Wednesday 2 September 2020

पहली तिमाही की निराशा के बावजूद उम्मीदें खत्म नहीं हुईं



कोरोना काल में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल छा गये हैं। जिन देशों में संक्रमण ढलान पर आने के बाद कारोबार पटरी पर आता दिख रहा था वहां कोरोना का दूसरा हमला होने से स्थितियां फिर गड़बड़ा गईं। जहाँ तक भारत का सवाल है तो यहाँ अभी तक कोरोना का चरम नहीं आया जिसकी वजह से पक्के तौर पर ये अनुमान लगाना कठिन है कि उस पर नियंत्रण कब तक हो सकेगा ? हालाँकि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने भरोसा दिलवाया है कि दीपावली अर्थात नवम्बर मध्य तक हालात काबू में आ जायेंगे। वहीं दूसरी तरफ दिसम्बर तक भारतीय और विदेशी वैक्सीन उपलब्ध होने की संभावना से भी उम्मीदें बनी हुई हैं। लेकिन इससे अलग हटकर देखें तो अर्थव्यवस्था के वर्तमान आंकड़े और भविष्य को लेकर लगाये जा रहे अनुमान आर्थिक विशेषज्ञों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं। मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही अर्थात अप्रैल से जून में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पादन) के जो आंकड़े जारी हुए उनके मुताबिक बीते वर्ष की तुलना में लगभग 24 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी। नया वित्तीय वर्ष चूँकि लॉक डाउन से ही शुरू हुआ तथा दो महीने तक उद्योग-व्यवसाय कुछ अपवादों को छोड़कर ठप्प ही रहा इसलिए सकल घरेलू उत्पादन में गिरावट आना अवश्यम्भावी था लेकिन 24 फीसदी गिरावट की खबर आते ही सर्वत्र चिंता का वातावरण बन गया। विपक्ष सरकार पर चढ़ बैठा। आर्थिक विशेषज्ञ भी संभल- संभलकर बोल रहे हैं लेकिन ये बात भी कही जा रही है कि पूरी तरह से लॉक डाउन रहने से ये आंकड़ा स्वाभाविक ही है। इसी के साथ विभिन्न अनुमानों में ये कहा जा रहा है कि दूसरी, तीसरी और अंतिम तिमाही में सकल घरेलू उत्पादन में निरंतर वृद्धि होगी। लेकिन अंत में पूरे वर्ष का औसत निकालने पर आंकड़ा तकरीबन 11 फीसदी की गिरावट पर रुकेगा। दूसरी तरफ  कुछ क्षेत्रों में चौंकाने वाले समाचार मिल रहे हैं। निराशाजनक स्थिति के बावजूद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लगातार बढ़ता जा रहा है और विदेशी मुद्रा का भंडार भी सर्वकालीन उच्चतम स्तर पर बना हुआ है। यही नहीं तो अमेरिकी डालर के मुकाबले भारतीय रुपया मजबूत हो रहा है। बीते माह में दो पहिया और चार पहिया वाहनों की बिक्री ने गत वर्ष के आंकड़ों को भी पीछे छोड़ दिया। इसके पहले ट्रैक्टरों की बिक्री भी  जबरदस्त रही। बीते कुछ महीनों में मोबाईल, लैपटॉप और टैबलेट आदि की आशातीत बिक्री ने भी अर्थव्यवस्था के पुन: गतिशील होने का प्रमाण दिया। ये खबर भी आ रही है कि देश का विनिर्माण (मैन्युफेक्चरिंग) सेक्टर भी तेजी से पुरानी रंगत पर लौट चला है। लेकिन अभी भी पर्यटन और परिवहन के क्षेत्र में सुस्ती बनी हुई है। कोरोना के कारण चिकित्सा सुविधाओं में अप्रत्याशित वृद्धि की वजह से सरकार के पास धन की कमी आ गयी है । कारोबार ठंडा रहने से राजस्व की आय भी अनुमान से बहुत पीछे बनी हुई है। इसका असर विकास कार्यों पर भी देखा जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप बाजार में मांग और रोजगार दोनों में गिरावट देखी जा रही है। लेकिन कुछ लोगों का अनुमान है कि पहली तिमाही जरूर पूरी तरह से निराशाजनक रही लेकिन 135 करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाले देश में उपभोक्ताओं की विशाल संख्या अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने में बहुत सहायक होगी। दुनिया के अनेक विकसित देश भी भारत की विशाल आबादी में अपने लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं। सबसे अच्छी बात ये हुई कि इस बहाने आत्मनिर्भरता के प्रति रूचि जागी है। कोरोना को लेकर चीन के संदिग्ध हो जाने के कारण उसके सामान के प्रति अरुचि सीमा पर तनाव की वजह से और बढ़ गई। इसे देखते हुए भारतीय उद्योगों को संजीवनी मिलने के आसार बढ़ गये हैं। लेकिन इसके लिये सरकार को थोड़ी दरियादिली दिखानी होगी। घरेलू कारोबार तभी उन्नति करता है जब उसे राज्याश्रय मिले। हालांकि केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें इस समय तंगी में हैं लेकिन यही समय है जब कारोबारी जगत को अधिकतम संरक्षण देकर रोजगार की स्थिति को सुधारा जावे। ऐसा होने पर बाजारों में मांग बढ़ेगी और सरकार का राजस्व भी अपेक्षित स्तर पर पहुंचेगा। मौजूदा स्थिति में तो राजकोषीय घाटा वर्ष भर के अनुमान के करीब जा पहुंचा है। दीपावली सीजन के पहले से बाजारों में जो चहल-पहल बढ़ती है वह इस साल शायद न दिखे। लॉक डाउन में लगातार शिथिलता के बावजूद चूंकि शीतकालीन पर्यटन की संभावना काफी कम हैं इसलिए अर्थव्यवस्था का एक बड़ा सेक्टर तीसरी तिमाही में भी उबर नहीं सकेगा। फिर भी शादी-विवाह में लोगों की उपस्थिति पर लगी सीमा को बढ़ा देने का असर तो होगा ही। यूँ भी बरसात के बाद बाजार उठते हैं। संयोगवश इस वर्ष मानसून ठीक चल रहा है। और खेती का क्षेत्र भी अच्छी खबरें दे रहा है। ये सब देखते हुए कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था सघन चिकित्सा कक्ष से बाहर आने के बाद भी अभी आंशिक स्वस्थ होने की स्थिति में ही है। फिर भी उसे लेकर निराशाजनक चित्र प्रस्तुत करना ठीक नहीं है। भारत ने ऐसे अवसरों पर सदैव आश्चर्यजनक वापिसी की है। राजनीतिक स्थिरता की वजह से भी निर्णय प्रक्रिया काफी अच्छी है। इस सबके कारण ये सोचना गलत न होगा कि वित्तीय वर्ष समाप्त होते तक भारतीय अर्थव्यवस्था संतोषजनक स्थिति में आ जायेगी। यद्यपि उसकी सेहत सुधरने में अभी एक वर्ष और लगेगा किन्तु कोरोना कई मामलों में वरदान भी साबित हुआ है क्योंकि इसकी वजह से देश की सोई हुई उद्यमशीलता जाग्रत हो सकी, जो बड़ी उपलब्धि है।

- रवीन्द्र वाजपेयी

No comments:

Post a Comment