Saturday 5 September 2020

वाहन टैक्स जैसी मेहरबानी बिजली बिलों पर भी करे शिवराज सरकार



हमारे देश में निर्णय प्रक्रिया में विलम्ब से अच्छे फैसले भी समय पर लागू नहीं हो पाते। ताजा उदाहरण है मप्र में निजी बस संचालकों द्वारा वाहन टैक्स माफ किये जाने की मांग को पूरा किया जाना। स्मरणीय है निजी बस सेवा संचालक ये मांग कर रहे थे कि प्रदेश सरकार 1 अप्रैल से 31 अगस्त तक का वाहन टैक्स माफ  करे क्योंकि इस दौरान बसें खड़ी रहीं। बीते दिनों ही राज्य सरकार ने एक सितम्बर से बसें चलाने की अनुमति दे दी थी लेकिन बस संचालक बिना टैक्स माफी के इसके लिए राजी नहीं हुए और हड़ताल पर जाने की घोषणा भी कर दी। आखिरकार गत दिवस मुख्यमंत्री ने तदाशय का फैसला किया। उसके बाद हड़ताल वापिस लेते हुए बसों का संचालन आज से प्रारंभ किये जाने की जानकारी बस संचालकों द्वारा दी गई। लेकिन साथ में ये भी जोड़ दिया गया कि जिन मार्गों पर सवारियां नहीं मिलेंगी वहां सेवाएँ रोक दी जायेंगीं। उल्लेखनीय है पहले भी राज्य सरकार द्वारा आधी सवारियों के साथ बसें चलाने की अनुमति दी गई थी किन्तु उसे घाटे का सौदा मानकर बस संचालकों ने अस्वीकृत कर दिया। अब पूरी सवारियों के साथ परिचालन की बात मान ली गई। राज्य सरकार ने 121 करोड़ का टैक्स माफ कर दिया। गतिरोध खत्म होने से प्रदेश के उन इलाकों में यात्री परिवहन प्रारम्भ हो सकेगा जहाँ आवागमन के दूसरे साधन उपलब्ध नहीं थे। जिनके पास अपने वाहन नहीं हैं वे परिवहन के अन्य महंगे साधनों का उपयोग नहीं कर पा रहे थे। छोटे शहरों और कस्बों से गरीब मजदूर, छोटे व्यापारी, मरीज आदि आसपास के स्थानों पर जाने के लिए सार्वजनिक बस सेवा का उपयोग करते हैं। लेकिन मप्र में पहले लॉक डाउन और बाद में संचालकों और सरकार के बीच चल रही खींचातानी से बसों के पहिये जाम रहे। हालांकि अभी भी बस मालिक किराये में अच्छी खासी वृद्धि करने की जिद पकड़े हुए हैं जिससे बीते पांच महीनों का घाटा पूरा किया जा सके। बहरहाल ये तो हुआ कि इस फैसले के बाद प्रदेश में यात्री परिवहन में आ रही दिक्कत से आम जनता को राहत मिलेगी तथा जनजीवन और कारोबार अपने पुराने स्वरूप में लौट सकेगा। लेकिन इस परिप्रेक्ष्य में विचारणीय प्रशन ये है कि जब सरकार को टैक्स माफ  करना ही था तब इतनी हीलाहवाली क्यों की गई? ऐसे मामलों में सरकार का रवैया ज्यादातार टरकाऊ होता है। इसकी एक वजह मंत्रियों के सलाहकार बने बैठे नौकरशाह भी बनते हैं जो अपनी ऐंठ में पहले- पहल किसी भी बात पर नकारात्मक रुख ही दिखाते हैं। उन्हें ये लगता है कि आसानी से किसी मांग को स्वीकार कर लेने से उनका रुतबा कम हो जाएगा। संदर्भित मामले में भी यदि बस संचालकों की मांग अनुचित थी तो उसे अभी भी नहीं माना जाना चाहिए था। और यदि सही थी तब इतना विलम्ब क्यों किया गया जिसकी वजह से सुदूर अंचलों में रह रहे साधनहीन लोगों को अकल्पनीय परेशानी और नुकसान उठाना पड़ा। ऐसा लगता है प्रदेश में होने वाले दो दर्जन से ज्यादा विधानसभा उपचुनावों के कारण ये रहमदिली दिखाई गई। जनसंपर्क पर निकले नेताओं को जनता ने खरी-खोटी सुनाई होगी तब जाकर सरकार बहादुर के कान में जूँ रेंगी। इसी तरह का मामला बिजली वसूली का है। लॉक डाउन के दौरान कारखाने, व्यावसायिक प्रतिष्ठान, सिनेमा, शॉपिंग माल, होटल, रेस्टारेंट आदि महीनों बंद रहे। इस कारण उनकी बिजली खपत न के बराबर रह गई। कुछ महीनों तक तो वसूली स्थगित रखी गयी लेकिन ज्योंही लॉक डाउन में छूट दी जाने लगी त्योंही विद्युत मंडल ने ये जानते हुए भी कि अभी तक उपरोक्त में से अनेक व्यवसाय या तो प्रारंभ नहीं हो सके या फिर उनका कारोबार पटरी पर नहीं आ पाया है, विशुद्ध पठानी शैली में वसूली शुरू कर दी। उनसे न्यूनतम प्रभार के नाम पर अनाप-शनाप राशि वसूली जा रही है। जो औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं पर थोपे गये जजिया कर जैसा ही है। जो कारोबारी बिल का भुगतान करने में थोड़ी सी भी देरी करता है, उसकी बिजली काटकर ब्लैकमेल किया जा रहा है। चूँकि उद्योगपति और व्यापारी बस संचालकों की तरह एकजुट नहीं हैं इस वजह से उन्हें पूरी तरह उपेक्षित किया जाता है। प्रदेश सरकार के सामने जो आर्थिक संकट है उससे कोई इंकार नहीं करेगा । लेकिन उसे ये सोचना चाहिए कि सरकार का राजस्व बढ़ाने के लिए कारोबारियों के कन्धों पर पड़ रहे बोझ को हल्का करना बुद्धिमत्ता होगी। जिस तरह आज से बसों का परिचालन शुरू होने से प्रदेश भर में डीजल की बिक्री बढ़ेगी जिससे उस पर लगाए गये टैक्स के रूप में मिलने वाला राजस्व बढ़ जायेगा जो बीते पांच महीनों से रुका पड़ा था। इससे 121 करोड़ के वाहन टैक्स माफी की भरपाई आसानी से हो जायेगी। ऐसी ही बुद्धिमत्ता बिजली बिलों के मामले में भी दिखाई जाए तो तमाम रुके हुए कारोबार गति पकड़ लेंगे और राजस्व की आवक में स्वाभाविक और सुनिश्चित वृद्धि हो सकेगी। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। इस कारण उन्हें शासन-प्रशासन के साथ जनता के सभी वर्गों मसलन व्यापारी, उद्योगपति, किसान, मजदूर, नौकरपेशा, पेंशनधारी, बेरोजगार आदि की परेशानियों का अच्छी तरह से एहसास है। बेहतर हो वे कोरोना संकट के इस दौर में अपने अनुभव और संवेदनशीलता से लोगों का दिल जीतने के साथ ही प्रदेश की छवि एक ऐसे राज्य के तौर पर स्थापित करें जहां जनहित के फैसले लेने में देर नहीं की जाती। यदि वे ऐसा कर सके तो प्रदेश में निवेशक सम्मेलनों पर करोड़ों रूपये फूंकने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

-रवीन्द्र वाजपेयी

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