Monday 21 September 2020

कृषि सुधार : बिखराव का प्रतीक बन गई विपक्षी एकता



संसद के दोनों सदनों से कृषि सुधार विधेयकों के पारित होने के बाद उनके कानून बनने का रास्ता साफ़ हो गया है।  लेकिन गत दिवस राज्यसभा में विपक्ष के कुछ सांसदों ने जिस तरह का अभद्र आचरण किया उससे साबित हो गया कि वह खीझ निकाल रहा है।  राज्यसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं होने के बाद भी सत्तापक्ष ने ऐसे तमाम महत्वपूर्ण विधेयक पारित करवा लिए जिनका कांग्रेस के साथ ही अन्य विपक्षी दल जमकर विरोध कर रहे थे। इसके लिए मोदी सरकार के सदन प्रबन्धन (फ्लोर मैनेजमेंट) की प्रशंसा करनी होगी।  लेकिन उससे भी बढ़कर यह विपक्ष की विफलता है जो अपना बहुमत होते हुए भी एकजुटता नहीं दिखा पाने की वजह से शुरू में तो दबाव बनाता है लेकिन निर्णय की घड़ी में उसके गुब्बारे की हवा निकल जाती है।  विरोध में चिल्लाने वाले अनेक विपक्षी दल मतदान के समय जिस तरह बहिर्गमन कर जाते हैं उससे उनके बारे में ये धारणा बन गई है कि भीतर - भीतर उनकी सत्ता पक्ष से मिली भगत है।  मौजूदा सत्र के पहले भी कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी एकता की कोशिश की लेकिन सत्र शुरू होने के पहले वे और राहुल गांधी चिकित्सा कार्यवश विदेश चले गये जिससे विपक्ष का बिखराव बना रहा।  और ऊपर से  कांग्रेस अपने बनाये जाल में खुद ही फंस गई। पंजाब और हरियाणा में हो रहे विरोध का कारण भी उजागर हो चुका है।  यही वजह है कि महीनों पहले जारी अध्यादेशों का किसानों के बीच राष्ट्रव्यापी विरोध खड़ा करने में कांग्रेस ही नहीं बाकी विपक्षी दल भी नाकामयाब रहे।  किसानों के पक्षधर स्वयंसेवी संगठन जितने मुखर हाल ही में नजर आ रहे हैं वे अध्यादेश जारी होने के बाद ही उनके कथित किसान विरोधी प्रावधानों पर राष्ट्रीय विमर्श छेड़ते तब शायद आम किसान और जनता उस पर ध्यान देती। सबसे बड़ी बात ये रही कि कांग्रेस का अन्तर्विरोध उस समय निकलकर बाहर आ गया जब उसके पूर्व प्रवक्ता रहे संजय झा ने ही ये बात उजागर कर दी कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के घोषणापत्र में भी ऐसे कानूनों का वायदा किया गया था। राहुल गांधी ट्वीट करते हुए लगातार इन विधेयकों को लेकर मोदी सरकार पर आरोप लगाते रहे लेकिन श्री झा के खुलासे का कोई समुचित उत्तर पास नहीं होने से उनका विरोध असरहीन रहा।  इन विधेयकों के विरोध में सबसे बड़ा तर्क दिया गया कि इनके कानून बनते ही सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था खत्म कर दी जायेगी।  लेकिन प्रधानमन्त्री और कृषि मंत्री सहित सरकार के अनेक प्रवक्ता कह चुके हैं कि नये कानून किसान को ये आजादी देंगे कि वह चाहे तो अपना उत्पादन सरकार को बेचे या जहाँ उसे ज्यादा कीमत मिले वहां उसका विक्रय करे।  सरकारी मंडियों की अनिवार्यता और प्रदेश के बाहर बिक्री पर लगी रोक हट जाने से अब किसान के सामने पूरे देश का बाजार खुला है जिसमें वह अपने लिए अधिक मुनाफे वाले अवसर चुन सकता है। सरकार के शीर्ष स्तर से संसद और उसके बाहर ये आश्वासन दिया जा चुका है कि समर्थन मूल्य पर खरीदी जारी रहने के बाद भी किसानों को सरकारी मकडज़ाल से आजादी मिल जायेगी।  ऐसे में विपक्ष को भी अपनी नीति बदलनी चाहिए वरना वह एक बार फिर हाशिये पर चला जाएगा।  गत दिवस राज्यसभा में जो कुछ भी हुआ वह बहुत ही अशोभनीय था।  दुर्भाग्यवश आसंदी के फैसले से असहमति जताने के लिए उनके माइक तोड़ने और नियमावली फाड़ देने जैसी हरकत करने वालों में तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद डेरेक ओ ब्रायन भी थे जो सदन में तथ्यपूर्ण बहस के लिए जाने जाते हैं।  आसंदी के प्रति बेहद आपत्तिजनक व्यवहार के लिए दंडस्वरूप सभापति ने आज 8 विपक्षी सदस्यों को सप्ताह भर के लिए निलम्बित कर दिया।  हो सकता है इस अवधि के पूर्व सत्र ही समाप्त हो जाये। यदि विपक्ष को विधेयक के पारित होने की बात उदरस्थ नहीं हो रही थी तो संसदीय प्रजातंत्र में विरोध के लिए और भी मान्य तरीके हैं।  लेकिन ऐसा लगता है विपक्ष की दशा से ज्यादा दिशा खराब है तभी वह देश के किसानों की आवाज नहीं बन सका।  कहा जा रहा है कि कृषि सुधार के इन विधेयकों को किसानों का बड़ा वर्ग पसंद भी कर रहा है। रही बात समर्थन मूल्य की तो खरीफ फसल आने में ज्यादा समय नहीं है और धान खरीदी के समय सरकार के आश्वासन की पुष्टि हो जायेगी। बेहतर होगा विपक्ष इस मुद्दे पर व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाये। नए कानूनों को लेकर उसकी आशंकाएं यदि सही थीं तो उसे अध्यादेश जारी होते ही सीधे किसानों के बीच जाना था जिसमें वह हमेशा की तरह चूक गया।  इस बारे में ध्यान देने योग्य बात ये भी है कि जब तक सरकार गरीबों को सस्ता या मुफ्त अनाज देने वाली सार्वजनिक प्रणाली जारी रखेगी तब तक उसे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देते रहना पड़ेगा।  विपक्ष ये भूल जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पूंजीपतियों को संरक्षण देने के कितने भी आरोप लगाये जाएं लेकिन वे गरीबों को खुश करने में कभी पीछे नहीं रहते जो उनकी सफलता का रहस्य है।  कोरोना काल में देश की आधी से ज्यादा गरीब आबादी को मुफ्त और सस्ता अनाज वितरित करने का उनका फैसला इसका प्रमाण है। कृषि सुधार कानूनों को लागू करने का दांव बहुत जोखिम भरा भी है क्योंकि यदि ये कारगर नहीं हुए तो केंद्र सरकार को लेने के देने भी पड़ सकते हैं। लेकिन फिलहाल तो विपक्ष एक बार फिर पराजय की मुद्रा में खड़ा नजर आ रहा है।  किसानों का एकमुश्त समर्थन हासिल करना तो दूर वह अपनी बिरादरी तक को एकजुट नहीं रख सका।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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