Wednesday 26 August 2020

चोटी से उतरते समय असावधानी जानलेवा हो सकती है




कोरोना को लेकर ये धारणा बनने लगी है कि भारत में उसका चरमोत्कर्ष आने वाला है और उसके बाद वह ढलान पर आ जाएगा। कोई 15 सितम्बर की तारीख बता रहा है तो कोई कुछ और। भविष्यवक्ता भी अपनी गणना के मुताबिक़ दावे कर रहे हैं। दूसरी तरफ  चिकित्सा विज्ञान से जुड़े लोगों का पूरा हिसाब-किताब कोरोना की वैक्सीन पर टिका है, जिसे लेकर जितने मुंह उतनी बातें सुनाई दे रही हैं। मोटे अनुमान के अनुसार दुनिया भर में जितनी भी वैक्सीन बन रही हैं उनका अंतिम परीक्षण होते-होते अभी एक-डेढ़ महीना और लग जाएगा और उसके उपरांत ही व्यावसायिक उत्पादन हो सकेगा। भारत में विकसित की जा रही वैक्सीन के भी दिसम्बर तक बाजार में आने की उम्मीद है। इधर कुछ दिनों से भारत में कोरोना के नए मरीजों और अस्पतालों से ठीक होकर निकलने वाले मरीजों की संख्या में अंतर घट रहा है। प्रतिदिन नए संक्रमण भी 70 हजार के आसपास ही ठहरे हुए हैं। हालाँकि इसकी एक वजह जाँच की संख्या में आया ठहराव भी हो सकता है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार नए संक्रमण और मृत्यु का प्रतिशत भी पूर्वापेक्षा नीचे आया है, जो अच्छा संकेत है। ये भी तब जबकि देश के बड़े हिस्से में लॉक डाउन हटने के बाद से जनजीवन सामान्य होता दिख रहा है। दिल्ली सहित अनेक राज्यों में कोरोना का प्रकोप नियंत्रण में है। यद्यपि महाराष्ट्र की हालत बेहद खराब है। ये सब देखते हुए कहा जा सकता है कि देर से ही सही लेकिन भारत ने कोरोना नामक इस रहस्यमय महामारी से निपटने का हुनर हासिल कर लिया और उसकी रोकथाम के लिए वैक्सीन विकसित करने में भी सफलता हासिल करने जा रहा है। 135 करोड़ से भी ज्यादा की आबादी और उस पर भी घनी बसाहट के बावजूद कोरोना संक्रमण को रोकने में काफी हद तक कामयाबी वाकई बड़ी उपलब्धि कही जायेगी। अन्यथा ये डर था कि भारत में महामारी शब्द पूरी तरह से सही साबित होकर रहेगा। अब तक की स्थिति को देखते हुए ये माना जा सकता है कोरोना को लेकर एम्स दिल्ली के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने जो अनुमान लगाया था वह सच्चाई के काफी करीब प्रतीत हो रहा है। उनके मुताबिक अगस्त के अंत और सितम्बर की शुरुवात से कोरोना उतार पर आना शुरू हो जाएगा। उस लिहाज से बीते कुछ दिनों के आंकड़े उनके अनुमानों को सही ठहराने का संकेत दे रहे हैं। लेकिन इस बारे में ध्यान देने योग्य बात ये है कि चोटी से नीचे उतरते समय जरा सी असावधानी होने पर पैर फिसलने का खतरा रहता है जो जानलेवा भी साबित हो सकता है। कोरोना के चरम बिंदु को छू लेने के बाद उसके ढलान पर आने की खुशी में थोड़ी सी असावधानी घातक हो सकती है। चिकित्सा विशेषज्ञ भी ये खुलकर कह रहे हैं कि भले ही कोरोना पर हाल-फिलहाल नियंत्रण कर लिया जाए लेकिन उसके समूल नष्ट होने में कम से कम दो साल लगेंगे। और इस दौरान जरा सी लापरवाही उसकी वापिसी का कारण बन सकती है। भारत में कुछ राज्य ऐसे हैं जिन्होंने प्रारम्भिक चरण के बाद कोरोना पर पूरी तरह से काबू करते हुए खुद को विजेता मान लिया था लेकिन उनका विजयोल्लास क्षणिक साबित हुआ और कोरोना दोगनी ताकत से लौट आया। दुनिया के अनेक देशों में भी ऐसा देखने मिला है। इसलिए भले ही ताजा आंकड़े आश्वस्त कर रहे हों तथा वैक्सीन आने की खबरें कोरोना के डर को कम कर रही हों लेकिन जैसा पूर्व में कहा गया चोटी पर चढ़ने के बाद जीत की खुशी में लौटने के दौरान जरा सी असावधानी भारी पड़ जाती है। दुनिया के जाने-माने पर्वतारोहियों के अनुभव इस बारे में सचेत करने वाले हैं। भारत के सन्दर्भ में कोरोना के बारे में जरूरी सावधानियां बरतने की सख्त जरूरत है। जिस तरह से लोगों में बेफिक्री दिखाई देने लगी है वह खतरे का संकेत है। सोशल मीडिया पर जैसे चुटकुले देखने मिल रहे हैं वे समाज की मानसिक दृढ़ता का संकेत तो हैं लेकिन उससे कोरोना से बचाव के तौर-तरीकों की अवहेलना का माहौल भी पैदा हो रहा है। सार्वजनिक स्थलों पर बिना मास्क के घूमने वाले बड़ी संख्या में नजर आने से ये लगने लगा है कि कोरोना को खत्म मान लिया गया है जबकि मौजूदा हालात में ही सबसे ज्यादा सावधानी की जरूरत है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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