Thursday 9 May 2019

चीन आतंकवाद की जड़ें खोद सकता है तो हम क्यों नहीं

चीन के शिनजियांग (पुराना नाम सिकियांग) में उइगर मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है। दिखने में ये भी मंगोलियन नस्ल का एहसास ही करवाते हैं। मध्य एशिया से होते हुए इस्लाम इस सीमावर्ती इलाके में आया होगा लेकिन उसके आगे नहीं बढ़ सका। 1949 की साम्यवादी क्रांति के बाद चीन में धर्म एक तरह से प्रतिबंधित हो गया था। माओ ने तो धर्म को अफीम कहकर उसका प्रतिकार किया। यद्यपि बौद्ध और हूण संस्कृति के अवशेष वहाँ दबे रहे जो उदारीकरण के प्रादुर्भाव के बाद धीरे-धीरे ही सही लेकिन अंकुरित होने लगे। लेकिन चीन में इस्लाम की मौजूदगी दुनिया की निगाहों में नहीं आ सकी। ये भी अचरज की बात है कि तिब्बत पर जबरन कब्ज़ा करने के बाद वहां की बौद्ध संस्कृति को पूरी तरह नष्ट करने जैसी नीति अपनाने के बाद भी चीन ने शिनजियांग के उइगर मुस्लिमों को क्यों  नजरंदाज कर दिया? चीनी मामलों के कूटनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार उसके पीछे चीन सरकार की इस्लाम के प्रति हमदर्दी कम और पकिस्तान से अपनी स्वार्थसिद्धि ज्यादा थी। चीन को डर था कि यदि उसने उइगर मुस्लिमों के धर्म पालन पर बंदिशें लगाईं तब उसका विपरीत असर पाकिस्तान पर पड़ सकता है। स्मरणीय है पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर का अक्साई चिन इलाका चीन को बतौर तोहफा दे दिया। उसकी महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना भी इसी से गुजरने वाली है जिसका भारत विरोध कर रहा है। जहां तक बात शिनजियांग प्रान्त के उइगर मुस्लिमों की है तो कुछ वर्ष पूर्व वहां कुछ आतंकवादी घटनाएँ हुईं जिनके तार पश्चिम एशिया के इस्लामी आतंकवाद से जुड़े पाए गए। उस मुहिम को तो चीन सरकार ने सख्ती से कुचल ही दिया लेकिन उसके बाद से उसने मुसलमानों के धार्मिक आधिकारों और आजादी पर बंदिशें लगाने के साथ ही उनकी जड़ें काटने का वैसा ही सुनियोजित प्रयास शुरू कर दिया जैसा वह तिब्बत में करता आया है और अभी भी कर रहा है। मुस्लिमों के त्यौहारों पर रोक लगाना, नमाज हेतु ध्वनि विस्तारकों के उपयोग पर प्रतिबन्ध, नमाज पढऩे, दाढ़ी-टोपी पर निषेध के साथ ही रमजान में रोजे रखने पर भी बंदिश लगा दी गई। यही नहीं तो मुस्लिम समुदाय पर दमनात्मक कार्रवाई भी की जाने लगी। दर्जनों मस्जिदें ढहा दी गयीं। आज खबर आ गई कि चीन सरकार ने रमजान के महीने में होने वाली सभी इस्लामिक धार्मिक रस्मों पर कड़ाई से रोक लगा दी है। इसी के साथ ये जानकारी भी आ रही है कि उक्त प्रान्त में चीन की सरकारी एजेंसयां मुस्लिम युवकों के दिमाग से इस्लाम का प्रभाव नष्ट करने का ठीक वैसा ही योजनाबद्ध प्रयास कर रही हैं जैसा तिब्बत में किया गया। उन्हें साम्यवादी विचारधारा में ढालने का अभियान भी जारी है। इस समूची कवायद का मूल उद्देश्य इस्लम की आड़ में आतंकवाद की किसी भी सम्भावना को चीन की धरती पर उत्पन्न होने से पहले ही कुचल देना है। जब तक सोवियत संघ रहा तब तक चीन को ज्यादा चिंता नहीं थी लेकिन उसके विघटन के बाद मध्य एशिया के जो देश स्वतंत्र हुए उनमें से अधिकांश में इस्लाम पूरी ताकत के साथ लौट आया। यही नहीं वहां आतंकवादी घटनाएं भी यदाकदा होने लगीं। चीन इस खतरे का