Thursday 3 September 2020

पहली बार चीन को उसी की भाषा में जवाब दे रहा भारत



लद्दाख से अरुणाचल तक चीन से लगी सीमा पर भारत द्वारा बड़े पैमाने पर सैन्य तैनाती युद्ध पूर्व के संकेत दे रही है। बीते तीन - चार दिनों में भारतीय सेना ने पेंगांग झील के निकट स्थित पहाड़ियों में अनेक ऐसी जगहों पर अपना डेरा जमा लिया जिन्हें रणनीतिक महत्व का माना जा रहा है। ये संभवत: पहला अवसर होगा जब भारतीय सेना ने वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर आक्रामक रुख अपनाते हुए आगे बढ़कर कब्जे का साहस किया। अन्यथा हमेशा यही सुनने मिलता था कि चीनी सैनिक हमारे भूभाग में घुस आये और हमारे सैनिक उन्हें पीछे धकेलने में जुटे हैं। राजनयिक स्तर पर भी हम विरोध करते थे जिसके जवाब में चीन सदैव उपेक्षापूर्ण रवैया दिखाता था। ये भी सुनने में आया है कि लद्दाख के पहाड़ी अंचल में सीमा का विधिवत निर्धारण न होने से चीन चुपचाप आगे बढ़ता जाता था और 1962 के बाद भी धीरे - धीरे उसने हमारे सैकड़ों किलोमीटर भूभाग पर कब्जा कर लिया। सही बात ये है कि चीन के साथ भले ही 1962 के बाद औपचारिक रूप से युद्ध नहीं हुआ लेकिन चीन ने पूरे सीमा क्षेत्र में जिस तरह का विकास किया उसकी तुलना में भारत बहुत पीछे रहा। लेकिन मोदी सरकार ने बीते छह साल में वास्तविक नियन्त्रण रेखा तक सड़क, पुल, हवाई अड्डा बनाने के बाद मिसाइलें, राडार, टैंक आदि तैनात कर दिए। बीते जून माह में हुए तनाव के बाद बड़े पैमाने पर सैन्य बटालियनें वहां भेजी गईं जिनमें पहाड़ों पर जंग लडऩे के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित सैनिक दस्ते भी हैं। इस बार भारत ने सर्दियों में भी पर्याप्त सैन्यबल की मौजूदगी सुनिश्चित कर दी है जिससे बर्फबारी का लाभ लेकर चीन घुसपैठ न कर सके। चीन के साथ तनाव के चलते ये पहला मौका है जब भारत के उच्च सैन्य अधिकारी खुले आम कह रहे हैं कि यदि चीन की हरकतें नहीं रुकीं तो भारत युद्ध का विकल्प चुनने से भी नहीं हिचकेगा। हालाँकि दोनों तरफ के सैन्य अधिकारी निरंतर बातचीत भी कर रहे हैं किन्तु चीन अपनी सेना को दबे पाँव भारतीय भूभाग में अतिक्रमण करने के लिए भी भेजता रहता है। लेकिन हाल ही में उसकी ऐसी ही कोशिश को हमारे सैनिकों द्वारा विफल करते हुए सैन्य महत्व की चीन के कब्जे वाली पहाड़ियों पर अपना आधिपत्य जमा लिया। उसके बाद चीन के विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया में एक तरफ  तो 1962 से भी गम्भीर नतीजों की धमकी थी लेकिन दूसरी तरफ बातचीत के जरिये विवाद सुलझाने की अपील के साथ भारतीय सेना द्वारा की गई आक्रामक कार्र्वाई की शिकायत भी। जैसी खबरें आ रही हैं उनके अनुसार अभी तक चीन झगड़ा झूठा कब्जा सच्चा वाली नीति पर चलते हुए वार्ता की टेबिल पर अपनी शर्तें मनवाने की स्थिति में रहा करता था लेकिन बीते कुछ समय से भारत की तरफ से राजनयिक और सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता के अलावा सैन्य मोर्चे पर भी जिस तरह से कड़ा रवैया अख्तियार किया गया उससे हमारी सेना का मनोबल तो बढ़ा ही लगे हाथ विश्व बिरादरी में भी भारत की दृढ़ता का खासा प्रचार हुआ। दुनिया की सभी बड़ी शक्तियां जिस तरह से हमारे साथ खड़ी दिखाई दे रही हैं उससे भी हमारा साहस बढ़ा है। आर्थिक मोर्चे पर भी कल एक बार फिर भारत ने जोरदार हमला बोलते हुए सौ से ज्यादा चीनी एप प्रतिबंधित कर दिए जिनमें बेहद लोकप्रिय पबजी भी है। ये एक तरह का सन्देश है कि भारत अब उसकी प्रत्येक हरकत का उसी की शैली में उत्तर देने में संकोच नहीं करेगा। इसमें दो राय नहीं है कि मौजूदा स्थिति बहुत ही नाजुक है। कोरोना के कारण अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है लेकिन भारत ने जिस मुस्तैदी से सेना को सुसज्जित करने का काम किया वह विश्वशक्ति बनने की दिशा में बड़ा कदम है। चीन के सामने आर्थिक और सैनिक दृष्टि से कमजोर होने की अवधारणा को पूरी तरह तथ्यहीन साबित करते हुए भारत ने आँख में आँख डालकर बात करने का जो हौसला दिखाया उसी का परिणाम है कि व्यापार और उद्योग जगत ने भी अपने मुनाफे को दरकिनार करते हुए स्वदेशी उत्पादन बढ़ाने की तरफ  कदम बढ़ा दिए। सीमा से आ रही खबरों के कारण आम देशवासी का आत्मविश्वास प्रबल हुआ है। हालांकि युद्ध से जितना बचा जा सके उतना अच्छा किन्तु यदि देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए वह आवश्यक हो जाए तब पीछे हटने के बजाय आगे बढ़कर दुश्मन पर हमला करना ही ठीक होता है। प्रधानमंत्री ने अग्रिम मोर्चे पर जाकर चीन की विस्तारवादी नीति के दिन लदने की बात कही थी। रक्षामंत्री और सेना के सभी वरिष्ठतम अधिकारी निरंतर मोर्चे पर जाकर सेना का मनोबल बढ़ा रहे हैं। सर्दियों में भी पूरी चौकसी का इंतजाम कर दिया गया है। चीन को लगातार ये जताया जा रहा कि याचना नहीं अब रण होगा, संग्राम बड़ा भीषण होगा। जैसे संकेत आ रहे हैं उनके अनुसार चीन के भीतर राष्ट्रपति जिनपिंग की राजनीतिक स्थिति पहले जैसी नहीं रही। दक्षिणी चीनी समुद्र में अमेरिका, जापान, भारत और आस्ट्रेलिया की संयुक्त मोर्चेबंदी से उन पर दबाव बढ़ा है। अभी तक दक्षिण एशिया के शक्ति संतुलन में भारत सदैव चीन के सामने आने से बचता रहा लेकिन पहली बार ये देखने मिल रहा है कि भारत ने उसके साथ उसी की जुबान में बात करने का साहस दिखाया जिसकी वजह से दक्षिण एशिया के कूटनीतिक समीकरण भी तेजी से बदल रहे हैं। अपने आर्थिक स्वार्थवश जिस अमेरिका और उसके साथ पश्चिम के विकसित देशों ने चीन को आर्थिक महाशक्ति बनाने में सहायता की वे सब अपने निर्णय पर पछताते हुए कदम पीछे खींचने लगे हैं। भारत के लिए यह शुभ संकेत हैं।

-रवीन्द्र वाजपेयी


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