Wednesday 22 May 2019

विरोधाभास : एग्जिट पोल और ईवीएम दोनों पर अविश्वास

लोकसभा चुनाव के जो एग्जिट पोल आये उन्हें विपक्ष ने पूरी तरह से नकार दिया है। कांग्रेस के साथ ही भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दल भी उनका मजाक उड़ा रहे हैं। पुण्य प्रसून वाजपेयी और  रवीश कुमार जैसे मोदी विरोधी एंकर को तो एग्जिट पोल झूठ का पुलिंदा लग रहे हैं। इनकी वैज्ञानिकता को लेकर भी तरह-तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं। चूंकि अतीत में अनेक मर्तबा एग्जिट पोल पूरी तरह से गलत हुए है इसलिए भी उनके नतीजों पर सवाल उठ रहे हैं लेकिन एक बात समझ से परे है कि जब विपक्ष को पूरा भरोसा है कि भाजपा हार रही है और मोदी सरकार जाने वाली है तब बीते दो दिनों से ईवीएम से छेड़छाड़ को लेकर आसमान सिर पर उठाने का क्या फायदा है? ईवीएम की सुरक्षा को लेकर सोशल मीडिया पर चल रही अनधिकृत खबरों के कारण ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे उनको बदलना और उनमें हेराफेरी कर देना बच्चों का खेल हो। दिसम्बर 2018 में जिन तीन भाजपा शासित राज्यों में कांग्रेस जीतकर सत्तारूढ़ हुई उनके चुनाव परिणामों को लेकर उसने कभी शंका व्यक्त नहीं की। दो दिन पहले एक कांग्रेस नेता ने तो यहाँ तक कह दिया कि उन राज्यों में भाजपा जान बूझकर हारी ताकि ईवीएम पर अविश्वास दूर हो और लोकसभा चुनाव में हेराफेरी की जा सके। संदेह मिटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने हर बीट के पांच मतदान केन्द्रों की ईवीएम के नतीजों का मिलान वीवीपैट पर्चियों से करने का आदेश पूर्व में ही पारित कर  दिया था। दोनों में अंतर आने पर वीवीपैट की गणना सही मानी जावेगी। संदेह की स्थिति में आधी या सभी ईवीएम से निकली पर्चियां गिनने की याचिका न्यायालय ने गत दिवस खारिज कर दी। उसके बावजूद विपक्ष ने ऐसा माहौल बना रखा है जैसे केंद्र सरकार पूरे देश की ईवीएम में मनमाफिक  हेराफेरी कर देगी । चुनाव आयोग को भी पूरी तरह असहाय और अकर्मण्य बताने की प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है। विपक्ष के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि अगर चुनाव नतीजे उसकी अपेक्षा के अनुरूप निकले तब भी क्या वह ईवीएम पर अपने संदेह जारी रखेगा? इन मशीनों को लेकर शक व्यक्त करने वालों में भाजपा के नेता भी रहे हैं। डा. सुब्रमण्यम स्वामी और जीवीएल नरसिम्हन का नाम प्रमुख तौर पर उभरता है। श्री नरसिम्हन ने तो ईवीएम में हेराफेरी पर किताब भी लिखी थी। लेकिन उसके बाद देश में दर्जनों चुनाव हुए जिनमें अलग-अलग पार्टियां जीत चुकी हैं। 2014 के जिस चुनाव में भाजपा को पहली बार स्पष्ट बहुमत मिला वह कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सरकार के कार्यकाल में हुआ था। उसके बाद दिल्ली और बिहार में क्रमश: आम आदमी पार्टी और नीतीश-लालू के गठबन्धन ने मोदी लहर को पूरी तरह से असरहीन कर दिया। तब तक ईवीएम को लेकर ज्यादा हल्ला नहीं मचा लेकिन उप्र में भाजपा की धमाकेदार जीत के बाद ईवीएम का जबर्दस्त विरोध शुरू हो गया जबकि पंजाब में कांग्रेस को मिली भारी सफलता  को पार्टी ने अपनी जीत के रूप में प्रचारित किया। उप्र के बाद भी गुजरात, कर्नाटक, मप्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव हुए जिनके नतीजे मिले जुले रहे ऐसे में ईवीएम को पूरी तरह संदिग्ध मान लेने की नीति मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू वाली मानसिकता का परिचायक ही कहा जाएगा। बहरहाल गत दिवस सर्वोच्च न्यायालय की दो टूक मनाही के बावजूद भी विपक्ष का रोना जारी है। यदि अंतिम परिणामों में पराजय  के बाद चिल्लपुकार की जाती  तब तो उसका औचित्य भी था लेकिन जिन एग्जिट पोल पर धेले भर का भरोसा नहीं है उसे देखते ही छाती पीटने से विपक्ष की हताशा जाहिर हो रही है। आरएलएसपी अध्यक्ष और मोदी सरकार में मंत्री रह चुके उपेन्द्र कुशवाहा तो खून खराबे जैसी धमकी पर उतर आये। राजनीति की नब्ज पहिचानने वाले अनेक विश्लेषकों का मानना है कि इसी  नकारात्मक सोच के कारण विपक्ष की विश्वसनीयता जनता की नजर में कायम नहीं रह सकी और जैसे संकेत आ रहे हैं उनके अनुसार मोदी सरकार की वापिसी के आसार हैं। ईवीएम में यदि कहीं गड़बड़ी है तब उसे तकनीकी विशेषज्ञ ही स्पष्ट कर सकते हैं। कोई भी मशीन 100 फीसदी दोषरहित और सुरक्षित हो ये मान लेना तो गलत होगा लेकिन लाखों मशीनों के साथ छेड़छाड़ जैसा आरोप पूरी तरह से अव्यवहारिक और बचकाना ही लगता है। बेहतर हो विपक्ष  आत्मावलोकन कर अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयास करे। भारत जैसे विविधता भरे देश में जनता का विश्वास जीतना उतना आसान नहीं, जितना समझा जाता है। भाजपा और नरेंद्र मोदी ने यदि जनता के मन पर प्रभाव छोड़ा है तो उसके पीछे कुछ ठोस कारण होंगे। विपक्ष अपने दायित्व के सही निर्वहन की बजाय जिस तरह के सतही विरोध में उलझा रहा उससे उसकी छवि और विश्वसनीयता दोनों पर बुरा असर पड़ा। 2014 से 2019 के बीच का समय कम नहीं था। विपक्ष उसका समुचित उपयोग नहीं  कर सका तो ये उसकी गलती रही। ईवीएम को लेकर किये जा रहे  प्रलाप से साबित हो गया कि उसने हम नहीं सुधरेंगे की कसम खा रखी है। देखने वाली बात ये रहेगी कि जिन राज्यों या सीटों के नतीजे विपक्ष के अनुकूल रहे वहां भी क्या वह पुनर्मतदान करवाना चाहेगा? एग्जिट पोल और ईवीएम दोनों पर एक साथ अविश्वास को विरोधाभास नहीं तो और क्या कहा जाए?

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment