Monday 17 August 2020

सब कुछ आसान हो जाये तो नेताओं और अफसरों को पूछेगा कौन ? भ्रष्टाचार की जड़ों में मठा डाले बिना बात नहीं बनने वाली


स्वाधीनता दिवस की शाम एक टीवी चैनल पर बिना चीख पुकार वाली बहस को सुनने लगा | मुद्दा था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सुबह  लाल किले की प्राचीर से दिया गया भाषण | भाजपा के प्रतिनिधि जहां प्रधानमन्त्री के एक  - एक शब्द का गुणगान करने में लगे थे वहीं  विपक्षी दलों के नुमाइंदे  अपना धर्म निभाने में | बात नए उद्योगों के शुरू होने , आत्मनिर्भरता , रोजगार की स्थिति , सीधा विदेशी निवेश , मेक इन इण्डिया और ऐसे ही तमाम विषयों  के इर्द गिर्द सिमटी थी | इसी बीच एंकर ने एक वित्तीय सलाहकार  को बोलने का अवसर दिया | उनके बातों में राजनीति  कदापि नहीं थी और उन्होंने  प्रधानमंत्री के  इरादों को भी नेक बताया | कोरोना के बावजूद भी विदेशी मुद्रा के भंडार के साथ रिकार्ड तोड़ विदेशी निवेश पर भी संतोष व्यक्त किया लेकिन आत्मनिर्भर भारत और नए उद्योगों को प्रोत्साहन के बारे में उनका कहना था कि प्रधानमंत्री जो कहते हैं वह जमीन पर कितना उतरता है इसे परखने के लिए उन्हें केन्द्रीय सचिवालय के समस्त सचिवों को बुलाकर ये जानकारी लेनी चाहिए कि उनके पास  छह महीने से  ज्यादा समय से लंबित फाइलें कितनी हैं ?

उनके कहने का आशय ये था  कि किसी नये   उद्यमी को सरकारी  दफ्तर वाले इतना हलाकान कर डालते हैं कि नया काम शुरू  करने से पूर्व ही उसका उत्साह ठंडा हो जाता है | उन्होंने  ये कहकर सभी को चौंका दिया कि उनके एक मित्र ने तेल  मिल लगाने के लिए आवेदन किया जिसके लिए उसे दर्जनों विभागों से लायसेन्स अथवा अनापत्ति प्रमाणपत्र लेना था | कुछ दिनों तक चक्कर लगाने  के बाद उसके अरमानों का ही तेल निकल गया | बातचीत के दौरान ढेर सारे कानूनों  का जिक्र आने पर कहा  गया कि केंद्र सरकार ने तमाम अनुपयोगी और कारोबार में बाधक कानूनों को खत्म कर दिया लेकिन ये बात भी स्वीकार की गई कारोबार को सरल और सहज बनाने के लिए किये जाने वाले सुधारों की प्रक्रिया बहुत ही सुस्त है | यहाँ तक कि प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणाओं पर अमल होने में भी नौकरशाही अड़ंगे लगाती है | इसकी वजह ये है कि यदि सब कुछ आसान हो गया तो फिर अफसरों और नेताओं की पूछ - परख ही समाप्त हो जायेगी |

मैंने जब इसकी चर्चा वीडियो कान्फ्रेंसिंग पर अपने मित्रों से की तो तीन दशक से हांगकांग निवासी Sanjay Nagarkar ने बड़ी ही मार्के की बात कही | उन्होंने विभिन्न देशों के अपने अनुभव बताते हुए कहा कि उच्च स्तर पर तो भ्रष्टाचार विकसित देशों में भी होता है  लेकिन निचले स्तर का भ्रष्टाचार नहीं होने से जनता का  उससे वास्ता नहीं  पड़ता | जबकि हमारे देश में सरकारी दफ्तर का भृत्य भी भ्रष्टाचार में लिप्त देखा जा सकता है | अदालतों में न्यायाधीश की आसंदी के नीचे बैठा बाबू वकीलों से जिस दबंगी के साथ सौजन्य भेंट लेता है वह जगजाहिर है | इसी तरह सड़क  पर खोमचा लगाने वाला गरीब व्यक्ति कब पुलिस वाले की अवैध वसूली का शिकार हो जाये ये कहना कठिन है |

