कहाँ तो बढ़ते वायु प्रदूषण को देखते हुए जगह-जगह ऑक्सीजन पार्लर शुरू होने की खबरें आ रही थीं और कहाँ देश भर से ये समाचार आने लगे कि कोरोना संकट के कारण अस्पतालों तक में ऑक्सीजन का अभाव होने लगा। हालाँकि जैसा केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने गत दिवस संसद में बताया उसके अनुसार देश में 92 फीसदी कोरोना मरीज साधारण किस्म के हैं जिनमें से मात्र 6 फीसदी को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। ठीक होने वाले कोरोना संक्रमितों का प्रतिशत भी वैश्विक स्तर से काफी कम है। नये मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि के बावजूद संतोष का विषय है कि स्वस्थ होने वालों की संख्या भी अच्छी खासी है। लेकिन ये सरकारी आंकड़े हैं और इन पर आँख मूंदकर विश्वास कर लेना आपने आपको धोखा देने जैसा होगा। यद्यपि ये समय आलोचना का नहीं है क्योंकि पूरी दुनिया इससे पीड़ित है। अमेरिका जैसे विकसित देश तक कोरोना के सामने असहाय साबित हुआ। उस दृष्टि से भारत अपने प्रदर्शन पर अभी तक जो संतोष व्यक्त करता रहा वह बीते दो महीनों में सवालों के घेरे में आ गया है। भले ही आंकड़ों में कोरोना से मृतकों का आंकड़ा बेहद कम हो लेकिन बीते कुछ दिनों से श्मसान भूमि में होने वाले अन्त्तिम संस्कार जिस तरह से बढ़े वह उन दावों को झुठलाने के लिए पर्याप्त है जो स्थानीय प्रशासन से लेकर केंद्र सरकार तक कर रही है। डा. हर्षवर्धन स्वयं चिकित्सक हैं इसलिए उनकी व्यवसायिक योग्यता और ईमानदारी पर संदेह किये बिना ये कहा जा सकता है कि मंत्री चाहे केंद्र का हो या राज्य का वह जो जानकारी सदन में देता है वह प्रशासनिक अमले द्वारा प्रदान की जाती है और उसमें तथ्यों को छिपाये जाने की सम्भावना से इंकार नहीं जा सकता। उस दृष्टि से संसद में स्वास्थ्य मंत्री द्वारा दिए गये बयान पर संशय बना रहेगा। बकौल डा. हर्षवर्धन भले ही ऑक्सीजन की जरूरत बहुत ही कम मरीजों को पड़ रही हो लेकिन मप्र सहित कुछ राज्यों में बीते कुछ दिनों में अस्पतालों में ऑक्सीजन का स्टॉक खत्म होने से मचे हड़कंप ने एक नई समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। हालांकि आपदा प्रबंधन के तहत ऑक्सीजन उत्पादक राज्यों से जरूरत वाले राज्यों में तेजी से प्राथमिकता के स्तर पर आपूर्ति की गयी लेकिन जिस मात्रा में नए मामले प्रतिदिन आ रहे हैं उन्हें देखते हुए आने वाले दिनों में ऑक्सीजन की कमी का अंदेशा बना रह सकता है। हालाँकि कोरोना संकट शुरू होते ही देश में उससे सम्बंधित जरूरतों मसलन मास्क , सैनीटाईजर, वैन्टीलेटर , जाँच किट आदि का उत्पादन तेजी से होने लगा जिससे आयात की जरूरत खत्म हो गई। इसलिए ये उम्मीद करना गलत नहीं होगा कि अस्पतालों में ऑक्सीजन की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए देश में उसका पर्याप्त उत्पादन और भंडारण जल्द हो सकेगा। लेकिन तब तक उसकी आपूर्ति सुनिश्चित रखना बड़ी चुनौती है । मप्र उन राज्यों में से है जिनमें बीते कुछ दिनों में ऑक्सीजन के अभाव के कारण अनेक शहरों में कोरोना मरीजों को जबरदस्त परेशानी हुई। अनेक मौतें उस वजह से होने की शिकायतें भी आई हैं। ये संतोष का विषय है कि केंद्र सरकार द्वारा तत्काल सामंजस्य बिठाकर आपूर्ति करवा दी गई परन्तु कोरोना संक्रमण के तेजी से फैलाव के मद्देनजर आने वाले दिन और भी संकट भरे हो सकते हैं। जिन घरों में बुजुर्ग रहते हैं वहां छोटे ऑक्सीजन सिलेंडर रखे जाने की सलाह अक्सर चिकित्सक दिया करते हैं। मौजूदा हालात देखते हुए तो उसकी जरूरत किसी को भी पड़ सकती है। कोरोना चूँकि मनुष्य के फेफड़ों को संक्रमित कर उसके श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है इसलिए शरीर में ऑक्सीजन का वांछित स्तर बनाये रखने के लिए भी जन - जागरण किया जाना जरूरी है। ये देखने में आया है कि साँस लेने में होने वाली तकलीफ को शुरुवात में नजरंदाज करने से अस्पताल पहुँचने पर इलाज मुश्किल होता है। ऑक्सीजन को प्राण वायु कहा जाता है। उसका महत्व तो दिल्ली जैसे शहर में साल में कई मर्तबा होने वाले प्रदूषण के समय समझ में आता रहा। लेकिन कोरोना संकट ने हमारे शरीर में उसकी पर्याप्त मात्रा के बारे में भी सचेत किया है। इस बारे में भारत की परम्परागत योग पद्धति बेहद उपयोगी है जिसमें श्वसन तंत्र को मजबूत बनए रखने के तमाम व्यायाम हैं। शंख बजाना भी फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। बेहतर होगा कोरोना के बहाने आम भारतीय इस तरह की सावधानियों के प्रति गंभीर हों क्योंकि छोटी-छोटी बातें भी बड़े से बड़े संकट में कारगर साबित होती हैं ।
-रवीन्द्र वाजपेयी
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