Saturday 22 August 2020

सीबीआई के पास सितारों के काले सच उजागर करने का मौका



अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की गुत्थी सुलझाने की जिम्मेदारी सीबीआई को मिलने के बाद बिहार और महाराष्ट्र सरकार के बीच चल रहा शीतयुद्ध ऊपर से तो समाप्त हो गया किन्तु राजनीतिक दांवपेंच जारी हैं। लेकिन इससे फिल्मी दुनिया की गन्दगी पर पड़ी परतें लगातार खुल रही हैं। सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि फिल्म जगत सुशांत की मौत को लेकर दो धड़ों में विभक्त हो गया है। आरोप-प्रत्यारोप जिस धड़ल्ले से चल रहे हैं उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि अपनी एकता के लिए प्रसिद्ध फिल्मी बिरादरी मौजूदा हालात में टुकड़े-टुकड़े होने के कगार पर है। हालाँकि फिल्मी कलाकारों के राजनीति में आने का सिलसिला काफी पुराना है। दक्षिण भारत में तो फिल्मी सितारों का राजनीति में धमाकेदार प्रवेश साठ के दशक में ही हो चुका था। इसी तरह कोलकाता में बँगला फिल्म उद्योग में भी वामपंथी प्रभाव वाली अनेक हस्तियाँ राजनीति में उतरीं। तमिलनाडु में एमजी रामचंद्रन और उनके बाद जयललिता जैसे फिल्मी चेहरे लम्बे समय तक सत्ता में रहे। अविभाजित आंध्र में एनटी रामाराव भी धूमकेतु की तरह उभरे थे। मुम्बई फिल्म उद्योग इस मामले में पीछे रहा लेकिन फिर सुनील दत्त, विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा को केंद्र में मंत्री पद मिलने से सत्ता में फिल्मी उद्योग की भागीदारी मजबूत हुई। अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, गोविन्दा, धर्मेन्द्र, हेमा मालिनी और सनी देओल ने लोकसभा तो पृथ्वीराज कपूर, नर्गिस, शबाना  आजमी, जया बच्चन और रेखा आदि ने राज्य सभा में अपनी मौजूदगी दर्ज की। मुंबई फिल्म जगत से जुड़े अनेक कलाकार चुनावों में राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रचार करते रहे हैं। लेकिन राजनीतिक मतभिन्नता के बावजूद भी उनके आपसी रिश्ते बेहद प्रगाढ़ रहे। हालांकि व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा बनी रही लेकिन ये पहला अवसर है जब मुम्बई फिल्म उद्योग में अभूतपूर्व दरारें देखने मिल रही हैं। पहले तो परिवारवाद के नाम पर बाहरी प्रतिभाओं को परेशान करने जैसी बातें सामने आईं। ये आरोप खुलकर लगाये जाने लगे कि चंद परिवारों ने फिल्मी दुनिया पर कब्जा जमा रखा है। स्टार किड्स नामक एक वर्ग ऐसा है जो बाहरी दुनिया से आए अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की राह में रोड़ा बन ज़ाता है। सुशांत की मौत को भी इसी से जोड़ा गया। उसने आत्महत्या की या उसकी ह्त्या हुई ये तो सीबीआई की जाँच के उपरान्त ही स्पष्ट हो सकेगा लेकिन उसके समानांतर फिल्म जगत में चारित्रिक पतन की जो कहानियाँ सामने आ रही हैं वे घिन पैदा करने वाली हैं। यद्यपि कास्टिंग काउच के किस्से तो समय-समय पर सामने आते रहे हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में इनका खुलासा कुछ ज्यादा ही होने लगा है। अनेक अभिनेत्रियों द्वारा आत्महत्या किये जाने के पीछे उनका यौन शोषण ही प्रमुख वजह मानी गई। सुशांत की मौत के बाद जिस तरह की बातें सोशल मीडिया पर हो रही हैं और अनेक अभिनेत्रियाँ अपने शोषण के किस्सों का बखान कर रही हैं उसे देखते हुए इस बारे में भी जाँच होनी चाहिए। हालांकि निजी सम्बन्धों को लेकर फिल्मी दुनिया सदैव वर्जनाहीन रही