Thursday 6 August 2020

सबके राम सब में राम : आम सहमति शुभ संकेत



आखिऱकार अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण हेतु भूमि पूजन सम्पन्न हो ही गया। प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और रास्वसंघ के प्रमुख डा. मोहन भागवत ने इस अवसर पर जो उद्बोधन दिए वे बहुत ही जिम्मेदारी से भरे हुए थे। प्रधानमंत्री ने सबके राम और सब में राम का उल्लेख करते हुए उन सभी की भावनाओं को सम्मान दे दिया जो कुछ दिनों से मंदिर और राम के प्रति बढ़ चढ़कर अपनी श्रद्धा प्रगट करने लगे हैं। मंदिर निर्माण में अड़ंगा लगाने और उसे राजनीति प्रेरित बताने वाले जिस तरह से रामधुन गाते हुए गर्व से खुद को हिन्दू कहने लगे वह राष्ट्रीय राजनीति में आ रहे बड़े बदलाव का संकेत है। कुछ विघ्नसंतोषी अभी भी हैं लेकिन कुल मिलाकर राम मंदिर को लेकर राजनीतिक बिरादरी की राय काफी हद तक वास्तविकता को स्वीकार करने की बन गयी है। हालांकि श्रेय बटोरने की होड़ भी चल पड़ी है। इसका उद्देश्य भाजपा के हाथ से मंदिर निर्माण का राजनीतिक लाभ छीनना है। बसपा नेत्री मायावती ने गत दिवस इसीलिये मंदिर निर्माण का श्रेय सर्वोच्च न्यायालय को दिया। भूमिपूजन समारोह के अवसर पर उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा प्रधानमंत्री ने भी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए ये कहने का प्रयास किया कि मंदिर निर्माण पूरी तरह से विधि सम्मत है। निश्चित रूप से ये आदर्श स्थिति है। यदि केंद्र सरकार अपनी तरफ  से कानून बनाकर संसद में बहुमत के बल पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़  करती तब उस पर राजनीतिक विवादों की छाया बनी रहती। लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद मंदिर निर्माण पर हाय तौबा मचाने वाले भी खुद को असली राम भक्त साबित करने आगे-आगे हो रहे हैं। प्रधानमंत्री द्वारा सबके राम और सब में राम कहकर मंदिर निर्माण को व्यापक राष्ट्रीय रूप देने का जो प्रयास किया वह निश्चित तौर पर समय की मांग है क्योंकि अब मंदिर मुद्दा किसी दल या नेता विशेष का न होकर पूरे देश का है। गत रात्रि अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर के सुप्रसिद्ध टाइम्स स्क्वेयर में जिस तरह से राम मंदिर के मॉडल का प्रदर्शन हुआ उससे इसके वैश्विक महत्व का प्रमाण मिला। राम मंदिर किसके प्रयासों से बन रहा है ये अब उतना महत्वपूर्ण नहीं रहा जितना ये कि अब अधिकतर राजनीतिक दलों ने इसे अपना समर्थन दे दिया है। कुछ साधु-संत और दिग्विजय सिंह जैसे नेता भले ही भूमि पूजन का विरोध करते रहे किन्तु उनका विरोध मुहूर्त को लेकर था न कि मदिर निर्माण से। प्रियंका वाड्रा और राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर राम का गुणगान किया जबकि कमलनाथ ने मंदिर निर्माण को राष्ट्रीय आकाक्षाओं का प्रतीक बताते हुए 11  चांदी की ईंटें मंदिर निर्माण हेतु भेजने की घोषणा की। कुछ समय पहले तक राम मंदिर को लेकर आलोचना करने वाले अनेक नेता गत दिवस खुद को राम का उपासक बताने आगे-आगे दिखाई दिए। कुल मिलाकर देश राममय हो गया जो हर्ष का विषय है। लेकिन इस अवसर पर हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी जहर बुझे तीर छोड़ने से बाज नहीं आये। उन्होंने सोशल मीडिया के अलावा पत्रकारों से चर्चा के दौरान कहा कि बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी। उनसे भी दो कदम आगे बढ़कर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तो सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ही न्याय मानने से इंकार कर दिया। ओवैसी ने कमलनाथ और प्रियंका के राम प्रेम पर भी तीखे कटाक्ष किये। इस बारे में उल्लेखनीय है कि मुस्लिम समाज ने अयोध्या विवाद में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मानने की रजामंदी पहले से दे रखी थी। यद्यपि फैसले से उनकी निराशा अस्वाभाविक नहीं है लेकिन ओवैसी और मुस्लिम समाज के विभिन्न संगठनों को ये नहीं भूलना चाहिए कि पुरातत्व विभाग द्वारा करवाई गई खुदाई के बाद पेश की गयी जिस रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय ने विवादित भूमि राम मंदिर के लिए दिए जाने का निर्णय दिया उस रिपोर्ट को तैयार करने वाले पुरातत्व विभाग के अधिकारी के.के. मोहम्मद भी मुस्लिम हैं। बेहतर होगा यदि कांग्रेस सहित बाकी दलों के नेतागण भी ओवैसी की आलोचना करने के साथ ही मुस्लिम समाज के प्रमुख संगठनों को ये समझाएं कि वे भले ही मंदिर निर्माण में सहायक न बनें किन्तु अपनी खीज निकालने के लिए कितना भी वक्त लग जाए लेकिन बदला जरूर लिया जायेगा जैसी बातों से बचें। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अयोध्या के निकट ही मुस्लिम समाज को भी मस्जिद बनाने हेतु भूमि दी गयी है। बेहतर होगा उस जगह पर भव्य मस्जिद बनाने की तैयारी मुस्लिम समाज करे। लेकिन ऐसा न करते हुए यदि वे बाबरी मस्जिद का रोना ही रोते रहे तो उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा। मुस्लिम नेताओं को ये समझ लेना चाहिये कि देश में तुष्टीकरण के दिन जा चुके हैं। कांग्रेस ही नहीं सपा जैसी पार्टियाँ भी समझ चुकी हैं कि मुस्लिम मतों के पीछे भागने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। ऐसे में पूरी तरह किनारे लग जाने के पहले मुस्लिम समुदाय के समझदार लोगों को तो कम से कम मुख्यधारा में आने की कोशिश कर लेनी चाहिए वरना मुसलमान राजनीतिक दृष्टि से और भी कमजोर हो जायेंगे।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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