Friday 25 September 2020

नशे का कारोबार : मुम्बई पुलिस की भी सीबीआई जाँच हो




मुम्बई फिल्म उद्योग में कोरोना के कारण काम पूरी तरह ठप्प हो गया था। इसी दौरान सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने उसके लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी। उससे उबरने के पूर्व ही प्रतिबंधित नशीली चीजों के उपयोग की सुगबुगाहट ने उसकी छवि को तार-तार कर दिया। सुशांत की महिला मित्र रिया चक्रवर्ती से हुई पूछताछ के बाद ये पता चला कि वह सुशांत के लिए गांजा और उस जैसी अन्य अवैध चीजों की खरीदी करती थी। फिर क्या था, जाँच का दायरा बढ़ा और नशीली चीजें फिल्मी हस्तियों तक पहुँचाने वालों से मिली जानकारी के आधार पर नारकोटिक्स नियन्त्रण ब्यूरो ने अनेक अभिनेत्रियों तथा अन्य लोगों को पूछताछ हेतु बुलावा भेज दिया। जाँच का परिणाम क्या होगा ये तो कोई नहीं जानता लेकिन जिस तरह से फिल्म जगत से जुड़े लोग ही सार्वजानिक रूप से ये कह रहे हैं कि ग्लैमर की दुनिया में नशीली चीजों का इस्तेमाल बेहद सामान्य बात है, उससे तो लगता है कि ये डोर लम्बी है। हालाँकि ऐसा कहने वालों से भी ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि उन्हें इस अवैध कारोबार के बारे में जानकारी थी तब वे इतने दिनों शांत क्यों रहे? जैसी चर्चा है प्रतिबंधित नशीली चीजों का चलन फिल्मी दुनिया में इतना आम हो चला कि पुरुष वर्ग तो दूर नामी-गिरामी अभिनेत्रियाँ तक इसकी लत का शिकार हैं। ये दावा भी किया जा रहा है कि जाँच सही तरीके से की गई तो न जाने कितने इज्जतदार बेपर्दा नजर आयेंगे। चूँकि जाँच का जिम्मा नारकोटिक्स नियन्त्रण ब्यूरो के पास है और सीबीआई भी सुशांत कांड की जांच से जुड़ी हुई है इसलिए ये माना जा सकता है कि अब तक छिपे तमाम ऐसे रहस्य खुलेंगे जो पैसे और ग्लैमर के आवरण से ढंके हुए थे। लेकिन फिल्मी दुनिया के सितारों के साथ ही ये मामला मुम्बई की उस पुलिस पर भी उँगलियाँ उठाने के कारण उत्पन्न कर रहा है जिसे विश्व का सबसे पेशेवर पुलिस बल प्रचारित किया जाता रहा है। सुशांत की मौत की जांच जब सीबीआई से करवाने का अनुरोध उसके परिवार द्वारा किया गया तब महाराष्ट्र सरकार विशेष रूप से शिवसेना ने उसका जबरदस्त विरोध करते हुए मुम्बई पुलिस को पूर्णरूपेण पेशेवर और सक्षम बताया। बिहार पुलिस के जांच दल को उस मामले से जुड़े दस्तावेजों की प्रतिलिपि देने तक से इंकार कर दिया तथा अनेक महत्वपूर्ण दस्तावेज कम्प्यूटर से उड़ा देने जैसी शरारत भी हुई। उस सबसे लगा था कि शायद सुशांत की मौत और उससे पूर्व बनी परिस्थितियों में कोई ऐसा शख्स परिदृश्य में था जिसका नाम उजागर होने से उद्धव ठाकरे का परिवार और सरकार दोनों मुसीबत में फंस सकते थे। लेकिन धीरे-धीरे जांच जब सुशांत की मौत से आगे निकलकर नशे के अवैध धंधे तक जा पहुंची तब ये जिज्ञासा और मजबूती से उभरी कि मुम्बई में जब राह चलते नशीली चीजों की खरीद-फरोख्त आसानी से सम्भव है तब वहां की पेशेवर पुलिस क्या आँखों में पट्टी बांधकर बैठी रहती है ? सवालों का शिकंजा केवल मौजूदा राज्य सरकार के इर्दगिर्द ही नहीं वरन पिछली सरकार पर भी कसा जायेगा जिसमें भाजपा और शिवसेना दोनों की भागीदारी थी। जिन वहाट्स एप बातचीतों के आधार पर नशीली चीजों की आपूर्ति का आरोप फि़ल्मी सितारों पर लगाया जा रहा है उनमें अनेक पिछली सरकार के समय की भी हैं। इसलिए जाँच केवल नशीली चीजें बेचने और उनका उपयोग करने वालों की ही नहीं बल्कि मुम्बई पुलिस की भी होनी चाहिए जो खुद को जेम्स बांड का भारतीय संस्करण बताते नहीं थकती किन्तु मुम्बई में नशीली दवाओं की सुलभ उपलब्धता की भनक तक उसे नहीं लगी। यहाँ ये उल्लेखनीय है कि मुम्बई पुलिस प्रतिवर्ष एक बड़ा सांस्कृतिक आयोजन करती है जिसमें फिल्मी सितारे मुफ्त में अपनी कला का प्रदर्शन करने के साथ ही मोटी रकम भी पुलिस सहायता कोष में मंच से ही घोषित करते हैं। उनका ये उपकार मुम्बई पुलिस पर एक बोझ जैसा होता है जिसका बदला वह जिस रूप में चुकाती है उसकी कुछ-कुछ बानगी फिल्मी दुनिया में प्रतिबंधित नशीली चीजों की मुक्त खरीदी से मिलती है। नारकोटिक्स नियन्त्रण ब्यूरो की जांच से क्या-क्या सामने आता है ये तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। लेकिन जिस तरह से परतें खुल रही हैं उससे ये लगने लगा है कि मुम्बई फिल्म उद्योग का जो चेहरा सामने आने वाला होगा वह पूरी तरह बदरंग हो सकता है। इसलिए सीबीआई को मुम्बई पुलिस की भूमिका की भी जांच बारीकी से करनी चाहिए जिसकी नाक के नीचे जहर का कारोबार चलता रहा। बड़ी बात नहीं इसमें अनेक दिग्गज राजनेताओं की भी भूमिका हो। अतीत में भी कुख्यात तस्करों को राजनेताओं के संरक्षण की बात सामने आ चुकी है। संजय दत्त जैसे नामी कलाकार अवैध रूप से हथियार रखने के आरोप में सजा तक काट आये हैं। उसके बाद भी उन्हें फिल्मी दुनिया जिस तरह से सिर पर उठाये फिरती है उससे ये बात साबित हो चुकी है कि उसमें पैसे के लिए पागलपन इस हद तक है कि अच्छे और बुरे का भेद ही नहीं रहा। अत: संदर्भित मामले में सच्चाई का सामने आना निहायत जरूरी है। इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि जिन नेताओं और अभिनेताओं में समाज अपना रोल मॉडल देखता है उनमें से अधिकतर अंतत: निराश करते हैं। इसीलिये भारतीय फिल्मों में नेता, अपराधी और पुलिस का गठजोड़ खुलकर दिखाये जाने के बाद भी कोई उसका खंडन या विरोध नहीं करता।

रवीन्द्र वाजपेयी


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