Thursday 30 May 2019

मोदी : मुखालफत से मेरी शख्सियत संवरती है ......

बतौर प्रधानमन्त्री अपनी दूसरी पारी शुरू करने जा रहे नरेंद्र मोदी ने आज सुबह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और भाजपा के संस्थापक अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपेयी की समाधि पर श्रद्धासुमन अर्पित कर राजनीतिक जगत को ये संदेश दे दिया कि उनकी दिशा क्या होगी ? कांग्रेस सहित दूसरे दलों को ये शिकायत रहा करती है कि श्री मोदी ने पहले सरदार पटेल और अब गांधी जी की विरासत पर कब्जा कर लिया है। वे ये आरोप भी लगाते हैं कि उनके प्रधानमन्त्री बनने के बाद से भाजपा ने उस समन्वयवादी राजनीति से मुंह मोड़ लिया है जिसके श्री वाजपेयी जीवंत प्रतीक रहे। लेकिन आलोचक इस बात को भूल जाते हैं कि श्री मोदी राजनीति में आने से पहले रास्वसंघ  के प्रचारक रहे हैं और उस दौरान विभिन्न व्यक्तित्वों और विचारधाराओं के अध्ययन का अवसर उन्हें  मिला। लोगों को ये भी ध्यान होगा कि लालकिले से अपने पहले भाषण में ही श्री मोदी ने 2019 में गांधी जी के जन्म  के 150 साल पूरे होने की बात कहते हुए स्वच्छ भारत का अभियान शुरू किया था। तब किसे मालूम था कि उन्हें ही इस अवसर पर देश का नेतृत्व करने का जनादेश दोबारा प्राप्त होगा। संसदीय दल के नेता चुने जाने के बाद बीते सप्ताह उन्होंने एक बार फिर  महात्मा जी को उसी सन्दर्भ में याद किया। इसी तरह 2014 में संसद के केन्द्रीय कक्ष में नवनिर्वाचित सांसदों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा  था कि अटल जी आज यहाँ होते तो सोने  में सुहागा हो जाता। उनकी मृत्यु पर शवयात्रा में कई किलोमीटर पैदल चलकर उन्होंने ये दर्शा दिया था कि दिवंगत नेता के प्रति उनके मन में किस हद तक श्रद्धा भाव था। आज उन्होंने एक बार फिर दिखा दिया कि वे अपनी दिशा से नहीं भटकते और अपना कहा भूलते नहीं। श्री मोदी अवसर की गम्भीरता और महत्व को समझकर उसका सही उपयोग करने के लिए जाने जाते हैं। देश का नेतृत्व दोबारा  करने के लिए जो प्रचंड जनादेश उन्हें बीते सप्ताह मिला उसमें उनके इस गुण का खासा योगदान है। गांधी जी और अटल जी दोनों उन विभूतियों में हैं जिनके प्रति उनके वैचारिक विरोधी भी सम्मान का भाव रखते हैं। प्रधानमंत्री ने आज उन दोनों की समाधि पर आदरभाव प्रगट कर अपने विरोधियों के साथ ही पूरी दुनिया को ये संदेश दे दिया है कि वे एक कठोर शासक भले हों लेकिन उनकी सोच में सबका साथ सबका विकास जैसी भावना समाहित है। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में दक्षिण के एक दो राज्य छोड़कर श्री मोदी के व्यक्तित्व का जादू यदि हर जगह छाया रहा तो उसके पीछे उनकी समन्वयवादी सोच ही थी वरना उनके कटु आलोचक उद्धव ठाकरे और नीतीश कुमार जैसे नेता उनके नेतृत्व को कभी स्वीकार नहीं करते। जातिवादी दायरों में कैद राजनीति को चौतरफा धराशायी करने का कारनामा उन्होंने लगातार दोबारा दोहराकर ये साबित कर दिया कि राजनीति को प्रचलित ढर्रे से निकला जा सकता है बशर्ते नेता में ईमानदारी रहे। बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में