी कल निराश हो गये जब ये पता लगा कि उसे भाजपा का सफाया करने में उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली। यही स्थिति बंगाल की है जहां ममता बैनर्जी के अभेद्य किले में भाजपा ने सेंध लगा दी है और उड़ीसा में भी अपने पांव जमा लिए हैं। इन दो राज्यों में यदि एग्जिट पोल जैसे नतीजे आये तब मोदी-शाह की जोड़ी को पूरे नम्बर देने पड़ेंगे। अभी दो दिन इन्तजार और कयासों के जरुर हैं लेकिन एक बात तो तय है कि कोई अकल्पनीय उलटफेर नहीं  हुआ तब आएगा  मोदी ही का नारा जमीनी सच्चाई बन जाएगा। नरेंद्र मोदी की वापिसी उनके कद को जहां वैश्विक स्तर पर और ऊँचा करने में मददगार बन जायेगी वहीं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान और गहरे हो जायेंगे। बड़ी बात नहीं कल को उनकी बहिन प्रियंका वाड्रा ही उनके लिए सिरदर्द बन जाएं। भारतीय राजनीति में श्री मोदी की वापिसी एक गुणात्मक बदलाव का कारण बन सकेगी जिसकी परिणिति उन ताकतों के सम्पूर्ण पराभव के तौर पर देखने मिल सकती है जो राष्ट्रवाद को तानाशाही का पर्याय बताने की हद तक जाने में भी नहीं शरमाये। बंगाल में वामपंथ का सफाया इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय की इतिश्री होगी। यदि भाजपा ने 300 पार का आंकड़ा छू लिया तब नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति में महानायक के तौर पर स्थापित हो जायेंगे लेकिन सबसे बड़ा बदलाव  ये होगा कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को लेकर विधवा विलाप करने वाली ताकतें हाशिये से भी बाहर हो जायेंगी। वैसे अभी भी जिन लोगों को एग्जिट पोल झूठ का पुलिंदा लग रहे हैं उन्हें दो दिन तक दिल बहलाने का पूरा अधिकार है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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