Monday 31 August 2020

अर्थव्यवस्था खेल नहीं लेकिन खिलौने अर्थव्यवस्था का हिस्सा जरूर हैं



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत दिवस रेडियो पर मन की बात के दौरान भारतीय खिलौना उद्योग को विकसित करने का जो आह्वान किया वह दिखने में छोटा लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही आधारभूत उपाय है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हालाँकि इसका मजाक उड़ाया है लेकिन आम हिन्दुस्तानी घटिया किस्म के चीनी खिलौने खरीदते समय उस दौर को जरूर याद करता है जब अपने देश में भी खिलौनों का उत्पादन हुआ करता था। यद्यपि भारतीय बाजार में चीनी घुसपैठ के पहले भी जापानी खिलौने आया करते थे किन्तु वे अपेक्षाकृत महंगे होने से साधारण लोगों की पहुँच से बाहर थे। चीन ने जब सस्ते खिलौनों की भरमार भारतीय बाजारों में कर दी तब टिकाऊ न होने के बाद भी भारतीय उपभोक्ताओं ने तात्कालिक लाभ की दृष्टि से उन्हें खरीदना शुरू किया और देखते - देखते भारतीय खिलौना उद्योग भी टूटे हुए खिलौने की तरह होकर रह गया। प्रधानमंत्री ने कोरोना काल के दौरान आपदा को अवसर में बदलने का मंत्र देते हुए आत्मनिर्भर भारत का जो नारा दिया वह भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का बहुत ही महत्वाकांक्षी कदम है। रक्षा क्षेत्र के 100 से अधिक सामान भारत में बनाने का सरकार का फैसला दिशासूचक है। निजी क्षेत्र में भी आत्मनिर्भरता के लिए नये सिरे से प्रयास प्रारम्भ हो गये हैं। खास तौर पर दवा निर्माताओं ने कच्चे माल के भारत में उत्पादन का अभियान छेड़ दिया है। रही बात खिलौनों की तो इनको बनाने में कोई बहुत बड़ी तकनीक नहीं लगती। लेकिन इनके जरिये बच्चों के मानसिक विकास की नींव जरूर डाली जा सकती है। भारत में स्थानीय स्तर पर बनने वाले खिलौने भले ही आज के दौर में अप्रासंगिक मान लिए जाएँ लेकिन आधुनिक खिलौनों का उत्पादन करने लायक तकनीकी ज्ञान और अनुभव तो भारत के पास है ही। प्रधानमंत्री ने कम्प्यूटर  इंजीनियरों से भारतीय इतिहास और हालात को ध्यान रखते हुए कम्यूटर गेम्स बनाने की जो अपील की, उसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता के साथ ही वैश्वीकरण के कारण खतरे में आई भारतीयता को सुरक्षित रखते हुए मजबूती प्रदान करना है। ये बात पूरी तरह सही है कि विदेशों में विकसित हुए कम्प्यूटर गेम्स में उलझकर भारतीय बच्चे और किशोर मशीनी सोच से प्रभावित होते जा रहे हैं। उनमें उद्दंडता और उच्छ्श्रंखलता जिस तरह बढ़ रही है उसका व्यापक प्रभाव समाज में देखा जा सकता है। बाल अपराध बढ़ने के लिए भी मनोवैज्ञानिक विदेशी कम्प्यूटर गेम्स को काफ़ी हद तक जिम्मेदार मानते हैं । वॉल्ट डिज्नी द्वारा सृजित मिकी-माउस पूरी दुनिया के बच्चों के मन पर छाया हुआ है। उसके जवाब में जब भारतीय निर्माताओं द्वारा गणेश जी, हनुमान जी और ऐसे ही अन्य भारतीय पौराणिक चरित्रों पर टीवी एनीमेशन धारावाहिक बनाए गये तो उसका भारत के बच्चों पर बहुत ही सकारात्मक असर हुआ। मोगली नामक एनीमेशन को भी आशातीत सफलता मिली। ये कहने में कुछ भी गलत नहीं होगा कि नब्बे के दशक में टीवी पर रामायण और महाभारत के बतौर धारावाहिक प्रसारण ने भारतीय समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित किया और उसी के बाद पौराणिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित दर्जनों धारावाहिक और फि़ल्में बनीं और सफल भी रहीं। कोरोना के आते ही लॉक डाउन के दौरान दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत का प्रसारण दशकों बाद फिर से किया गया। और उन्हें मिली सफलता से ये साफ हो गया कि भारतीय समाज क्या चाहता है ? प्रधानमंत्री ने तो गूगल, फेसबुक और ट्विटर के स्वदेशी संस्करण के विकास की अपील भी युवा कम्प्यूटर इंजीनियरों से की जो भारत को सही मायनों में विश्वशक्ति बनाने के लिए मूलभूत आवश्यकता है। बात खिलौना उद्योग के पुनर्जीवित करने से शुरू हुई थी और श्री मोदी ने भारत में कुत्तों की उन नस्लों का जिक्र भी कर दिया जो किसी भी पैमाने पर महंगे विदेशी नस्ल के कुत्तों से कम नहीं होते। यूँ तो इस बात का भी मजाक उड़ाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री कुत्तों की नस्ल का जिक्र राष्ट्र के नाम संबोधन में करें लेकिन उनकी समूची चर्चा का आधार चूँकि स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत था इसलिए उन्होंने ऐसा कहा। मन की बात के ताजा संस्करण में खिलौनों से बात शुरू करना निश्चित रूप से जनसाधारण के मन को छूने का प्रयास था। अर्थव्यवस्था बेशक खेल नहीं है लेकिन ये बात भी सच है कि 135 करोड़ की आबादी वाले मुल्क में खिलौने भी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ता प्रदान कर सकते हैं। चीन इसका सबसे सटीक उदाहराण है। जिसे खेल - खेल में चुनौती देने का श्री मोदी का ये अंदाज वाकई दूरदृष्टता है। लेकिन इसके साथ ही सरकार को खिलौना और कम्प्यूटर गेम्स बनाने वालों को विशेष छूट और प्रोत्साहन देना पड़ेगा जिससे वे अतिरिक्त उत्साह और सक्रियता दिखा सकें।

-रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment