Friday 4 September 2020

मोबाइल की रिंगटोन से नहीं रुकने वाला कोरोना का फैलाव




देश में कोरोना संक्रमण को लेकर अजीबोगरीब स्थिति बनी हुई है। अधिकृत आंकड़ों के अनुसार नए संक्रमण रोजाना तेजी से बढ़ते जा रहे हैं वहीं ठीक होने वालों का प्रतिशत भी तेजी से बढ़कर 77 के पार जा पहुंचा है। जबकि मरने वालों का आंकड़ा घटते हुए 1.77 फीसदी हो गया है। स्वस्थ होने वाले संक्रमितों की आशाजनक संख्या और कम मृत्यु दर आश्वस्त तो कर रही है लेकिन जिस गति से नए मामले आते जा रहे हैं उससे ये डर भी लग रहा है कि इस पर नियन्त्रण न हुआ तो कोरोना वाकई महामारी में बदल जाएगा।  अभी तक कोरोना के टीके (वैक्सीन) को लेकर नये-नये अनुमान लग रहे हैं लेकिन ईमानदारी की बात ये है कि दिसम्बर के पूर्व उसकी उम्मीद करना खुद को धोखे में रखना है। और फिर हमारे देश में आबादी का आकार बहुत बड़ा होने से टीका उपलब्ध होने के बावजूद उसे लगाने में लम्बा वक्त लग जायेगा। तब तक कोरोना को रोकना हर किसी का फर्ज है। अर्थव्यवस्था को प्राणवायु देने के लिए सरकार ने लॉक डाउन की शक्ल में लगाये तमाम प्रतिबन्ध तकरीबन शिथिल कर दिए हैं। उद्योग-व्यवसाय में भी रफ़्तार देखी जा सकती है। बाजारों में जनता की भीड़ भी जनजीवन सामान्य होने का संकेत है। परिवहन भी शुरू हो गया है। रेलगाड़ियों का परिचालन क्रमश: बढ़ाया जा रहा है तथा हवाई सेवाएं भी काफी हद तक बहाल की जा चुकी हैं। निर्माण गतिविधियाँ भी जोर पकड़ने लगी हैं। अच्छे मानसून ने कृषि क्षेत्र में उत्साह भर दिया है । अनुमान के अनुसार रिकॉर्ड खरीफ  फसल की उम्मीद की जाने लगी है। इसका अनुकूल असर समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। लेकिन कोरोना के प्रकोप को नहीं रोका जा सका तब समूचा आशावाद धरा रह जाएगा। प्रधानमंत्री सहित बाकी जिम्मेदार लोग भी इस बात पर आये दिन संतोष जताया करते हैं कि हमारे देश में ठीक होने वालों का आंकड़ा जहां निरंतर बढ़ रहा है वहीं मरने वालों का प्रतिशत नीचे जा रहा है। इसे चिकित्सा प्रबंधों की सफलता मान लेना गलत नहीं है लेकिन इस सच्चाई से भी तो मुंह नहीं फेरा जा सकता कि नए संक्रमणों की संख्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है और यही हाल रहा तो एक हफ्ते से पहले ही प्रतिदिन एक लाख से ज्यादा नए संक्रमित सामने आने लगेंगे। कुछ सूत्रों के अनुसार ग्रामीण इलाकों में भी कोरोना ने दबिश दे दी है। ठीक होने वालों की तुलना में नये संक्रमणों की ज्यादा संख्या से अस्पतालों की क्षमता जवाब देने की स्थिति में आ सकती है। देश की राजधानी दिल्ली में जहां कुछ दिन पहले तक कोरोना को नियंत्रित किये जाने की खुशी मनाई जाने लगी थी वहां बीते कुछ दिनों में हजारों नये मरीज निकलने से चिंता के बादल फिर मंडराने लगे हैं। देश के अन्य हिस्सों से भी कोरोना के पलटवार की खबरें निरंतर मिल रही हैं। इधर केंद्र सरकार ने सितम्बर माह से लॉक डाउन के तहत लगाये अधिकतर प्रतिबन्ध खत्म कर दिए हैं। एक राज्य से  दूसरे में जाने के लिए किसी पूर्वानुमति की जरूरत नहीं रही। यात्री रेल गाड़ियों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है। होटल, रेस्टारेंट, सभागारों को भी खोल दिया गया है। दिल्ली में 9 सितम्बर से बार भी प्राम्भ किये जा रहे हैं। लेकिन ये सब होने के बाद भी कोरोना के फैलाव को रोकने की लिए की जा रही सख्ती के प्रति अव्वल दर्जे का उपेक्षा भाव न केवल सरकार अपितु जनता के स्तर पर भी देखा जा सकता है जो घातक साबित हो रहा है। पुलिस मास्क नहीं पहिनने वालों से जुर्माना वसूलकर उसको अपनी उपलब्धि बताती फिरती है। जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उसके आंकड़े प्रसारित किये जाते हैं । लेकिन जनता को मास्क एवं शारीरिक दूरी बनाये रखने के लिए जरूरी प्रेरणा देते हुए अनुशासित करने का अभियान केवल मोबाईल फोन की रिंग टोन तक सिमटकर रह गया है। ऐसे में ये जरूरी प्रतीत हो रहा है कि भले ही लॉक डाउन को शिथिल किया जाता रहे किन्तु कोरोना से बचाव हेतु जिन सावधनियों को लेकर प्रारंभ में बेहद जागरूकता देखी जा रही थी उनके बारे में समाज का बड़ा तबका अव्वल दर्जे की लापरवाही दिखा रहा है और उसी का परिणाम नये संक्रमितों की संख्या में प्रतिदिन होने वाली वृद्धि के रूप में देखने मिल रहा है। अब जबकि साप्ताहिक लॉक डाउन को भी खत्म कर दिया गया है तब कोरोना से बचाव के मान्य तरीकों को अपनाने के प्रति आत्मप्रेरणा का भाव उत्पन्न किया जाना समय की मांग ही नहीं वरन अनिवार्यता भी है। सरकार का समूचा ध्यान अर्थव्यवस्था को दोबारा चुस्त-दुरुस्त करने के अलावा चीन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव से निपटने में लगा है। अनेक राज्यों में बाढ़ से पैदा हुई समस्याएं भी उसका ध्यान आकर्षित कर रही हैं। इनके अलावा उसके रोजमर्रे के काम भी बीते छह महीने में काफी पिछड़ गये हैं। ऐसे में रास्वसंघ जैसे स्वयंसेवी संगठनों को आगे आकर कोरोना से बचाव के प्रति लोगों में दायित्वबोध पैदा करने का अभियान चलाना चाहिए। लॉक डाउन के दौरान जरूरतमंदों की सहायता करने की स्वप्रेरित भावना लिए अनगिनत कोरोना योद्धा सामने आये थे लेकिन उनमें से अधिकतर अब नजर नहीं आते। बेहतर हो राजनीतिक दल भी अपने कार्यकर्ताओं को इस हेतु प्रेरित करें। कोरोना के इलाज की व्यवस्था करना सरकार और चिकित्सकों का काम है लेकिन उसकी रोकथाम के लिए जिन सावधानियों का पालन अपेक्षित और आवश्यक है उसके प्रति समाज की रचनात्मक शक्तियों को मोर्चा संभालना होगा। कोरोना का टीका जब आयेगा तब आयेगा किन्तु तब तक हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो सामुदायिक संक्रमण की भयावह स्थिति को रोक पाना असम्भव हो जाएगा। देश की राजधानी दिल्ली में जिस तरह से कोरोना पहले से भी ज्यादा ताकत से आ धमका है वह पूरे देश के लिए चेतावनी भरा संकेत है।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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