गच्चा खाने के बाद उन्होंने उप्र विधानसभा के चुनाव में जाति के तिलिस्म को तोड़ा और इस लोकसभा चुनाव में उसकी पूर्णाहुति कर दी। नरेंद्र मोदी ने हाल  ही में ये भी कहा कि आगामी पांच वर्ष का कालखंड 1942 से 1947 जैसा है जिसमें अनेक ऐतिहासिक घटनाओं से देश रूबरू होगा। निश्चित रूप से उनमें वह क्षमता है कि वे अप्रासंगिक हो चुके इतिहास को भी आधुनिक सन्दर्भ में प्रासंगिक बनाकर उसे राष्ट्रीय जीवन से जोड़ देते हैं। अपने स्वच्छता अभियान को उन्होंने जिस तरह से गांधी जी से जोड़ा वह उनकी दूरगामी सोच का प्रमाण है। इसी तरह से वे सदैव अटल जी का स्मरण करते हुए उन्हें सम्मान देने से नहीं चूकते जिनके बारे में ये प्रचारित होता रहा है कि गुजरात दंगों के बाद वे श्री मोदी को राजधर्म का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे। आज अपना दूसरा  कार्यकाल प्रारंभ करते हुए उन्हें न गांधी जी के नाम की जरूरत है और न ही अटल जी का स्मरण करने की। 2019 का चुनाव उन्होंने अपने नाम के बल पर जीता है। भाजपा सहित एनडीए के जो 350 से ज्यादा सांसद जीते उनका नाम और काम तो पूरी तरह से पृष्ठभूमि में चला गया और मोदी-मोदी के नारे का सहारा लेकर लायक-नालायक सब चुनावी वैतरणी पार कर गए। ऐसे में यदि वे खुद को स्वयंभू मानकर आत्मकेंद्रित हो जाएँ तब उन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं है। लेकिन एक बात मानना पड़ेगी कि व्यवहारिकता में इस इंसान का कोई सानी नहीं है जो महज दो सीटें जीतने वाले अकाली दल के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल के सार्वजनिक रूप  से चरण स्पर्श करने में नहीं सकुचाता। वे लोग जो बीते कुछ दिनों से गोड़से को लेकर श्री मोदी को घेरना चाह रहे थे उन्हें उनने माकूल जवाब दे दिया। वहीं अटल जी की समाधि पर श्रद्धावनत होकर उन आलोचकों को भी ठंडा कर दिया जो कहते थे कि भाजपा अटल-आडवाणी की पुण्याई को भुलाकर श्री  मोदी के शिकंजे में फंस गई है। ऐसे समय में जब देश की जनता ने एक तथाकथित गांधी को अपरिपक्व मानकर पूरी तरह उपेक्षित कर दिया तब महात्मा गांधी की समाधि पर सिर झुकाकर नरेन्द्र मोदी ने एक साथ बहुत सारे संदेश दे दिए। उसी के साथ स्व. वाजपेयी की समाधि पर उनका जाना शपथ ग्रहण के पहले राष्ट्र को ये आश्वस्त  करने का प्रयास है कि वे जनादेश का मर्म और भारतीय जनमानस की भावनाओं को गहराई तक समझते हैं और उनका शासन प्रखर राष्ट्रवाद से प्रेरित और प्रभावित होने के बाद भी उस कट्टर सोच से मुक्त रहेगा जिसके लिए उन्हें बीते डेढ़ दशक से भी ज्यादा बदनाम करने का योजनाबद्ध षडयंत्र चला आ रहा है। चुनाव परिणामों के बाद भी उनके प्रति घृणा फैलाने वाले गिरोह अपनी खीझ मिटाने से बाज नहीं आ रहे लेकिन वे भूल जाते हैं कि जितना विरोध हुआ उनकी ताकत और लोकप्रियता उतनी ही बढ़ती गई। मशहूर शायर डा. बशीर बद्र का ये शेर शायद नरेंद्र मोदी के लिए ही लिखा  गया था :- 
मुखालफत से मेरी शख्सियत संवरती है, मैं दुश्मनों का बड़ा ऐहतराम करता हूँ।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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