दूरगामी प्रभाव भांप गया और उसने बिना देर लगाये अपनी चिरपरिचित नीति लागू करते हुए उक्त प्रान्त में इस्लाम की जड़ों पर प्रहार शुरू कर दिया। कहने को तो ये उसका आंतरिक मसला है किन्तु पकिस्तान जैसा पड़ोसी और चीन का घनिष्टतम मित्र तक मुंह में दही जमाये बैठा हुआ है। बाकी इस्लामिक देश भी चूं-चपाट करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे। मानव अधिकारों के लिए लडऩे वाले वैश्विक संगठनों में से भी किसी ने इसका संज्ञान नहीं लिया और लिया भी हो तब चीन सरकार से कुछ पूछने की तकलीफ नहीं उठाई। और तो और भारत में धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटने वाले माक्र्सवादियों ने भी अपने वैचारिक अभिभावक चीन से शिनजियांग प्रान्त के उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार रोकने की विनती नहीं की। कुल मिलाकर इस मामले से ये साबित हो जाता है कि किसी भी देश के लिए उसके राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होते हैं। अब लौटकर अपने देश पर निगाह डालें तो कश्मीर घाटी में अलगाववाद को समर्थन देने वाले नेता रमजान के अवसर पर सरकार से युद्धविराम करने की मांग करते हैं। वैसे भी अब तक की किसी भी केंद्र सरकार ने कश्मीर में इस्लाम से जुड़ी किसी भी गतिविधि या रस्म की अदायगी पर बंदिश नहीं लगाई। चीन ने सैकड़ों उइगर मुस्लिम युवकों को पकड़कर जेल में डाल रखा है जिनमें से कई का कोई अता-पता नही है। भारत चूंकि लोकतान्त्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है जिसमें स्वतंत्र न्यायपालिका के अलावा अभिव्यक्ति की आजादी भी है लेकिन राष्ट्र के दूरगामी  हितों के संरक्षण के प्रति उदासीनता के कारण हमारे देश में आतंकवादी और दुसरी देश विरोधी ताकतों के विरुद्ध जिस तरह का सख्त रवैया अपनाने की जरूरत है वैसा होने पर जिस तरह आसमान सिर पर उठाया जाता है वह हमारी कमजोरी का प्रमाण बन जाता है। चीन हमारे लिए आदर्श नहीं है। न ही  हम वहां की एकाधिकारवादी शासन व्यवस्था को स्वीकार कर सकते हैं लेकिन शत्रु की भी अच्छी बात आत्मसात करना राष्ट्रहित में होता है और उस दृष्टि से चीन इस्लाम के नाम पर फैल रहे आतंकवाद की जड़ें खोदने में जैसी मुस्तैदी दिखा रहा है वह भारत के लिए भी विचारणीय है। मानव अधिकारों के प्रति सम्वेदनशीलता और धार्मिक स्वतंत्रता किसी भी सभ्य समाज के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है लेकिन जब राष्ट्र की सुरक्षा और अखंडता खतरे में हों तब कठोर निर्णय लेना जरूरी है। कश्मीर में आतंकवाद के पनपने के पीछे पकिस्तान की कुटिल चालें  तो हैं ही हमारी अपनी कमजोर नीतियाँ भी कम जिम्मेदार नहीं हैं जिनके चलते भारत की आन्तरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। रोहिंग्या शरणार्थियों के प्रति देश के एक जिम्मेदार तबके का सहानुभूतिपूर्ण रवैया इस बात का प्रमाण है कि इतिहास की गलतियों से अब तक हमने कुछ नहीं सीखा। चीन तो चलिये एक बड़ा और ताकतवर राष्ट्र है किन्तु ईस्टर के दिन श्रीलंका के चर्चों में हुए बम धमाकों के बाद वहां की सरकार ने आतंकवाद के विरुद्ध जिस तरह की सख्ती दिखाई कम से कम उसी से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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