Monday 17 August 2020

विस्तारवाद और आतंकवाद के विरुद्ध भारत का कड़ा रुख असरकारक



प्रधानमंत्री द्वारा स्वाधीनता दिवस को सुबह दिल्ली स्थित लालकिले की प्राचीर से जो भाषण दिया जाता है वह केवल रस्मअदायगी न होकर देश और दुनिया के लिए सरकार का एक नीति वक्तव्य होता है। इस वर्ष भी नरेंद्र मोदी ने लगभग डेढ़ घंटे का लंबा भाषण दिया। यद्यपि उसमें मुख्य रूप से आत्मनिर्भर भारत पर ज्यादा जोर दिया गया लेकिन बिना नाम लिये ही पाकिस्तान और चीन को भी ये बता दिया कि नियंत्रण रेखा (एलओसी) से लेकर वास्तविक नियन्त्रण रेखा (एलएसी) पर होने वाली किसी भी गड़बड़ी का हमारी सेना करारा जवाब देगी। प्रधानमंत्री ने साफ-साफ कहा कि आतंकवाद और विस्तारवाद के विरुद्ध भारत कमर कसकर लड़ने तैयार है। हालाँकि उनके इस भाषण पर विपक्ष ने फिर सवाल पूछा कि श्री मोदी ने चीन का नाम क्यों नहीं लिया? लेकिन सैन्य और कूटनीतिक मामलों के जानकारों के अनुसार प्रधानमंत्री ने बहुत ही समझदारी का पारिचय दिया और बिना कोई विवादास्पद बात कहे पाकिस्तान और चीन दोनों को माकूल सन्देश प्रेषित कर दिया। हालाँकि लद्दाख के सीमावर्ती इलाकों में अभी भी तनाव की स्थिति बनी हुई है लेकिन भारत ने भी अपना सैन्य जमावड़ा करते हुए ये संकेत दे दिया है कि चीन जैसा करेगा वैसा ही  जवाब उसे दिया जाएगा। स्वाधीनता दिवस के पहले चीनी विदेश मंत्री ने भारत के साथ सभी विवाद वार्ता द्वारा सुलझाये जाने की बात कहकर सीमा पर तनाव घटाने की इच्छा व्यक्त की। हालाँकि चीन के ऐसे किसी भी बयान पर भरोसा करना खतरे से खाली नहीं होता। लद्दाख में अपनी सेनाएं पीछे हटाने का वायदा करने के बाद पलट जाने का उदहारण ताजा-ताजा है। ऐसे में ये माना जा सकता है कि भारत द्वारा सीमा पर जवाबी मोर्चेबंदी के बाद आर्थिक क्षेत्र में चीन पर जो शिकंजा कसा गया उससे वह दबाव महसूस कर रहा है। इसका अप्रत्यक्ष संकेत नेपाल के रुख में अचानक आये परिवर्तन से भी मिल रहा है। नेपाली प्रधानमंत्री केपी ओली द्वारा लम्बे अंतराल के बाद श्री मोदी से फोन पर बात करना और आज काठमांडू में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक बातचीत की शुरुवात इस बात का प्रमाण है कि चीन को ये एहसास हो चला है कि भारत से टकराना उसके लिए नुकसानदेह हो रहा है। ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि नेपाल द्वारा हाल के महीनों में जो भारत विरोधी रुख दिखाया गया उसके पीछे चीन की ही शह थी। भारतीय भूभाग को अपने नक़्शे में शामिल करने के अलावा सीमवर्ती क्षेत्रों में सैन्य तैनाती जैसे कदम उठाने का दुस्साहस नेपाल कभी नहीं कर पाता यदि उसकी पीठ पर चीन का हाथ न रहा होता। प्रधानमंत्री ओली के भारत विरोधी रवैये की उनके देश में ही भारी आलोचना हुई। यहाँ तक कि उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड तक उन्हें हटाने पर आमादा हैं। लेकिन चीन उनके साथ खड़ा हुआ है। इसलिए ऐसा मान लेना गलत न होगा कि नेपाल के रुख में आई नरमी की वजह चीन से मिले निर्देश ही हैं। गलवान घाटी की घटना के बाद भारत द्वारा उस क्षेत्र में जबरदस्त सैन्य तैयारियां किये जाने पर चीन ने काफी ऐतराज जताया लेकिन जब उसे लगा कि भारत युद्ध की धमकी से डरने की बजाय दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है तब वह बातचीत के जरिये रिश्ते सुधारने जैसी बातें करने लगा और नेपाल को भी वैसा ही करने की सलाह दे डाली। दरअसल इस सबके पीछे भारत द्वारा आर्थिक मोर्चे पर चीन की घेराबंदी किया जाना बड़ा कारण बन गया। श्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का जो नारा दिया उसका सबसे ज्यादा असर चीन पर ही पड़ा। भारत को किया जाने वाला उसका निर्यात लगातार कम होता जा रहा है। इसके अलावा सरकारी क्षेत्र में काम करने से चीनी कम्पनियों को रोक दिया गया है। भारत के व्यापारी भी चीनी माल के आर्डर रद्द कर रहे हैं। राखी पर इसका पहला प्रमाण मिला। आगामी गणेश पूजा में भी चीन से आयातित होने वाली मूर्तियों के आयात और व्यापार के प्रति कोई उत्साह नहीं है। यही हाल रहा तो दीपावली के अवसर पर चीनी सामान के उपयोग में भारी कमी आने की पूरी-पूरी संभावना है जो चीन के लिये बड़ा धक्का होगा। इस तरह प्रधानमंत्री द्वारा लालकिले से भले ही चीन और पाकिस्तान का नाम न लिया गया हो लेकिन विस्तारवाद की खुलकर आलोचना और आतंकवाद के विरूद्ध निर्णायक लड़ाई का संकल्प व्यक्त किये जाने का असर होना अवश्यंभावी है। संरासंघ में पाकिस्तान की तरफदारी किये जाने के मामले में चीन जिस तरह अकेला पड़ा वह भी शुभ संकेत है। भारत के आत्मनिर्भरता रूपी दांव ने चीन के लिए जबरदस्त परेशानी पैदा कर दी है क्योंकि देखा सीखी दुनिया के अनेक देशों ने चीन की आर्थिक मोर्चेबंदी कर दी। स्वाधीनता दिवस के भाषण में श्री मोदी द्वारा जिस तरह का कूटनीतिक संदेश दिया गया उसका असर आने वाले दिनों में जरूर दिखाई देगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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