Tuesday 22 September 2020

आंकड़ों में न फँसे : अपना बचाव खुद करें




बीते कुछ दिनों से राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना के नए मरीजों से ज्यादा स्वस्थ होने वालों की संख्या प्रचारित हो रही है। निश्चित रूप से जब हर जगह से भयावह खबरें आ रही हों तब इस तरह का कोई भी आँकड़ा मन को ठंडक प्रदान करने वाला होता है। बीते रविवार को चूंकि जाँच बहुत कम हुईं इसलिए नए मरीजों की संख्या में अच्छी - खासी गिरावट देखी गई परन्तु इन आँकड़ों से संतुष्ट होना अपने आपको अँधेरे में रखना होगा क्योंकि इसी के साथ ये खबर भी आ रही है कि कोरोना का चरम अभी तक नहीं आया है। वाकई ऐसा है तब ये मानकर चलना पड़ेगा कि आने वाले कुछ महीने और बड़ा संकट लेकर आयेंगे। टीका (वैक्सीन) आने के समय पर भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। कभी अक्टूबर तो कभी अगले वर्ष जून तक की संभावना बताई जा रही है। चिकित्सक समुदाय भी निजी तौर पर ये मानता है कि हमारे देश में कोरोना का टीका सबको उपलब्ध होते तक जून 2021 तो आ ही जाएगा। लेकिन तब तक हर व्यक्ति सुरक्षित कैसे रहे ये बड़ा सवाल है। सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त स्थान है नहीं और निजी में भर्ती होने की हैसियत अच्छे-अच्छों की नहीं है। ऐसे में अपने घर या किसी व्यवस्थारहित सरकारी आइसोलेशन केंद्र में जाकर दुर्दशा का शिकार होने के अलावा कोई और विकल्प साधारण इन्सान के पास बचेगा नहीं। इसीलिये ये जरूरी है कि अब कोरोना से बचाव के प्रति पहले से ज्यादा सावधानी का पालन किया जाये क्योंकि लॉक डाउन में छूट मिलते ही बेफिक्री का जो माहौल देखने मिल रहा है उसने कोरोना का प्रभावक्षेत्र और विकसित कर दिया है। जहाँ तक बात नये संक्रमितों की है तो उनकी संख्या को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। देश में बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है जो कोरोना के प्रकट लक्षणों के बिना भी उसके शिकार होकर जान गँवा रहे हैं। उनकी बीमारी की सही जानकारी के अभाव में उनका अंतिम संस्कार सामान्य श्मसान भूमि में ही कर दिया जाता है। ऐसे मृतकों के परिजन और परिचित भी आवश्यक सावधानी नहीं बरतते जिसका परिणाम घातक होता है। अस्पतालों में भीड़ बढ़ने के कारण बड़ी संख्या में मरीजों को घरों में ही एकांतवास करते हुए इलाज कराने की सलाह प्रशासन देता है। इस आधार पर यदि आँकड़ों का सही चित्र पेश किया जावे तो सक्रिय मरीजों की संख्या सरकारी दावों से कहीं ज्यादा होगी। हालाँकि सरकार और निजी क्षेत्र दोनों टीके को विकसित करते हुए उसे बाजार में उतारने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं लेकिन जैसी जानकारी आ रही है उसके अनुसार किसी भी तरह का आशावाद जानलेवा हो सकता है। एक बार मान लें कि कोरोना का चरम आ चुका है तब भी छोटी सी लापरवाही अपनी और अपनों की जि़न्दगी पर भारी पड़ सकती है। लॉक डाउन हटाये जाने के बाद से जनजीवन सामान्य तो हुआ लेकिन कोरोना संबंधी अनुशासन की जैसी धज्जियाँ उड़ाई गईं उसकी वजह से ही बीते दो महीने में हालात इस हद तक खराब होते गए कि अनेक शहरों में फिर से लॉकडाउन की मांग जनता और व्यापारी दोनों करने लगे। वैसे भी यदि नए संक्रमितों की संख्या इसी गति से बढ़ती गई तब दोबारा देश, प्रदेश या शहर बंदी करने की नौबत आ जाए तो अचरज नहीं होगा। इसीलिये हर व्यक्ति को चाहिए कि वह न तो आँकड़ों के मकडज़ाल में फंसे और न ही टीके के जल्द आने की खुशी में जश्न मनाने लग जाए। वैज्ञानिक अपना काम पूरी लगन से कर रहे हैं। किसी भी बड़ी बीमारी का टीका बनाने के पहिले बहुत शोध, प्रयोग और परीक्षण करने होते हैं, जिनमें जल्दबाजी की कोई भी गुंजाईश नहीं है। यदि एक भी परीक्षण आशाजनक न रहे तो टीके को स्वीकृति नहीं दी जा सकती। कुल मिलाकर भारत में अभी तक कोरोना को लेकर कोई सटीक जानकारी या भविष्यवाणी सामने नहीं आई है। उसका प्रकोप जिस खतरनाक ढंग से बढ़ रहा है उसे देखते हुए ये कहना सही होगा कि हमें अपनी प्राण रक्षा के प्रति हर तरह से सतर्क हो जाना चाहिए। इस हेतु क्या करना होगा ये बताने की जरूरत नहीं है। बीते छह महीनों में हर खासो-आम को भली-भंति ये समझ में आ चुका है कि कोरोना से बचाव आसानी से कैसे किया जा सकता है? इसलिए बेहतर यही रहेगा कि इस नाजुक घड़ी में बेहद सावधानी और सतर्कता बरती जाये। ये तो साबित हो ही चुका है कि लॉक डाउन कोरोना का इलाज नहीं अपितु उसके फैलाव को रोकने का तरीका मात्र है। यही वजह है कि जब तक वह जारी रहा तब तक ऐसा लगा कि भारत में कोरोना काबू कर लिया गया है। लेकिन ज्योंही शिथिलता आई संक्रमण उछाले मारने लगा। इसका अर्थ ये हुआ कि मानवीय अनुशासन और आचरण ऐसी आपदाओं में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। यदि आने वाले दिनों में मास्क लगाने, सैनीटाइजर का उपयोग करने और शारीरिक दूरी बनाये रखने जैसे सरलतम तरीके उपयोग किये जाते रहें तभी इस महामारी से मुक्ति मिलेगी वरना तो आंकड़े हमें बहलाते, भरमाते और डराते रहेंगे।

- रवीन्द्र वाजपेयी

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