Monday 2 January 2023

नोटबंदी पर कानूनी मोहर की बाद उसकी ईमानदार समीक्षा जरूरी



आखिरकार  सर्वोच्च न्यायालय ने भी मान  लिया कि 8 नवम्बर 2016 की रात लागू की गई नोटबंदी  नियमानुसार थी और केंद्र सरकार ने  वह निर्णय रिजर्व बैंक से सलाह के उपरांत लिया था | जिसका उद्देश्य काले धन की समाप्ति  , नगदी रहित लेन देन को बढ़ावा  , नकली मुद्रा को रोकना और नक्सलियों सहित आतंकवादी संगठनों की आर्थिक आपूर्ति बंद करना था | हालाँकि उस फैसले को उचित बताने  वाले  भी मानते हैं कि  वह कदम बिना पर्याप्त तैयारी के उठाया गया जिससे जनता को अकल्पनीय परेशानी उठाना पड़ी | बैंकों के सामने लगी लाइनों के चित्र खूब प्रचारित हुए | 500 और 1000 के पुराने नोट तो बंद कर दिए गये लेकिन बैंकों में नई मुद्रा उपलब्ध न होने से  विकट स्थिति आ खड़ी हुई | उस दौरान बैंकों में भ्रष्टाचार की शिकायतें भी खूब आईं | पेट्रोल पम्प के अलावा , सरकारी देनदारी के भुगतान में प्रतिबंधित मुद्रा स्वीकार किये जाने की छूट ने नोटबंदी के लाभ को काफी कम  किया क्योंकि  लोगों ने अपना काला धन उसके जरिये ठिकाने लगा दिया | प्रधानमंत्री ने रात्रि 8 बजे ज्योंही टीवी पर उक्त निर्णय की जानकारी दी , पूरे देश में हड़कम्प  मच गया | आभूषणों की दुकानों में रात 12 बजे तक  भारी भीड़ उमड़ी | उस निर्णय को इस हद तक गोपनीय रखा गया था कि मंत्रीमंडल के कुछ को छोड़कर शेष सदस्य तक भौचक रह गए | बैंकों की लाइन में कुछ लोगों की मृत्यु होने से विपक्ष को बड़ा मुद्दा मिल गया | यद्यपि  फरवरी 2017 में उ.प्र के विधानसभा चुनाव में भाजपा की शानदार जीत ने उस फैसले पर जनता की मोहर लगवा दी | प्रधानमंत्री ने उस चुनाव में नोटबंदी को मुद्दा बनाते हुए ये बात कही  कि वह काला  धन रखने वालों के विरुद्ध थी न कि आम जनता के | उनकी बात लोगों के गले भी उतरी | हालांकि काले धन की समस्या उससे कितनी हल हुई ये स्पष्ट नहीं हो सका क्योंकि 500 और 1000 के जितने नोट चलन में थे उससे ज्यादा बैंकों में लौट आने की बात विपक्ष सहित अन्य लोगों द्वारा उठाई जाती रही | इससे ये अवधारणा फैली कि नकली नोट भी बैंकों में पहुंच गए | रिजर्व बैंक आज तक इस बारे में ठोस स्पष्टीकरण नहीं  दे पाया | यद्यपि उसने कुछ सीलबंद जानकारी सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी है | नोटबंदी के विरुद्ध दर्जनों याचिकाएँ सर्वोच्च न्यायालय में आईं जिनमें सरकार के निर्णय को रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण बताते हुए कहा गया था कि मुद्रा के चलन की व्यवस्था रिजर्व बैंक द्वारा की जाती है लिहाजा नोटबंदी का अधिकार उसे था न कि प्रधानमंत्री को | मामला चूंकि पेचीदा था इसलिए उसे संविधान पीठ को सौंपा गया | सुनवाई के दौरान पीठ ने अनेक बार सरकार को लताड़ लगाते हुए पूरी प्रक्रिया का ब्यौरा पेश करने कहा | उसके इस दावे से भी पीठ ने असहमति जताई कि उसे  सुनवाई का अधिकार नहीं है | आज अपना फैसले में न्यायालय ने सभी याचिकाओं को रद्द कर नोटबंदी को कानून सम्मत मानते हुए कह दिया कि  उसे लागू करने की पहल रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल की ओर से  हुई थी तथा अंतिम निर्णय के पूर्व सरकार और उसके बीच विधिवत चर्चा भी हुई | यद्यपि पांच में से एक न्यायाधीश ने नोटबंदी को गैर कानूनी बताया किन्तु शेष ने उसके पक्ष में अपनी राय व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार को  दबाव मुक्त कर दिया | इस फैसले से  नोटबंदी की वैधानिकता पर मंडराते बादल तो दूर हो जायेंगे किन्तु उसका  जो नकारात्मक परिणाम है उसका भी  ईमानादारी से  विश्लेषण किया जाना जरूरी है | ये मान लेना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है कि जो हुआ सब अच्छा ही था | एक अच्छे निर्णय के क्रियान्वयन में हुई गलतियों को जानने - समझने पर उनके दोहराव से बचा जा सकता है | हालाँकि उस फैसले के जो उद्देश्य थे वे काफी हद तक पूरे हुए हैं | मसलन नक्सलियों और आतंकवादियों का अर्थतंत्र कमजोर हुआ और डिजिटल लेनदेन भी लगातार  बढ़ रहा है | लेकिन काले धन की  समस्या यथावत है | जिसका प्रमाण 2 हजार के नोटों का बाजार से गायब होता जाना है | दरअसल नोटबंदी के पीछे जो सोच थी उसे  आधा   -अधूरा लागू किया गया | 2 हजार का नोट जारी करना औचित्यहीन था | इससे काला धन जमा करने वालों को आसानी हो गयी | होना तो ये चाहिए कि 100 रु.के नोट से बड़ी मुद्रा रहे ही नहीं | जब तक बड़े नोट रहेंगे काला धन तिजोरियों में बंद होता रहेगा | कुछ दिन से सुनने में आ रहा है कि 1 हजार का नोट फिर से चलन में आएगा और 2 हजार के बैंकों में वापस लिए जायेंगे | इस बारे मे ये कहना गलत नहीं है कि 2 हजार का नोट बंद करना तो उचित रहेगा लेकिन 1 हजार को दोबारा लाना गैर जरूरी है | वैसे भी मुद्रा संबंधी बदलाव जल्दी – जल्दी होने से सरकार की छवि खराब होती है | सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने  सरकार की नीति और नीयत दोनों को सही ठहरा दिया है | इसके बाद  जरूरत इस बात की है कि नोटबंदी के फायदे और नुकसान का आकलन करते हुए भविष्य की रूपरेखा बनाई जावे क्योंकि  उसके बाद  आई मंदी किसी न किसी रूप में जारी है | जिसे दूर करने के बारे में ठोस कदम उठाये जाने चाहिए | मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम पूर्ण बजट अगले माह पेश होना है | उम्मीद की जा सकती है कि उसमें राहत का पिटारा खुलेगा | प्रत्यक्ष करों के साथ ही जीएसटी संग्रह उम्मीद से ज्यादा होने से ऐसा करना सरकार के लिए मुश्किल नहीं है | अब तक उसके द्वारा किये गए सख्त फैसलों को जनता ने तकलीफ सहकर भी समर्थन दिया है | बदले में यदि वह  कुछ राहत चाहती है तो उसमें गलत कुछ  भी नहीं है | 


रवीन्द्र वाजपेयी 


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