उनका कहना था कि निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार चूंकि आम जनता को परेशान करते हुए उसका शोषण करता है इसलिए हमारे देश की तरक्की अपेक्षित गति से नहीं हो पा रही | हमारे देश की  वर्तमान केंद्र सरकार ये दावा करते नहीं  थकती कि वह घोटाला मुक्त है | प्रधानमंत्री के बारे में भी आम भावना यही है कि वे ईमानदारी से सेवा कर रहे हैं | देश को प्रगति पथ पर ले जाने की उनकी प्रतिबद्धता पर भी ज्यादातर लोगों को भरोसा है किन्तु निचले स्तर के भ्रष्टाचार को रोक पाने में कोई सफलता  नहीं मिली | और यदि मिली भी तो ऊँट के मुंह में जीरे के बराबर |

यही वजह है कि प्रधानमंत्री के न खाउंगा के   दावे की सच्चाई को तो  लोग स्वीकार कर भी लेते हैं लेकिन  न खाने दूंगा वाली बात हवा हवाई होकर रह गई | कहते हैं केद्रीय सचिवालय का काफी शुद्धिकरण किया गया है लेकिन सरकार केवल दिल्ली से नहीं चलती | ग्राम पंचायत के स्तर तक आते - आते भ्रष्टाचार भी भिन्न - भिन्न रूप धारण करता जाता है |

ये बात सही है कि गरीबों के बैंक खाते में सीधे पैसा जमा करने की व्यवस्था ने भ्रष्टाचार को एक हद तक तो रोका है लेकिन प्रधानमन्त्री आवास योजना का पैसा प्राप्त करने के  लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सरपंच खुले आम कमीशन लेते हैं | शहरों में राशन कार्ड और गरीबी रेखा वाले कार्ड बनवाने के लिए जिला मुख्यालय में किस तरह  दलाली होती  है ये किसी से छिपा नहीं है |

निचले स्तर का भ्रष्टाचार रोकने में यदि कामयाबी मिल जाती तो प्रधानमंत्री के तमाम चुनावी वायदे और सरकार में आने के बाद की गयी  घोषणाओं के फलस्वरूप अच्छे दिन आ गये होते | आम जनता को जिस तरह के भ्रष्टाचार से रूबरू होना पड़ता है वही देश की छवि को खराब  करता है | राजनीतिक दल जिन धनकुबेरों , भ्रष्ट नौकरशाहों या अन्य स्रोतों से चंदा वसूलते हैं उससे आम जनता को किसी भी तरह का लेना   - देना नहीं है , लेकिन जब उससे छोटी - छोटी घूस माँगी जाती  तभी उसके मुंह से निकलता है कि सब चोर हैं |

स्वाधीनता दिवस पर प्रधानमंत्री के लगभग डेढ़ घंटे के ओजस्वी उद्बोधन के संदर्भ में शुरू ये चर्चा निश्चित रूप से समस्या  की जड़ को समझने जैसा है | सही बात है कि  निचले स्तर का  भ्रष्टाचार तब तक नहीं रुक सकता जब तक उसे रोकने वालों का दामन बेदाग न हो | खाकी वर्दी पहिनकर  डंडे के जोर पर अवैध कमाई  करने वाला पुलिस वाला जब लोकायुक्त में जा बैठता है तब उसको ईमानदारी का पुतला मान लेना अपने आप को धोखा देना नहीं तो और क्या है ? अदालतों  में छोटे - छोटे कामों के लिए बाबुओं के हाथों की खुजली मिटाने वाले वकील साहब जब मी लॉर्ड बन जाते है तब क्या न्याय के मंदिर में खुलेआम होने वाले पाप उन्हें नजर नहीं आते ? इसीलिए जब बात भ्रष्टाचार रोकने की  हो तब ये ध्यान रखना भी जरूरी है कि केवल गंगोत्री में जल की शुद्धता सुरक्षित रखने मात्र से गंगा को प्रदूषित होने से तब तक नहीं  बचाया जा सकता जब तक मैदानी इलाकों में उसमें समा जाने वाले नालों को नहीं रोका जाए  |

चाणक्य के जीवन का एक अति महत्वपूर्ण प्रसंग है  , जब वे किसी पौधे की जड़ों में मठा डालते देखे गए और उनसे उसका कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि किसी बुराई को नष्ट करना है तो उसकी जड़ों को दोबारा पनपने से रोकना जरूरी है | हमारे देश में भ्रष्टाचार रूपी वृक्ष की पत्तियां   और टहनियां तोड़ने का काम तो खूब होता है लेकिन जड़ों में मठा डालने की जुर्रत कोई नहीं करता |

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