Tuesday 8 September 2020

भारत भी तिब्बत में मानवाधिकार हनन का सवाल उठाये



गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ हुई खूनी मुठभेड़ में भले ही दोनों पक्षों के दर्जनों सैनिक हताहत हुए किन्तु उस संघर्ष में एक भी गोली नहीं चली। वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर दोनों देशों की सैन्य टुकड़ियां निरंतर निगाह रखती हैं। इस दौरान उनका आमना-सामना भी होता रहा है और कभी-कभार हाथापाई की चित्र सहित खबरें भी आती रहीं। लेकिन दोनों देशों के बीच इस बात पर सहमति कायम रही कि तनाव बढ़ने पर भी अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग नहीं किया जावेगा। ये भी तय हुआ था कि दोनों देश वास्तविक नियंत्रण रेखा पर निगरानी रखने के बावजूद उसके अतिक्रमण से परहेज रखेंगे। यद्यपि चीन गाहे-बगाहे मानवरहित क्षेत्र में अपना कब्जा ज़माने की हरकतें करता रहा जिसे रोकने के दौरान ही धक्का-मुक्की और हाथापाई की नौबत आती थी। लेकिन बीती गर्मियों में चीनी घुसपैठ के बाद हालात पहले जैसी छुटपुट घटनाओं से आगे निकलकर युद्ध की परिस्थितियों में तब्दील होते गये। गलवान घाटी की घटना के बाद भारत ने पहली बार लद्दाख क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मोर्चेबंदी की। दरअसल इस दुर्गम इलाके में सैन्य दृष्टि से सड़क, पुल, हवाई पट्टी, सेना को सर्दियों में तैनात रखने के इंतजाम, रसद की आपूर्ति, मिसाइलों, तोपों, टैंकों और लड़ाकू विमानों की तैनाती जैसे प्रबंधों के मामले में भारत तुलनात्मक रूप से चीन से बहुत पीछे था। लेकिन हाल के वर्षों में इस कमी को दूर कर लिया गया। और यही चीन की बौखलाहट का मुख्य कारण है। गलवान घाटी की घटना के पीछे भी यही विवाद था। अग्रिम चौकियों तक सड़क बनाने का चीनी सेना ने विरोध किया जिसे भारत ने नजरंदाज करते हुए अपना काम जारी रखा। उसी का लाभ ये हुआ कि चीन के आक्रामक और संदेहास्पद रवैये को भांपकर भारत ने अत्यंत तत्परता से पूरे लद्दाख क्षेत्र में चीनी सीमा पर जवाबी सैन्य जमावड़ा करते हुए उसे चौंका दिया। ये कहना पूरी तरह सही होगा कि चीन को ऐसी उम्मीद नहीं थी। वह सोचता था कि भारत उससे बातचीत की पहल करेगा लेकिन बजाय इसके हमारी सेनाओं ने युद्ध करने की तैयारी कर ली। चीन को उम्मीद थी कि अक्टूबर में सर्दियां शुरू के पहले ही भारत कुछ टुकड़ियों को छोड़कर बाकी को पीछे हटा लेगा किन्तु चीनी इरादों का सही पूर्वानुमान लगाते हुए भारत ने ये निर्णय कर लिया कि अब लद्दाख में भी सियाचिन जैसी पूर्णकालिक सैन्य तैनाती रखी जावेगी । जिससे चीन दबे पाँव कोई हरकत न कर सके। और इसका त्वरित लाभ भी दिखाई दिया जब बीते 29-30 अगस्त को पेंगांग झील इलाके में चीनी घुसपैठ को नाकाम करने के साथ ही भारत ने रणनीतिक महत्व की कुछ चोटियों से चीनी कब्जे को हटाकर अपना आधिपत्य कायम कर लिया। इसके बाद ही बीते सप्ताह मास्को में चीन के रक्षा मंत्री ने भारत के रक्षा मंत्री से मुलाकात करने की इच्छा व्यक्त की और दोनों के बीच दो घंटे बातचीत हुई। सैनिक अधिकारी भी निरंतर मिलते रहते हैं। लेकिन चीन ने गत दिवस एक बार फिर घुसपैठ की हिमाकत की जिसके चलते दोनों तरफ से दशकों बाद गोलियाँ चलने की जानकारी आई। हालांकि किसी के हताहत होने की खबर नहीं है और ये भी सुनाई दिया कि सांकेतिक तौर पर चेतावनी स्वरूप गोलियां चलीं। लेकिन ये बात स्पष्ट हो गई कि लद्दाख मोर्चे पर अब यद्ध की स्थितियां बन सकती हैं। चीन को पहली बार भारत की तरफ  से इतने जबर्दस्त प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। सीमा पर चाहे जब उसकी तरफ से होने वाली हरकतों पर भी तकरीबन रोक लग चुकी है। लद्दाख के दुर्गम निर्जन पहाड़ी इलाकों में भारतीय सैनिकों की अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए चीनी सेना गुपचुप कब्जा करने की जो कोशिश किया करती थी वह अब संभव नहीं रहा। इस कारण पहली बार वह तनाव में नजर आ रहा है। और कभी बातचीत से मसला हल करने की बात कहता, तो कभी धमकी देने से बाज नहीं आता। बहरहाल उसे ये अंदाज नहीं रहा होगा कि भारत व्यापार और सैन्य दोनों मोर्चों पर एक साथ उसे चुनौती देने का साहस करेगा। कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए पूरी दुनिया में संदेह के घेरे में आने के बाद चीन भारत के साथ सीमा विवाद के जरिये दुनिया का ध्यान भटकाने की जो कोशिश कर रहा था वह उसे उल्टी पड़ गई प्रतीत हो रही है। लेकिन भारत को इस बारे में जरा सी भी खुशफहमी नहीं पालना चाहिए क्योंकि चीन दुनिया भर में हो रही किरकिरी से बौखलाकर भारत के साथ सीमित युद्ध का जोखिम उठा सकता है। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस कारण फिलहाल उसका बहुत भरोसा करना भूल होगी। ऐसे में भारत ने अभी तक जिस तरह का दृढ़ रवैया अपनाया वह जारी रखा जाना जरूरी है।  बेहतर होगा भारत अब तिब्बत में मानव अधिकारों के हनन का मामला संरासंघ में उठाना शुरू करे जो चीन की दुखती रग है। आखिर जब वह जम्मू-कश्मीर को लेकर विश्व संगठन में चाहे जब भारत के विरुद्ध प्रस्ताव ला सकता है तब हम भी वैसा क्यों नहीं कर सकते।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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