Friday 11 September 2020

सियासी संरक्षण और प्रतिबद्ध प्रशासन से बढ़ा भ्रष्टाचार




देश में भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली एक प्रमुख संस्था है केन्द्रीय सतर्कता आयोग। इसे साधारणत: लोग विजिलेंस कमीशन के नाम से जानते हैं। इसका कार्य केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में होने वाले भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को शुरु में ही रोक देना है। सरकारी खरीदी की बड़ी निविदाओं पर भी इस आयोग की पूर्व स्वीकृति ली जाती है। लेकिन भ्रष्ट लोग भी तुम डाल -डाल, हम पात-पात वाली कहावत को चरितार्थ करने में सिद्धहस्त हैं। और इसीलिये सतर्कता के लिये तैनात अमले को चकमा देते हुए भ्रष्टाचारी जमात अपना कारोबार बेधड़क चलाती रहती है। बाद में जो शिकायतें आती भी हैं उनकी जांच और दोषी को दण्डित करने की प्रक्रिया इतनी जटिल और उबाऊ है कि भ्रष्टाचार करने वाला सीना तानकर घूमा करता है। गत दिवस आयोग ने इस विसंगति को दूर करने के लिए सतर्कता आयोग के अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार की शिकायतों संबंधी फाइलों के समयबद्ध निपटारे के लिए आवश्यक कदम उठाये हैं। जांच का काम देख रहे अधिकारियों के पास लंबित फाइलों की 30 सितम्बर तक समीक्षा की जावेगी और फिर जाँच को अंजाम तक पहुँचाने की प्रक्रिया को तेज किया जावेगा। ये खबर वाकई उत्साहित करने वाली है क्योंकि हमारे देश में यूँ तो समस्याओं के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ खड़े हुए हैं लेकिन उनकी सबसे ऊँची चोटी का नाम भ्रष्टाचार है। यदि ये न होता या कम होता तब भारत जाने कभी का विकासशील से विकसित देश बन चुका होता। चूँकि केंद्र सरकार ही देश को संचालित करती है और संघीय ढांचे के बाद भी उसका प्रभाव और उपस्थिति पूरे देश में है , इसलिए उसके विभागों के भ्रष्टाचार से राज्य सरकारों का शासकीय ढांचा भी प्रेरित होता है। इस लिहाज से यदि केन्द्रीय सतर्कता आयोग अपने कर्तव्यों के निर्वहन के प्रति गंभीर और परिणाममूलक हो जाये तो देश की अधिकतर समस्याएं आसानी से हल हो सकती हैं। राष्ट्रीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार ने अपना कब्जा जमा रखा है। उसे रोकने के लिए स्थापित जांच एजेंसियां अक्षम हों ऐसा नहीं है, लेकिन कुछ तो कार्य संस्कृति के अभाव और कुछ राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से जाँच का काम बीरबल की खिचड़ी जैसा होकर रह जाता है। जैसे-तैसे जाँच पूरी हो भी जाये तो फिर बची-खुची कसर पूरी हो जाती है नवाबी चाल से चलने वाली न्यायपालिका में आकर जहां भ्रष्टाचार के मामले भी दीवानी मुकदमों जैसे बरसों-बरस खिंचते रहते हैं। गवाहों और सबूतों पर टिकी न्यायिक प्रणाली शातिर दिमाग वालों के आगे इस कदर मजबूर हो जाती है कि सब कुछ जानते और समझते हुए भी शीघ्र न्याय प्रदान करने में वह असमर्थ है। ऐसे में यदि सतर्कता आयोग निचले स्तर पर ही अपने नाम को सार्थक साबित करते हुए भ्रष्ट लोगों के गिरेबान को पकड़ सके तो भ्रष्ट तत्वों के हौसले कमजोर किये जा सकेंगे। वर्तमान स्थिति तो बेहद चिंताजनक और निराश करने वाली है। यद्यपि इसके लिए राजनीतिक संरक्षण भी कम जिम्मेदार नहीं है जो अपने प्रभाव का बेशर्मी के साथ दुरूपयोग करते हुए जनता को लूटने वालों को रक्षा कवच प्रदान करता है। सरकार बदलने के साथ ही नौकरशाहों को इधर-उधर किये जाने की संस्कृति प्रतिबद्ध प्रशासनिक तंत्र का कारण बनने से सरकारी महकमे के अफसरों की पहिचान  राजनीतिक पार्टी के साथ जुड़ाव से  होने लगी। सतर्कता आयोग में बैठे अधिकारी भी हैं तो आखिर सरकार के वेतनभोगी और ऐसे में उन्हें भी अपनी नौकरी तथा भविष्य प्यारा होता है। इस लिहाज से जब तक प्रशासन राजनीतिक हस्तक्षेप और पहिचान से मुक्त नहीं होगा सतर्कता आयोग की ताजा पहल को सफलता मिलने में संदेह बना रहेगा। यूँ भी भ्रष्टाचार अब केवल किसी एक या कुछ विभागों में सीमित न रहकर समूचे तंत्र में व्याप्त हो चुका है। ऐसी स्थिति में उससे लड़ने के लिए एक समग्र, सक्षम और स्वायत्त व्यवस्था करनी होगी अन्यथा जाँच और दंड प्रक्रिया में अधूरापन बना रहेगा।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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