Thursday 10 September 2020

आखिर ज़िन्दगी भी तो हमारी है : सावधानी हटी दुर्घटना घटी



मध्यप्रदेश हिन्दी एक्सप्रेस : सम्पादकीय
- रवीन्द्र वाजपेयी

आखिर ज़िन्दगी भी तो हमारी है : सावधानी हटी दुर्घटना घटी

 जिस तरह बच्चे के बड़े हो जाने के बाद अभिभावक उसका हाथ पकड़ना छोड़ देते हैं ठीक वही  स्थिति भारत में कोरोना को लेकर दिखाई दे रही है | यहाँ अभिभावक के रूप में सरकार और बच्चे के तौर पर जनता को रखा जा सकता है | बीते कुछ समय से ये महसूस होने लगा है कि केंद्र और राज्य दोनों ही  सरकारों ने धीरे - धीरे कोरोना से निपटने के लिए जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया है | इसका संकेत लॉक डाउन में क्रमशः दी जा रही ढील है | दिल्ली जहां कोरोना संक्रमण खत्म होने के दावों के साथ मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल अस्पतालों के खाली बिस्तरों का हवाला देते हुए दूसरे राज्यों के मरीजों का  भी दिल्ली में इलाज करने की  दरियादिली दिखाने लगे थे वहां भी कोरोना ने दोबारा अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया | देश में जांच की संख्या बढाए  जाने के साथ ही नए संक्रमितों का भी  सैलाब जैसा आने लगा है और  प्रतिदिन का आंकड़ा एक लाख को छूने के करीब है | अनेक राज्यों ने जनता से कहना शुरू कर दिया है कि जाँच केन्द्रों में जाकर अपनी जाँच खुद करवा लें | इस प्रकार घर - घर जाकर कोरोना संक्रमण की खोज बंद करने की तरफ कदम बढ़ाये जा रहे हैं | हालाँकि बिना चिकित्सक का पर्चा लिए निःशुल्क जांच कराने की  सुविधा  अच्छा निर्णय है लेकिन समाज में अशिक्षा के कारण बड़ा वर्ग ऐसा है जो बीमारी के लक्षण  दिखने पर भी जाँच और इलाज के प्रति लापरवाह बना रहता है | यहाँ  तक कि  पढ़े - लिखे लोगों के बीच भी ऐसे व्यक्ति बड़ी संख्या में हैं जो बीमारी के समयोचित इलाज के प्रति उपेक्षाभाव प्रदर्शित करने में बहादुरी समझते हैं | लॉक डाउन  लगाने और बीच - बीच में उसकी अवधि बढ़ाने के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए कोरोना से बचाव हेतु हाथ जोड़कर उसके तरीके बताये थे | सरकारी स्तर पर भी लोगों को खूब जागरूक किया जाता रहा | लेकिन लॉक डाउन को शिथिल किये जाने के साथ ही  सरकार ने ये मान लिया कि लोग बहुत ज्यादा समझदार और जागरूक हो गये हैं तथा अब उन्हें उनके हाल पर छोड़ा जा सकता है | चूंकि कोरोना एक वैश्विक संक्रमण है इसलिए उससे बचने के तौर - तरीके  तथा अन्य शिष्टाचार भी अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार लागू किये जा रहे हैं | लॉक डाउन खत्म होने के बाद हमारी सरकारों ने ये मान लिया है कि देश  की जनता कोरोना से बचाव के सभी तौर - तरीके अच्छी तरह से सीख - समझ गई है | इसीलिये  आये दिन  तमाम बंदिशें हटाई  जा रही हैं |  | और ये तब हो रहा है  जब कोरोना संक्रमण का फैलाव सुरसा के मुंह की तरह फ़ैल  रहा है | इसलिए इस बात पर इतराना निहायत बेवकूफी होगी कि भारत में कोरोना से मृत्यु दर बहुत कम है और ठीक होने वालों का अनुपात भी बहुत संतोषजनक है | चिंता की बात ये है कि देश के सभी शासकीय और निजी अस्पतालों में  बिस्तरों की उपलब्धता रोजाना कम होती जा रही है | अभी तक हर किसी को इस बात की उम्मीद थी कि सितम्बर तक वैक्सीन ईजाद हो जायेगी और अक्टूबर  से उसे लगाने का अभियान भी शुरू हो सकेगा | लेकिन अधिकृत रूप से जो ताजा जानकारी आ रही है उसके अनुसार भारत  और विदेश दोनों जगह बन रही वैक्सीनों के अंतिम परीक्षण अभी चल रहे हैं | भले ही रूस और चीन ये दावा कर रहे हैं कि उनकी  वैक्सीन जनता को लगाई  जाने लगी है किन्तु इस बारे में अभी तक कुछ भी पक्के तौर पर नहीं कहा  जा सकता कि भारत में आम जनता तक वैक्सीन कब तक उपलब्ध हो सकेगी | इसे देखते हुए ये जरूरी हो गया है कि अब लोग खुद ही सावधान तो रहें ही साथ ही साथ अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मास्क लगाने और हाथ धोने की जरूरत महसूस करवाएं | वैसे ये अच्छी बात है कि भारत में कोरोना को लेकर बहुत ज्यादा भय नहीं है | फिर भी उसे लेकर लापरवाही भी उचित नहीं कही  जा सकती | देखने में आया है  कि किसी भी समस्या से लड़ते समय जब हमें लगने लगता है कि हम जीत के करीब हैं तभी हम लापरवाह हो जाते हैं और बाजी हाथ से निकल जाती है | कोरोना को लेकर भी ऐसा ही हो रहा है | अनेक ऐसे लोग जो प्रारंभ से पूरी तरह सावधान रहे , वे लॉक  डाउन हटने के बाद निश्चिन्त हो उठे और कोरोना की  चपेट में आ गये | इसलिए अब जबकि सरकार ने जिम्मेदारी हमारे कन्धों पर डाल दी है , इसलिए बेहतर होगा कि हम सभी कोरोना से खुद को भी बचाएं और दूसरों को भी इस हेतु प्रेरित करें | आखिर ज़िन्दगी भी तो हमारी है | वाहन चालकों को आगाह करती ये चेतावनी इस संदर्भ में भी बेहद प्रासंगिक है कि सावधानी हटी , दुर्घटना घटी ।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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