है। लेकिन कुछ सालों से लिव इन की जो संस्कृति पैर पसार रही है उसके कारण फिल्म जगत में रिश्तों को लेकर स्थापित सामाजिक मर्यादाएं तार-तार होकर रह गई हैं। सुशांत स्वयं भी दो अभिनेत्रियों के साथ लिव इन में रहे और जैसे आरोप लगाये जा रहे हैं उनके अनुसार तो उनको मौत के मुंह में धकेलने के लिए लिव इन पार्टनर ही जिम्मेदार हैं। ग्लैमर की दुनिया का का ये काला सच केवल मुम्बई में ही नहीं है। दक्षिण भारत और बंगाल में भी ये गंदगी बराबरी से है लेकिन मुम्बई चूंकि भारत का हॉलीवुड कहा जाता है इसलिए उसकी चर्चा देशव्यापी होती है। सुशांत जैसे अनेक मामले दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग में भी हुए लेकिन इस जैसी राजनीतिक उठापटक नहीं हुई। कुछ अरसे पहले जिया खान नामक अभिनेत्री की आत्महत्या ने भी काफी सनसनी मचाई थी लेकिन उसमें राजनीति नहीं आने से वह धीरे से ठंडा हो गया। वहीं सुशांत मामले में बिहार विरुद्ध महाराष्ट्र की स्थिति बन जाने से बात सर्वोच्च न्यायालय तक जा पहुंची। महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई जांच में जिस तरह से अड़ंगेबाजी की उससे संदेह और पुख्ता हुए तथा बात मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पुत्र तक जा पहुंची। लेकिन फिल्मी दुनिया में जिस तरह की खेमेबाजी सामने आई उसे देखते हुए लगता है कि लम्बे समय से दबा हुआ ज्वालामुखी फूटने के कगार पर आ गया है। संजय दत्त के पास अवैध हथियार पकड़े जाने के समय उनके पिता स्व. सुनील दत्त ने शिवसेना प्रमुख स्व. बाल ठाकरे से भी सहयोग माँगा था। जबकि स्व. दत्त कांग्रेस में थे। पूरा मुम्बई फिल्म जगत उस समय संजय के प्रति सहानुभूति व्यक्त करता सामने आया था जबकि उसका अपराध देश विरोधी था। और भी ऐसे कांड हुए जिनमें फिल्मी हस्तियाँ फंसीं परन्तु लगभग सभी ने उनका साथ दिया। लेकिन सुशांत की मौत के बाद परिदृश्य पूरी तरह बदल सा गया। और सीबीआई जाँच की मांग को जिस तरह फिल्मी हस्तियों का समर्थन मिला उसने ये साबित कर दिया कि मुम्बई फिल्म उद्योग में कुछ लोगों का एकाधिकार अब असहनीय हो गया है। सुशांत की मौत के साथ जुड़े लोगों के फिल्मी दुनिया के अनेक स्थापित दिग्गजों से अन्तरंग सम्बन्ध चकाचौंध के पीछे के अँधेरे को उजागार कर रहे हैं। सबसे जयादा चौंकाने वाली बात ये है कि जिस शिवसेना का फिल्मी दुनिया में इकतरफा दबदबा था वही इस बार रक्षात्मक होने मजबूर दिखाई दे रही है। ये सब देखते हुए लगता है सीबीआई को सुशांत की मौत की जाँच करते-करते ऐसे अनेक दबे हुए मामले मिल सकते हैं जिनसे फिल्मी दुनिया के भीतर व्याप्त गंदगी और माफियाकरण का खुलासा हो जाएगा। ये बात तो जगजाहिर है कि पहले फिल्मों में धनकुबेरों का काला धन लगा करता था लेकिन अब माफिया के पैसों से फिल्में बनती हैं। दुबई में दाउद इब्राहीम की मेजबानी का लुत्फ़ उठा चुके फिल्मी कलाकारों के सचित्र प्रमाण होने के बाद भी उनका छुट्टा घूमना रहस्यमय है। बड़े दिनों बाद ये मौका आया है जब सितारों की दुनिया का काला सच सामने आने की उम्मीदें जागी हैं जिसका लाभ लिया जाना चाहिए। लेकिन ये आशंका भी सता रही है कि महाराष्ट्र की सरकार को गिराने या बचाने के नाम पर कहीं लीपापोती न हो जाये। आदित्य ठाकरे पर छोड़े तीर तरकश में लौट न आएं ये डर सबको सता रहा है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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