Monday 3 August 2020

टैक्स और ब्याज दरें न घटीं तो आपदा बजाय अवसर के अवसाद बन जाएगी मध्यमवर्गीय नौकरपेशा और कारोबारी राहत से वंचित


 


 

भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के दावे होने लगे हैं | जीएसटी का संग्रहण यद्यपि बीते साल की तुलना में 14 फीसदी कम जरूर है लेकिन अभी भी उद्योग - व्यापार में असली रंगत नहीं आई है | इस वजह से राजस्व वसूली में कमी आना स्वाभाविक ही है | गत दिवस केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ये दावा किया कि देश में मोबाईल फोन के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि होने जा रही हैं | आगामी पाँच  सालों में तकरीबन 12 लाख करोड़ के मोबाइल और उनके पुर्जे बनने लगेंगे | इनसे प्रत्यक्ष  और परोक्ष रूप से 12  लाख नये  रोजगार सृजित होंगे | केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में शुरू किये गये प्रोडक्शन लिंक इंसेटिव प्रोग्राम के अंतर्गत दुनिया की प्रमुख 22 मोबाइल निर्माता कंपनियों ने भारत  में रूचि दिखाई है |  हालांकि अभी भी  भारत मोबाइल उत्पादन में अग्रणी देशों की  कतार में है लेकिन चीनी कम्पनियां अपना दबदबा बनाये हुये थीं जो अपना कारोबार समटने के  संकेत दे रही हैं | एपल और सैमसंग जैसे बड़े ब्रांड भारत में जब अपना उत्पादन बढ़ाएंगे तब निश्चित रूप से वैश्विक बाजारों में मेड इन इंडिया की धाक बढ़ेगी | उत्पादन का बड़ा हिस्सा निर्यात होने की उम्मीद और भी अच्छा संकेत है | पहले आर्थिक मंदी और उसके बाद ही कोरोना संकट आ जाने से अर्थव्यवस्था की कमर टूट गयी | लेकिन बीते दो महीनों में जिस तेजी से वापिसी हुई वह निश्चित तौर पर उत्साह जगाने वाली है | हालांकि ऑटोमोबाइल के अलावा फार्मा सेक्टर भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है लेकिन अभी तक उद्योग व्यापार पूरी तरह से रंगत पर नहीं आया तो उसका कारण सरकार की वित्तीय नीतियों में कुछ कमियाँ  है | कोरोना संकट के इस दौर में देश में  सैनिटाईजर का उत्पादन आश्चर्यजनक तौर पर बढ़ा | लेकिन उस पर 18 फीसदी जीएसटी लगाना किसी भी दृष्टि  से उचित नहीं कहा जा सकता | भारत इस समय जिस आर्थिक दौर से गुजर रहा है उसमें उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के हितों का संरक्षण करने की जरूरत है | ये बात बिलकुल सही है कि संकट के इस दौर में सरकार को भी राजस्व की बेहद जरूरत है किन्तु उसे अपने कर ढाँचे को व्यावहारिक  बनाना चाहिए | 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज को लेकर तरह - तरह के मजाक चले | फिर भी सरकार की सोच को दूरगामी मानकर उसे नजरअंदाज कर दिया गया | लेकिन अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाये रखने वाले मध्यमवर्गीय नौकरपेशा वर्ग के लिये अब तक कुछ नहीं किया गया | बैंक के कर्जे  चुकाने के लिए जो मोह्लत मिली वह निश्चित रूप से एक बड़ी राहत है लेकिन उस अवधि में ब्याज का पहिया तो बिना रुके अपनी गति से घूम ही रहा है | और जिस दिन वह मोहलत खत्म होगी उसी दिन से बैंक वाले वसूली का दबाव बनाने लगेंगे | आपदा को  अवसर में बदलने का जो आह्वान प्रधानमन्त्री द्वारा किया गया उसके औचित्य और आवश्यकता को हर कोई स्वीकार कर रहा है | आत्मनिर्भर  भारत के संकल्प पर भी जिस तरह  की उत्साहजनक प्रतिक्रिया उपभोक्ता और विक्रेता दोनों की तरफ से आई वह निश्चित रूप से शुभ संकेत है और ये दर्शाती है कि संकट के  इस दौर में भी समाज का हर वर्ग सरकार और राष्ट्रीय नेतृत्व की आवाज में अपनी आवाज मिलाने के लिए प्रतिबद्ध है | रविशंकर प्रसाद ने गत दिवस देश में उत्पादन बढ़ाने और औद्योगिक क्षेत्र में भारी निवेश आने की जो बात कही उसकी सत्यता पर संदेह करना किसी भी तरह से अनुचित होगा लेकिन विचार  करने वाली बात ये भी है कि जब मजदूर , नौकरपेशा , व्यापारी , उद्योगपति सभी की  कमाई घटी तब सरकार अपनी  कमाई में से एक पाई तक छोड़ने राजी नहीं है | बैंकों ने ब्याज नहीं घटाया , बिजली विभाग जबरिया वसूली करने  पर आमादा है , आयकर ,जीएसटी और नगरीय प्रशासन से जुडी संस्थाएं भी अपना कर एकत्र करने में जुटे हैं | लेकिन जब मध्यमवर्ग की नौकरी चली गई या वेतन कम हो गया तथा व्यापारी और उद्योगपति की आय में जबरदस्त कमी आ गई तब उस पर दबाव बनाकर करों की उगाही कम से कम फिलहाल तो टालना चाहिए | यदि सरकार आपदा को वाकई अवसर में बदलना चाह रही है तो उसे अपने कर ढांचे को नये सिरे से ऐसा बनाना होगा जिससे कर अपवंचन रुक सके तथा सरकार के पास ज्यादा राजस्व आये | जीएसटी की दरें कम होने की उम्मीद   उसे नियंत्रित करने वाली कौंसिल  की हर बैठक के  पहले की जाती है लेकिन राहत के नाम पर ऊँट के मुंह में जीरा ही मिलता है | रिजर्व बैंक द्वारा समय - समय पर घटाई जाने वाली ब्याज दर भी इतनी मामूली होती है कि उसका ज्यादा लाभ नहीं हो पता | बेहतर हो सरकार अब ऐसा कोई पैकेज लेकर आये जिससे नौकरपेशा मध्यमवर्ग और छोटे तथा मध्यम व्यापारी और उद्योगपतियों को सांस लेने का अवसर मिले | एक हाथ से दी गयी राहत पेट्रोल - डीजल की जरिये  वसूल करने की नीति आपदा को  अवसर की बजाय अवसाद  में बदलने का कारण बन जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये | 


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