Tuesday 4 August 2020

भारत के पुनरुथान का ऐतिहासिक पल होगा राम मंदिर का भूमिपूजन




सदियों से चले आ रहे संघर्ष के बाद आखिरकार वह घड़ी आ ही गयी जब अयोध्या में भगवान श्री राम के जन्मस्थान पर भव्यतम मंदिर निर्माण की धार्मिक प्रक्रिया शुरू होगी। कल 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विधिवत भूमिपूजन कर निर्माण का शुभारम्भ कर देंगे। चूँकि मंदिर में प्रयुक्त होने वाले पत्थरों की गढ़ाई बीते कई दशक से चली आ रही है इसलिए निर्माण पूरा होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। सौभाग्य से कानूनी अड़चन भी नहीं बची । केंद्र के साथ उप्र में भी मंदिर समर्थक पूर्ण बहुमत वाली सरकार होने से राजनीतिक स्तर पर भी कोई अवरोध नहीं रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों राम जन्मभूमि के आंदोलन से जुड़े रहे थे। इसलिए वे दोनों न सिर्फ मंदिर के निर्माण अपितु समूचे अयोध्या क्षेत्र को भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का विश्वस्तरीय केंद्र बनाने में व्यक्तिगत रूचि ले रहे हैं। जैसी जानकारी आई है उसके अनुसार मंदिर निर्माण के साथ ही अयोध्या में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाएँ उपलब्ध कराई जायेंगीं। प्रधानमन्त्री इस बारे में बेहद व्यवहारिक हैं। उनके निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में जिस तरह से उन्होंने गंगा तटों के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर के चारों तरफ विकास करवाया उससे वहां का स्वरूप ही बदल गया। अयोध्या के कायाकल्प की योजना तो और भी व्यापक है। ये देखते हुए आगामी कुछ वर्षों के भीतर उप्र के इस अति पिछड़े अंचल में विकास का नया सूर्योदय दिखाई देगा। दुनिया भर से हिन्दू धर्मावलम्बी इस स्थल की यात्रा पर आयेंगे। जिस तेजी से उप्र सरकार ने अयोध्या के चतुर्मुखी विकास की शुरुवात की है उसे देखते हुए ये उम्मीद गलत न होगी कि वह आने वाले कुछ वर्षों में उत्तर भारत का सबसे बड़ा तीर्थस्थान बनेगी । लेकिन जिस तरह से राम के राज्याभिषेक के पहले मंथरा नामक एक स्त्री ने अपनी कुंठित मनोवृत्ति का परिचय दिया था , वैसी ही अनेक मंथराएं आज भी राम मन्दिर के निर्माण में अड़ंगा लगाने पर आमादा हैं। सदियों से समूचा देश जिस आकांक्षा को संजोये हुए था उसके पूरे होने की घड़ी तो राष्ट्रीय हर्षोल्लास का विषय होना चाहिए किन्तु कुछ लोग हैं जो दूध में नीबू निचोड़ने की अपनी बुरी आदत से बाज नहीं आ रहे। कोई महूर्त पर सवाल उठा रहा है तो किसी को इस बात पर ऐतराज है कि भगवान राम पर एक ही विचारधारा का कब्जा हो चला है। यद्यपि मंथरा के इन कलियुगी मानस पुत्रों के बीचे कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय आकांक्षाओं का पूरा होना लग रहा है। सोशल मीडिया पर उनके द्वारा प्रसारित सन्देश इसका प्रमाण हैं। मप्र के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों में से एक अपने आध्यात्मिक गुरुदेव के विचारों के अनुरूप ही मुहूर्त को अशुभ बताने में जुटे हैं वहीं कुछ माह पहले ही सत्ता से बाहर हुए दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ करवाकर मंदिर निर्माण पर हर्ष व्यक्त कर रहे हैं। कुछ समय पहले तक मुस्लिम मतों के डर से मंदिर का नाम लेने से परहेज करने वाले अब ये कहते घूम रहे हैं कि हम भी मन्दिर बनवाना चाहते थे और राम पर किसी का एकाधिकार नहीं है, वे तो सभी के हैं। वैसे ये शुभ संकेत है कि राम मन्दिर के आन्दोलन को राजनीति के नजरिये से देखने वालों को अब इस सच्चाई का एहसास हो गया है कि ये देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज की सदियों पुरानी आकांक्षा से जुड़ा मुद्दा था। जहां तक रास्वसंघ की विचारधारा से जुड़े लोगों द्वारा उस पर कब्जा कर लेने के बात है तो ये उसके विरोधियों की ऐतिहासिक भूल का नतीजा था। आजादी के बाद ढांचे में मूर्तियाँ रखने, बरसों बाद ताला खुलवाने अथवा शिलान्यास की बात हो, सभी कांग्रेस की केन्द्रीय और प्रांतीय सत्ता रहते हुए। ऐसे में जब मंदिर निर्माण का आन्दोलन शुरू हुआ तब कांग्रेस यदि उसका समर्थन करते हुए आगे आती तब भाजपा का पुनरुद्धार इतनी जल्दी न हुआ होता। लेकिन लालकृष्ण आडवाणी की सुप्रसिद्ध राम रथ यात्रा को लालू प्रसाद यादव द्वारा रोके जाने के बाद जब भाजपा ने लालू और उप्र की मुलायम सरकार से समर्थन वापिस लिया तब कांग्रेस ने उसे और लालू दोनों को अपने समर्थन की बैसाखी प्रदान करने की जो हिमालयन गलती की उसकी वजह से उसकी छवि हिन्दू विरोधी पार्टी की बन गयी। उधर मुसलमान इसलिये उससे कटते गये क्योंकि राम मन्दिर के आन्दोलन की जमीन कांग्रेस के शासन में ही तैयार हुई। पार्टी चाहती तो बाद में भी अपनी गलती सुधार सकती थी किन्तु संघ परिवार और भाजपा के अंधे विरोध के कारण वह जनमत को पढ़ने में नाकामयाब रही। अब जबकि राम मन्दिर एक वास्तविकता बनने के कगार पर आ गया तब कांग्रेस के कुछ नेता तो परिपक्वता का परिचय दे रहे हैं लेकिन कुछ अभी भी खिसियाहट में मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग का ढोल पीटते फिर रहे हैं। मन्दिर मुद्दा यदि संघ परिवार और भाजपा के साथ जुड़ा तो इसमें सबसे बड़ी गलती कांग्रेस की है। उसके नेता ये तो कहते हैं कि स्व. राजीव गांधी भी मंदिर बनवाने के इच्छुक थे लेकिन उनके न रहने के बाद भी कभी पार्टी नेतृत्व ने इसे लेकर कोई प्रयास नहीं किया। उल्टे उसके कतिपय बड़े नेता अदालत में मुस्लिम पक्ष की तरफदारी करते दिखे। कांग्रेस चाहती तो मुस्लिम पक्ष को समझाकर न्यायालय के बाहर दोनों में समझौता करवा सकती थी लेकिन उसमें साहस का अभाव था। इतिहास हर किसी को अपनी गलती सुधारने का अवसर देता है। कांग्रेस के पास तो तुरुप के सारे पत्ते थे लेकिन वह उनका सही उपयोग नहीं कर सकी और हिन्दुओं के साथ ही मुसलमानों का भरोसा भी गंवा बैठी। जानकार बताते हैं कि स्व.राजीव गांधी ने प्रयाग में संत समाज द्वारा जन्मभूमि को लेकर जो फैसले किये उनके दबाव में आकर शिलान्यास का फैसला किया जिसमें स्व. नारायण दत्त तिवारी की भी भूमिका थी। लेकिन बाद में कारसेवकों पर गोली चलवाने वाली मुलायम सरकार का समर्थन करने के कारण कांग्रेस हिन्दुओं की नजर में खलनायक बन गयी लेकिन उसे मुस्लिम मतों का घाटा भी हो गया जिनको मुलायम सिंह ले उड़े। आज जबकि वह ऐतिहासिक क्षण आ गया है जब भारत की पहिचान कहे जाने भगवान राम के जन्मस्थान पर भव्यतम मंदिर बनाने की शुरुवात हो रही है तब भी कांग्रेस के कतिपय विघ्नसंतोषी अपने बयानों से ऐसा आभास करवा रहे हैं जैसे राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनर्स्थापना का यह गौरवशाली अवसर उनके लिए दु:ख का विषय है। बावजूद इसके लगभग सभी पार्टियाँ ये समझ गई हैं कि राम और हिन्दुत्व से दूर रहकर राजनीति संभव नहीं रही। भाजपा विरोधी माने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने भी एक ताजा चर्चा में स्वीकार किया कि ये हिंदुत्व का युग है। उन्होंने ये भी स्वीकारा कि मंदिर निर्माण को लेकर कांग्रेस ने हाथ आये अवसरों को नासमझी के कारण गंवाया जिसकी वजह से भाजपा हर तरह की बाधा दौड़ में सफल होती हुई असम्भव को संभव बनाने का कारनामा दिखा सकी। बीते साल 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था और इस वर्ष राम मन्दिर का भूमि पूजन किया जा रहा है। इन दोनों मुद्दों पर एक लंबा संघर्ष चला और न जाने कितने साधारण और असाधारण लोगों ने अपने जीवन को खफा दिया। लेकिन कहना गलत नहीं होगा कि नियति ने नरेंद्र मोदी को ये इतिहास रचने का अवसर प्रदान किया। लेकिन जिस तरह अनुच्छेद 370 को हटाते समय स्व. डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का स्मरण स्वाभाविक रूप से हो आया ठीक वैसे ही राम मन्दिर के भूमिपूजन पर विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे स्व. अशोक सिंघल के भगीरथी प्रयासों की अनगिनत स्मृतियाँ सजीव हो रही हैं, जिन्होंने पूरी तरह बिखरे संत समाज को मंदिर आन्दोलन से जोड़कर उसे नैतिक शक्ति प्रदान की। निश्चित रूप से वह एक ऐतिहासिक पल होगा जब अयोध्या में श्री मोदी राम मन्दिर की आधारशिला रखेंगे। न सिर्फ भारत अपितु पूरे विश्व में ये भारत के उस पुनरुत्थान का उद्घोष होगा जिसकी भविष्यवाणी महर्षि अरविंद और स्वामी विवेकानंद बहुत पहले कर गए थे।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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